15 अगस्त का सूरज हमें यह याद दिलाने आता है कि हर सांस, हर कतरा उन शहीदों का है जिन्होंने हमारे लिए सबकुछ कुर्बान कर दिया। तिरंगा केवल लहरता नहीं, यह हमें पुकारता है कि अपने देश के लिए, अपने लोगों के लिए, अपने मूल्यों के लिए हमेशा खड़े रहो। मतलब साफ है यह तिरंगा सिर्फ लहरता नहीं, यह हमें याद दिलाता है कि हमारी आज़ादी की कीमत केवल कुछ समय पहले हमारे पूर्वजों ने अपने खून से चुकाई थी। हमें अपनी जिम्मेदारी निभानी होगी, ताकि हम अपने देश के प्रति अपने कर्तव्यों का पालन कर सकें और आने वाली पीढ़ियों को एक बेहतर और समृद्ध भारत दे सकें। हमारे स्वतंत्रता संग्राम के शहीदों के बलिदान की गाथाएं हमारे दिलों में हमेशा ताजगी बनाए रखेंगी। या यूं कहे हमारी हर सांस में तिरंगे की महक और हर कतरे में शहीदों की कहानी बसनी चाहिए। यही उनके प्रति हमारी सच्ची श्रद्धांजलि होगी। अगर हम हर दिन अपने कर्मों से उनका नाम रोशन करें, तभी यह स्वतंत्रता दिवस सच्चे अर्थों में मनाया जाएगा
हम जो आज़ादी जी रहे हैं, वह केवल मतदान का अधिकार या अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता भर नहीं है। यह एक भरोसा है, कि हम अपने भविष्य का रास्ता खुद तय करेंगे। लेकिन क्या हम सच में उस भरोसे के काबिल बने हैं? क्या हमारे निर्णय, हमारी नीतियां, और हमारा आचरण उस बलिदान का सम्मान करते हैं? खास तौर से तब यह सवाल बड़ा हो जाता है जब हम भ्रष्टाचार से समझौता करते हैं, समाज में विभाजन की आग को हवा देते हैं, या अपने कर्तव्यों को भूल जाते हैं. ऐसा करके हम कहीं न कहीं उन शहीदों की आत्मा को आहत करते हैं जिन्होंने हमें यह दिन दिया। बता दें, यह लड़ाई केवल मोर्चे पर नहीं लड़ी गई, यह लड़ाई किसानों के खेतों में, मजदूरों के कारखानों में, लेखकों के कलम में, और माताओं के आंसुओं में भी लड़ी गई। मतलब साफ है आज हम जब इस स्वतंत्रता का उत्सव मनाते हैं, तो यह सिर्फ खुशियों का नहीं, बल्कि हमारी जिम्मेदारियों का भी दिन है। यह हमें यह याद दिलाता है कि हमें अपने देश की एकता, अखंडता और लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा करनी चाहिए। संविधान के आदर्शों का पालन करना, सामाजिक समानता और शिक्षा को बढ़ावा देना, प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा करना, आने वाली पीढ़ी को आज़ादी का महत्व सिखाना हमारी नैतिक जिम्मेदारी है. साथ ही हमारी यह भी जिम्मेदारी है, बलिदान के योग्य बनना, स्वतंत्रता को बनाए रखना, उसे सार्थक बनाना और आगे बढ़ाना. अपने अधिकारों के साथ-साथ कर्तव्यों का पालन करें। लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा करें। समाज में समानता, शिक्षा और भाईचारे को बढ़ावा दें। और सबसे जरूरी, आने वाली पीढ़ी को यह बताएं कि यह आज़ादी मुफ्त में नहीं मिली, इसके पीछे लाखों बलिदानों का इतिहास है।
आजादी के अमर प्रहरी
यह थीम हमें याद दिलाती है कि स्वतंत्रता कोई विरासत में मिली संपत्ति नहीं, बल्कि एक जीवित धरोहर है जिसे हर पीढ़ी को अपनी निष्ठा और साहस से सुरक्षित रखना है। इस बार ‘हर घर तिरंगा’ अभियान केवल सजावट के लिए नहीं, बल्कि संकल्प के लिए है - संकल्प कि हम एकजुट रहेंगे, और हर चुनौती का सामना उसी साहस से करेंगे जैसे हमारे पूर्वजों ने किया। वे पूर्वज, जिन्होंने आजादी के लिए यातनाएं झेली। या यूं कहे भारत की आज़ादी का संघर्ष कोई त्वरित जीत नहीं थी, बल्कि यह एक लंबी, कठिन और पीड़ादायक यात्रा थी। भारत की स्वतंत्रता कोई एक दिन या एक घटना का परिणाम नहीं थी। यह लगभग दो शताब्दियों के संघर्ष का फल था, जिसमें हर वर्ग और हर समाज ने अपना योगदान दिया।
