विशेष : विश्व की पहली ‘एआई, महिला मंत्री’ संवैधानिकता पर सवाल - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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सोमवार, 15 सितंबर 2025

विशेष : विश्व की पहली ‘एआई, महिला मंत्री’ संवैधानिकता पर सवाल

Harish-shivnani
इस सप्ताह राजस्थान के जैसलमेर ज़िले से भी छोटे देश अल्बानिया ने संसदीय इतिहास में एक ऐसा कदम उठाया है जो दुनियाभर में चर्चा का विषय बन गया है। यूरोप महाद्वीप के इस देश के प्रधानमंत्री एडी रामा ने अपने मंत्रिमंडल में भ्रष्टाचार से निपटने के लिए एक ‘आर्टिफ़िशियल मंत्री’ ‘डिएला’ नियुक्त की है, जो मानव न होकर ‘कृत्रिम बुद्धि जनित’ यानी आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस (एआई) पर आधारित है। ‘डिएला’ का अर्थ अल्बानियाई भाषा में ‘सूर्य’ होता है। अल्बानिया के आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और क्रिप्टोकरेंसी लाइसेंसिंग विभाग के प्रमुख एनियो कासो ने 12 सितंबर को अल्बानिया की राजधानी तिराना में  एआई बॉट 'मंत्री' ‘डिएला’ का परिचय दिया। यह विश्व की एक ऐसी ‘कैबिनेट मंत्री’ है जो ‘शारीरिक’ नहीं हैं। डिएला को सार्वजनिक खरीद विभाग का मंत्री बनाया गया है और इसका मुख्य उद्देश्य सरकारी निविदाओं के माध्यम से सार्वजनिक खरीद प्रक्रियाओं को पारदर्शी, तेज़ और पूरी तरह जवाबदेह बना कर भ्रष्टाचार को 100 प्रतिशत समाप्त करना है।


