- सोने-चांदी के गहनों, रंग-बिरंगे फूलों और सुगंधित चंदन से सजे बाबा को हरियाली झूले पर झुलाया गया
मंदिर प्रशासन के अनुसार सावन पूर्णिमा पर होने वाला यह झूलनोत्सव बाबा विश्वनाथ और माता पार्वती के प्रेम, सौंदर्य और सृष्टि के संतुलन का प्रतीक है। मान्यता है कि इस दिन महादेव और माता गौरी को झूला झुलाने से दांपत्य सुख, वैवाहिक जीवन में सौहार्द और घर-परिवार में सुख-समृद्धि का आशीर्वाद मिलता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार, श्रावण मास शिवभक्ति का श्रेष्ठ काल माना गया है। पुराणों में वर्णित है कि इसी मास में माता पार्वती ने कठोर तप कर महादेव को पति रूप में प्राप्त किया था। सावन की पूर्णिमा को हरियाली तीज और झूलनोत्सव के रूप में मनाने की परंपरा भगवान और भगवती के मिलन के आनंदोत्सव का प्रतीक है। काशी की गलियों से लेकर घाटों तक इस अवसर पर भक्ति का माहौल छाया रहा, जबकि स्थानीय कलाकारों ने भी मंदिर के बाहर हरियाली झूले और कांवड़ सजावट से अद्भुत दृश्य रचा। श्रद्धालु "हर हर महादेव" और "बोल बम" के जयघोष करते हुए बाबा के दर्शन कर अपने को धन्य मानते रहे।

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