- सिर्फ 3 ओ.ई.एम कंपनियों को फायदा, बाकियों को रोका गया
- टेंडर से गायब डिजिटल कंटेंट, छात्रों के भविष्य पर संकट
6 अगस्त, 2025 को हुई प्री-बिड बैठक में कई कंपनियों ने इस प्रक्रिया पर सवाल उठाए, लेकिन सरकारी तंत्र ने सभी आपत्तियों को खारिज कर अपनी पसंदीदा कंपनियों का बचाव किया। विशेषज्ञों का कहना है कि टेंडर पूरी तरह हार्डवेयर-केंद्रित है, जबकि उसी बजट में डिजिटल कंटेंट, सॉफ्टवेयर, और एनालिटिक्स जैसी तकनीकों को शामिल किया जा सकता था। चयनित कंपनियों के पास केवल हार्डवेयर सप्लाई का अनुभव है, डिजिटल शिक्षा समाधान का नहीं। इससे छात्रों की सीखने की क्षमता बढ़ाने का लक्ष्य हार्डवेयर लॉबी के हितों की भेंट चढ़ गया। टेंडर की शर्तें भी पक्षपातपूर्ण हैं। बोलीदाता को केवल 35 अंक चाहिए, जबकि 65 अंक ओ.ई.एम आधारित शर्तों को दिए गए हैं। यह प्रावधान भारत में कहीं भी पहले नहीं देखा गया। बोलीदाता के लिए 40 करोड़ का टर्नओवर और 2,000 स्कूलों का अनुभव अनिवार्य है, जबकि ओ.ई.एम के लिए 500 करोड़ का टर्नओवर और 10,000 स्कूलों का अनुभव मांगा गया। यह व्यवस्था छोटी और मध्यम कंपनियों को बाहर करने के लिए बनाई गई है।
विशेषज्ञों का कहना है कि यह टेंडर नेशनल एजुकेशन पॉलिसी (एनईपी 2020) की भावना के खिलाफ है और सार्वजनिक धन के दुरुपयोग का उदाहरण है। टेंडर से बाहर की गई कंपनियां, जागरूक नागरिक, और विशेषज्ञ दिल्ली सरकार से मांग कर रहे हैं कि टेंडर रद्द कर पारदर्शी प्रक्रिया अपनाई जाए। डिजिटल कंटेंट और छात्रों के समग्र विकास को प्राथमिकता दी जाए। शिक्षा विभाग के एक आईएएस अधिकारी और सीएम के शिक्षा संबंधी ऑफिस से इस मामले पर सवाल पूछे गए, लेकिन समाचार लिखे जाने तक कोई जवाब नहीं मिला। व्हाट्सएप और लैंडलाइन पर भी संपर्क का प्रयास किया गया, जो असफल रहा। सीएमश्री स्कूल प्रोजेक्ट लाखों छात्रों के भविष्य को बेहतर बनाने का सपना है। लेकिन भ्रष्टाचार और कार्टेलाइजेशन के आरोपों ने इसे संकट में डाल दिया है। विशेषज्ञ चेतावनी दे रहे हैं कि यदि सरकार ने तुरंत कार्रवाई नहीं की, तो यह प्रोजेक्ट शिक्षा सुधार का प्रतीक बनने के बजाय भ्रष्टाचार का पर्याय बन जाएगा।

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