1857 का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम
भारत का पहला संग्राम 1857 में हुआ था, जिसे “प्रथम स्वतंत्रता संग्राम“ या “सैनिक विद्रोह“ कहा जाता है। यह संघर्ष न केवल सिपाही विद्रोह था, बल्कि यह पूरे देश में स्वतंत्रता की एक साझा इच्छा का प्रतीक था। यह सिर्फ सैनिकों की बगावत नहीं था, यह भारतीय आत्मा की पहली हुंकार थी। मंगल पांडे की गोलियों की आवाज़, रानी लक्ष्मीबाई की तलवार की चमक, तात्या टोपे का साहस, इन सबने यह साबित कर दिया कि हिंदुस्तान गुलामी की बेड़ियां तोड़ना जानता है। इस संघर्ष ने भारतीयों में ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ एक ऐतिहासिक चेतना जगाई, जो बाद में स्वतंत्रता संग्राम का आधार बनी।
जलियांवाला बाग कांड
13 अप्रैल 1919 को अमृतसर के जलियांवाला बाग में जनरल डायर के आदेश पर अंग्रेजों ने हंसते-गाते बैसाखी मना रहे निर्दोष लोगों को गोलियों से छलनी कर दिया गया। इस हत्याकांड ने भारतीयों को झकझोर कर रख दिया। वह खून से भीगी धरती आज भी पूछती है “क्या यह सभ्यता थी?“ लेकिन यही घाव स्वतंत्रता की आग को और भड़काता चला गया। इस घटना ने न केवल भारत को एकजुट किया, बल्कि इसे ब्रिटिश शासन के खिलाफ व्यापक आंदोलन की ओर बढ़ाया।
काकोरी कांड और अन्य क्रांतिकारी आंदोलन
9 अगस्त 1925 को काकोरी कांड ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ क्रांतिकारी युवा संघर्ष का नया अध्याय लिखा। पंडित रामप्रसाद बिस्मिल, अशफ़ाक उल्लाह खान, ठाकुर रोशन सिंह और राजेंद्र लाहिड़ी जैसे वीरों ने काकोरी ट्रेन को लूटने की योजना बनाई। इन वीरों के बलिदान ने पूरे देश को जागरूक किया और देश में क्रांति की नई लहर शुरू की। 1930 का दांडी मार्च, 1931 का भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव का फांसी चढ़ना, हमारे बुजुर्गो की आत्मा को हिलाकर रख दिया, जो आजादी की लड़ाई का हिस्सा बने.
भारत छोड़ो आंदोलन (1942)
महात्मा गांधी के नेतृत्व में भारत छोड़ो आंदोलन ने ब्रिटिश साम्राज्य को अंतिम चेतावनी दी। यह आंदोलन न केवल व्यापक था, बल्कि यह अहिंसात्मक तरीके से अंग्रेजों के खिलाफ एक ठोस विरोध था। पूरे देश में महात्मा गांधी और उनके समर्थकों के नेतृत्व में लाखों लोग इस आंदोलन में शामिल हुए और ब्रिटिश शासन के खिलाफ जन आंदोलन को मजबूती दी। ये सब हमारे इतिहास के ऐसे मोड़ हैं जहां पूरी कौम एक स्वर में गरजी, “अंग्रेज़ो, भारत छोड़ो!“ कहा जा सकता है शहीद भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव, नेताजी सुभाष चंद्र बोस, सरदार वल्लभभाई पटेल और महात्मा गांधी की प्रेरक भूमिका ने आज़ादी को दिशा दी।
दुर्लभ तथ्य : जो किताबों में नहीं मिलते
तिरंगे का पहला सार्वजनिक प्रदर्शन 1906 में कोलकाता के पारसी बागान स्क्वायर में हुआ था। नेताजी सुभाष चंद्र बोस द्वारा गठित आज़ाद हिंद फ़ौज में लगभग 15 फीसदी महिलाएं थीं। अंडमान की सेलुलर जेल में बंद क्रांतिकारियों को ‘काले पानी’ की सज़ा के तहत नारियल के रेशों से रस्सी बनाने और तेल निकालने का कठोर काम कराया जाता था। काकोरी कांड (1925) में अंग्रेज़ी खजाने की लूट का पूरा पैसा स्वतंत्रता संग्राम के
सुरेश गांधी
वरिष्ठ पत्रकार
वाराणसी


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