वाराणसी : संतान की कामना में लोलार्क कुंड पर उमड़ा जनसैलाब - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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शुक्रवार, 29 अगस्त 2025

वाराणसी : संतान की कामना में लोलार्क कुंड पर उमड़ा जनसैलाब

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वाराणसी (सुरेश गांधी)। काशी का ऐतिहासिक लोलार्क चतुर्दशी स्नान पर्व शकु्रवार को श्रद्धा और आस्था के चरम पर नजर आया। संतान सुख और परिवार की समृद्धि की कामना लेकर देशभर से आए श्रद्धालुओं ने लोलार्क कुंड में आस्था की डुबकी लगाई। सूर्योदय से पहले ही गंगा-जमुनी संस्कृति के प्रतीक वाराणसी की गलियां ‘हर हर महादेव’ और सूर्यदेव के जयघोष से गूंज उठीं। षष्ठी तिथि लगते ही कुंड पर स्नान करने वालों की भीड़ बढ़ गई। बैरिकेडिंग पर दबाव इतना अधिक था कि श्रद्धालुओं की कतारें शिवाला से लेकर सोनारपुरा चौराहे से आगे तक निकल गईं। स्नान के 48 घंटे पहले ही लोग कतारबद्ध होना शुरू कर चुके थे। महिलाएं, बच्चे और बुजुर्ग तक अपने परिवारों के साथ डटे रहे।


लोलार्क कुंड का महत्व और कथा

लोलार्क कुंड सूर्यदेव को समर्पित है और इसे संतान स्नान कुंड भी कहा जाता है। मान्यता है कि यहां स्नान कर सूर्यदेव को अर्घ्य देने से संतानहीन दंपतियों को संतान प्राप्ति होती है। वहीं, जिनके बच्चे होते हैं उन्हें उनके बच्चों की लंबी आयु और सुख-समृद्धि का आशीर्वाद मिलता है। पौराणिक कथा के अनुसार, काशी में भगवान सूर्य ने इसी कुंड में प्रकट होकर संतानों की रक्षा और लोक कल्याण का वरदान दिया था। तभी से यह पर्व संतान-सुख की कामना से जुड़ा है।


प्रशासन ने किए कड़े इंतजाम

श्रद्धालुओं की भारी भीड़ को देखते हुए जिला प्रशासन पूरी तरह चौकस रहा। कुंड के आसपास पुलिस बल, पीएसी और जल पुलिस के जवान तैनात रहे। गोताखोरों को भी मुस्तैद किया गया था। नगर निगम ने स्नान से पहले और बाद में सफाई के विशेष इंतजाम किए। पेयजल और स्वास्थ्य सेवाओं के लिए भी व्यवस्था की गई थी।


श्रद्धालुओं की भावनाएं

लखनऊ से आए दंपति संजय और प्रीति ने कहा, “हम हर साल संतान सुख की कामना से यहां आते हैं। आस्था है कि सूर्यदेव हमारी झोली जरूर भरेंगे।” आजमगढ़ से आए श्रद्धालु रामवृक्ष ने कहा, “यह सिर्फ स्नान नहीं बल्कि हजारों साल पुरानी परंपरा है। हम इसे अपनी पीढ़ियों तक पहुंचा रहे हैं।”


आस्था का अद्भुत नजारा

लोलार्क कुंड का स्नान पर्व केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि काशी की जीवंत संस्कृति और आस्था का साक्षात दर्शन है। हर साल लाखों श्रद्धालु यहां उमड़ते हैं और काशी का यह अध्यात्मिक मेला पीढ़ियों से परंपरा को जीवित रखे हुए है।

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