- पंडित हृदयनाथ मंगेशकर और उषा मंगेशकर को श्रद्धांजलि
उषा मंगेशकर ने एक साहसिक कलाकृति के निर्माण की रचनात्मक प्रक्रिया और संघर्ष को याद किया। आदिवासी कहानियों को पर्दे पर लाने के प्रयासों का विवरण देते हुए, डॉ. मोहन अगाशे ने नागा की भूमिका में अपने अनुभव साझा किए। इस चर्चा के बाद, जैत रे जैत के अमर गीतों का लाइव प्रदर्शन किया गया। रवींद्र साठे, मनीषा निश्चल और विभावरी आप्टे के मधुर निर्देशन में इन गीतों में नई जान फूंक दी गई। मी रात तकली, जांभुल पिकल्या ज़ादाखली, अमे ठाकर ठाकर जैसे गीतों को सिर्फ़ सुना ही नहीं गया - बल्कि उन्हें अनुभव भी किया गया। उन धुनों ने हॉल को मंत्रमुग्ध कर दिया। जैत रे जैत ने एक बार फिर साबित कर दिया कि यह कोई फ़िल्म नहीं - बल्कि एक आंदोलन है। यह एक सांस्कृतिक मंत्र है। और यह कार्यक्रम उस संघर्ष, उस संगीत और उस मिट्टी का एक संगीतमय प्रमाण बन गया क्योंकि कुछ गीत सिर्फ़ गाए नहीं जाते जबकि वो एक इतिहास के पन्नो में दर्ज हो जाते हैं जो अन्त कालो तक याद किये जाते है और कुछ कलाकार सिर्फ़ कलाकार नहीं होते। वे संस्कृति के संरक्षक होते हैं।

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