वाराणसी : बुनकरों की सांसों पर टैरिफ का बोझ - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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गुरुवार, 11 सितंबर 2025

वाराणसी : बुनकरों की सांसों पर टैरिफ का बोझ

  • सरकार हर परिस्थिति में कारीगरों और निर्यातकों के साथ खड़ी है : गिरीराज सिंह

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वाराणसी (सुरेश गांधी). जब भदोही-मिर्जापुर की तंग गलियों में करघों पर चलती सूत की धड़कनें थमने लगें, तो यह केवल व्यापारिक संकट नहीं होता, यह भारत की आत्मा के मौन पड़ने जैसा है। बुधवार को राजधानी दिल्ली में वस्त्र मंत्री गिरिराज सिंह की अध्यक्षता में हुई संवाद बैठक में यही दर्द साफ-साफ झलका। बैठक में परिधान, घरेलू वस्त्र, हस्तशिल्प और कालीन जगत के प्रतिनिधि जुटे। कालीन निर्यात संवर्धन परिषद (सीईपीसी) की ओर से अध्यक्ष कुलदीप राज वट्टल, संजय गुप्ता, पीयूष बरनवाल, कैप्टन विजेंद्र जगलान और वसीम अहमद ने अपनी-अपनी पीड़ा साझा की। संवाद के अंत में वस्त्र मंत्री गिरिराज सिंह ने कहा कि सरकार हर परिस्थिति में कारीगरों और निर्यातकों के साथ खड़ी है। “वोकल फॉर लोकल” केवल नारा नहीं, बल्कि आत्मनिर्भर भारत की गूंज है। कालीन की बुनाई केवल धागों का मेल नहीं, यह पीढ़ियों की मेहनत, संस्कृति और श्रम का संचित इतिहास है। अमेरिकी टैरिफ़ ने इस इतिहास को चुनौती दी है। अब सरकार के सामने यह जिम्मेदारी है कि वह नीति और समर्थन से उन हथेलियों को बचाए, जो करघों पर भारत की पहचान बुनती हैं।


कालीन उद्योग की पुकार

सीईपीसी अध्यक्ष कुलदीप राज वट्टल ने कहा, “अमेरिकी टैरिफ वृद्धि हमारे उद्योग की सांसें रोक रही है।” उन्होंने लंबित निर्यात संवर्धन मिशन योजना के शीघ्र क्रियान्वयन और ब्याज अनुदान योजना की बहाली की मांग रखी। साथ ही रूस व चीन से व्यापार समझौते कर नए रास्ते खोलने की अपील की। कैप्टन विजेंद्र जगलान ने छोटे निर्यातकों की व्यथा उजागर करते हुए कहा कि खरीदार इंतजार नहीं करेंगे, सरकार को तुरंत राहत देनी होगी। पीयूष बरनवाल ने हस्तनिर्मित और मशीन-निर्मित कालीनों को अलग पहचान देने की बात कही। उन्होंने भदोही-मिर्जापुर की 1,200 एमएसएमई इकाइयों को भूजल कूप पंजीकरण में आ रही दिक्कतों की ओर भी ध्यान दिलाया। संजय गुप्ता ने चेताया कि यदि स्थिति नहीं बदली तो 13 लाख बुनकर रोज़गार छोड़ देंगे। “अमेरिका में हर चौथा कालीन भदोही का होता है, यह केवल उद्योग नहीं, हमारी परंपरा है,” वसीम अहमद ने सुझाव दिया कि सरकारी दफ्तरों और सम्मेलन कक्षों में भारतीय कालीनों का अनिवार्य उपयोग किया जाए, ताकि कारीगरों का मनोबल बढ़े।

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