- प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र में ही पत्रकार आयुष्मान कार्ड से वंचित
- सूचना विभाग की लापरवाही या तकनीकी गड़बड़ी को लेकर हैरत में है बनासर के मान्यता प्राप्त पत्रकार
सरकारी मंशा बनाम सरकारी मशीनरी
यह पूरा घटनाक्रम एक बड़ा सवाल खड़ा करता है। यह पूरा मामला साफ करता है कि सरकार की मंशा भले ही सकारात्मक हो, लेकिन सरकारी मशीनरी की लापरवाही से वह मंशा जमीन पर नहीं उतर पा रही। और सबसे बड़ा कलंक यह है कि प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र के पत्रकारों का हाल यह है तो प्रदेश के दूसरे जिलों के पत्रकारों की हालत का अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है। या यूं कहे जब प्रदेश सरकार की मंशा साफ है और अन्य जिलों में कार्ड बन भी चुके हैं, तो फिर प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र के पत्रकार ही इस सुविधा से वंचित क्यों? अगर प्रधानमंत्री के क्षेत्र में सूची “अटक“ सकती है, तो बाकी जिलों का क्या होगा? जब सूची दो-दो विभागों को भेजी गई थी, तो वह साँची की वेबसाइट पर अपलोड क्यों नहीं हुई? कहीं सांची ने ही तो इस पूरे मामले में लीपापोती तों नहीं की, जैसा कि सूचना विभाग, लखनऊ में आयोजित दो दिवसीय शिविर में सांची की लापरवाहियां लाभार्थी पत्रकारों को खून के आंसू रोने को विवश कर रही थी। जबकि पत्रकार पहले ही तमाम जोखिमों और सीमाओं के बीच काम करते हैं। सरकार ने उनकी सुरक्षा और स्वास्थ्य को लेकर जो ऐतिहासिक पहल की है, उसे सूचना विभाग और हेल्थ एजेंसी की सुस्त कार्यप्रणाली ने मजाक बना दिया है। यह सिर्फ तकनीकी चूक नहीं, बल्कि पत्रकारों के हक़ से खिलवाड़ है। और यह सवाल जनता और पत्रकार समाज दोनों के बीच गूंज रहा है, पत्रकारों के हक़ से खिलवाड़!
पत्रकारों के धैर्य की परीक्षा
पत्रकार समाज पहले ही सीमित संसाधनों और जोखिमों के बीच अपनी जिम्मेदारी निभाता है। सरकार ने उनकी सुरक्षा और स्वास्थ्य के लिए जो ऐतिहासिक पहल की है, उसे सूचना विभाग और हेल्थ एजेंसी की सुस्ती ने मजाक बना दिया है। यह महज चूक नहीं, बल्कि पत्रकारों के हक़ से सीधा खिलवाड़ है। और सबसे बड़ा सवाल यह है कि यह चूक है या फिर कोई सुनियोजित लापरवाही? जब सूची भेजी गई तो वह साँची की वेबसाइट पर अपलोड क्यों नहीं हुई? और पत्रकारों का नाम सूची में क्यों नहीं आया?
एमएमजेएए योजना क्या है?
उत्तर प्रदेश सरकार ने मान्यता प्राप्त पत्रकारों और उनके आश्रितों को आयुष्मान भारत योजना से जोड़ने के लिए मीडिया मेंबर जर्नलिस्ट एंड एक्रेडिटेड एसोसिएशन (एमएमजेएए) योजना शुरू की है। इस योजना के तहत पत्रकार और उनका परिवार 5 लाख रुपये तक का निःशुल्क इलाज देशभर के सूचीबद्ध अस्पतालों में करा सकेंगे। स्टेट हेल्थ एजेंसी (साँची) और सूचना विभाग मिलकर इस योजना का संचालन कर रहे हैं। अब तक प्रदेश के कई जिलों जैसे लखनऊ, प्रयागराज, गोरखपुर, कानपुर, मेरठ आदि में सैकड़ों पत्रकारों के कार्ड बन चुके हैं। लेकिन अफसोस है कि प्रधानमंत्री का संसदीय क्षेत्र, वाराणसी में एक भी कार्ड नहीं बना। सूचना विभाग और स्वास्थ्य एजेंसी की समन्वयहीनता इसका सबसे बड़ा कारण बताई जा रही है।
पत्रकारों में आक्रोश
जब यह तथ्य सामने आया तो स्थानीय मान्यता प्राप्त पत्रकारों में रोष फैल गया। काशी पत्रकार संघ के अध्यक्ष अरुण मिश्रा के नेतृत्व में पत्रकारों का प्रतिनिधिमंडल सूचना अधिकारी से मिला। अधिकारी ने मानते हुए कहा कि सूची भेजी गई थी, लेकिन तकनीकी कारणों से कार्ड नहीं बन सके। उन्होंने आश्वासन दिया कि लखनऊ स्तर पर पैरवी कर जल्द ही वाराणसी के मान्यता प्राप्त पत्रकारों के कार्ड बनवाए जाएंगे।
बड़ा सवाल
सवाल यह है कि जब प्रदेश सरकार की मंशा स्पष्ट है और सभी जिलों में कार्ड बन चुके हैं, तो प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र वाराणसी के पत्रकार ही क्यों इस सुविधा से वंचित हैं? यह महज तकनीकी गड़बड़ी है या फिर सूचना विभाग की गंभीर लापरवाही? पत्रकार समाज पहले ही अपनी कठिन परिस्थितियों और सीमित संसाधनों के बीच काम करता है। ऐसे में सरकार की ओर से घोषित स्वास्थ्य सुरक्षा योजना से उन्हें वंचित रखना न केवल पत्रकारों के हक़ से खिलवाड़ है बल्कि सरकारी तंत्र की विश्वसनीयता पर भी प्रश्नचिह्न खड़ा करता है। जब प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र वाराणसी के पत्रकार ही आयुष्मान कार्ड से वंचित हैं, तो बाकी जिलों का क्या भरोसा? यह साफ तौर पर सूचना विभाग और हेल्थ एजेंसी की लापरवाही है। : अरुण मिश्रा, अध्यक्ष, काशी पत्रकार संघ यह बेहद शर्मनाक है कि प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र के पत्रकार अब तक आयुष्मान कार्ड से वंचित हैं। जब सूचना विभाग दावा करता है कि सूची भेज दी गई, तो यह बताना भी उनकी जिम्मेदारी है कि वह सूची आखिर पहुँची कहाँ? ज़मीन खा गई या आसमान? सरकार की सकारात्मक मंशा को विभागीय लापरवाही पलीता लगा रही ळें

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