डिएला एक ‘एआई-पावर्ड वर्चुअल असिस्टेंट’ है, जिसे माइक्रोसॉफ्ट के सहयोग से विकसित किया गया था। यह ई-अल्बानिया प्लेटफॉर्म पर पहले से ही एक वर्चुअल असिस्टेंट के रूप में कार्य कर रही थी। इसे पारंपरिक अल्बानियाई वेशभूषा में एक महिला के रूप में चित्रित किया गया है। इसे ‘आर्टिफ़िशियल मंत्री’ बनाने से अल्बानिया में संवैधानिक सवाल उठने लगे हैं, क्योंकि अल्बानिया के संविधान के अनुसार, मंत्रियों को 18 वर्ष से अधिक आयु का मानसिक रूप से सक्षम ‘नागरिक’ होना चाहिए। इस वर्ष हुए संसदीय चुनावों में रामा की सोशलिस्ट पार्टी ने 140 विधानसभा सीटों में से 83 सीटें जीतकर लगातार चौथी बार सत्ता हासिल की जबकि पूर्व प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति साली बेरिशा के नेतृत्व वाले विपक्षी डेमोक्रेटिक पार्टी के गठबंधन ने 50 सीटें जीतीं। बहुमत के लिहाज से सोशलिस्ट ​​पार्टी शासन कर सकती है और ज़्यादातर कानून पारित कर सकती है, लेकिन अल्बानिया के संविधान में बदलाव के लिए उसे दो-तिहाई बहुमत यानी 93 सीटों की ज़रूरत है। अल्बानियाई राष्ट्रपति बजराम बेगज ने 13 सितंबर को रामा को नई सरकार के गठन का अधिकार सौंपा दिया। विश्लेषकों का कहना है कि इससे प्रधानमंत्री को एआई डिएला के निर्माण और संचालन’ का अधिकार तो मिल गया है लेकिन सवाल संविधान सम्मत होने का है कि मानव की जगह ‘कृत्रिम आभासी ईकाई’ को मंत्री कैसे बनाया जा सकता है? स्वयं अल्बानियाई राष्ट्रपति के पास भी इसका स्पष्ट ज़वाब नहीं है। पत्रकारों के पूछे जाने पर कि क्या यह संविधान का उल्लंघन है, बेगज डिएला वाला सवाल टाल गए। अल्बानिया के प्रमुख विपक्षी दल डेमोक्रेटिक पार्टी ने इसे ‘हास्यास्पद’ और ‘असंवैधानिक’ करार दिया है। डेमोक्रेट्स के संसदीय दल के नेता गजमेंद बर्धी ने कहा कि बर्धी ने "प्रधानमंत्री की मसखरी को अल्बानियाई राज्य के कानूनी कृत्यों में नहीं बदला जा सकता।" अल्बानियाई कानूनी विशेषज्ञों ने भी संवैधानिक चुनौतियों की ओर इशारा किया है, क्योंकि वर्तमान कानून एक गैर-मानवीय इकाई को मंत्री पद देने की अनुमति नहीं देता। दरअसल अल्बानिया लंबे समय से अपनी सुरक्षा और अन्य हितों के लिए यूरोपीय संघ की सदस्यता हासिल करने के लिए प्रयास कर रहा है लेकिन बेहद भ्र्ष्टाचार के मुद्दे के कारण उसे यह सदस्यता नहीं मिल पा रही है। भ्र्ष्टाचार से मुक्ति के लिए उसने एक ‘गैर मानव आभासी ईकाई’ पर दांव खेला है। हालांकि विशेषज्ञों की राय में इसके सकारात्मक पहलू भी हो सकते हैं। किंग्स कॉलेज लंदन में पश्चिमी बाल्कन, भ्रष्टाचार और कानून के शासन के जानकार डॉ. एंडी होक्साज का मानना है कि अगर एआई को सही ढंग से पेश किया जाए, तो यह मददगार हो सकता है और भ्रष्टाचार-नियंत्रण के लक्ष्य में डिएला मदद कर सकती है। वित्तीय सेवा कंपनी बाल्कन्स कैपिटल की संस्थापक अनीदा बजराकतारी बिचजा कहती हैं कि अगर यह एआई मंत्री वास्तविक प्रणालियों में विकसित होती है जो सार्वजनिक खरीद में पारदर्शिता और विश्वास में सुधार करती है तो यह रचनात्मक भी हो सकता है। दूसरी ओर यह तथ्य है कि भ्रष्टाचार जैसी जटिल समस्याओं के समाधान के लिए नवीन तकनीकी समाधानों की तलाश एक अहम पहल है लेकिन यह कई गंभीर जोखिमों और चुनौतियों से भरा हुआ कदम है। सबसे बड़ा है जवाबदेही और दायित्त्व का संकट। अगर एआई कोई गलत निर्णय लेती है, जिससे वित्तीय नुकसान होता है या किसी की जान को खतरा होता है, तो उसके लिए जिम्मेदार कौन होगा? क्या डेवलपर? क्या उस मंत्रालय का सचिव? क्या प्रधानमंत्री या फिर खुद एआई अल्गोरिदम? मंत्री एक जवाबदेह व्यक्ति होता है जिसे संसद के सामने जवाब देना होता है और उसके खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव भी लाया जा सकता है। एक एआई सिस्टम को जवाबदेह नहीं ठहराया जा सकता। एआई मॉडल कैसे निर्णय लेते हैं, यह आम नागरिक के लिए समझना मुश्किल होता है। अगर एआई मंत्री का फैसला नागरिकों के खिलाफ जाता है, तो उस फैसले के पीछे का तर्क समझाना और उसकी समीक्षा करना असंभव हो सकता है। एल्गोरिदमिक पूर्वाग्रह का भी अपना जोख़िम है। एआई अपने प्रशिक्षण डेटा से सीखती है। अगर ऐतिहासिक डेटा में मानवीय पूर्वाग्रह (जैसे जाति, लिंग, क्षेत्र के आधार पर भेदभाव) शामिल है, तो एआई उन्हीं पूर्वग्रहों को और मजबूत करके निर्णय लेगी। इससे व्यवस्थागत भेदभाव बढ़ सकता है। इनके अलावा एक गंभीर प्रश्न है सुरक्षा और हैकिंग का। एक एआई सिस्टम साइबर हमलों के प्रति अत्यंत संवेदनशील है। हैकर्स एआई के निर्णयों को तकनीकी चालाकी से अपने हित में बदल सकते हैं। उदाहरण के लिए, सार्वजनिक खरीद  के मामले में, हैकर्स निविदा के परिणामों को अपने पक्ष में करने के लिए एआई में छेड़छाड़ कर सकते हैं। इससे भ्रष्टाचार का एक नया और अदृश्य रूप पैदा हो सकता है, जिसे पकड़ना और भी मुश्किल होगा। लोकतांत्रिक व्यवस्था में एक मंत्री जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधियों का हिस्सा होता है और अप्रत्यक्ष रूप से जनता के प्रति जवाबदेह होता है। एक एआई के पास कोई जनादेश नहीं होता। सबसे बड़ी है कानूनी और संवैधानिक चुनौतियाँ। अधिकांश देशों के संविधान और कानून मंत्री पद के लिए एक जीवित मनुष्य होने की शर्त रखते हैं। एआई को मंत्री बनाना संवैधानिक संकट पैदा कर सकता है। यह एक अत्यंत जटिल कानूनी सवाल है, जिस पर अभी वैश्विक सहमति नहीं है। विशेषज्ञों का कहना है कि तकनीक एक उपकरण है, शासक नहीं। निर्णय लेने की अंतिम जिम्मेदारी हमेशा मनुष्य के पास ही होनी चाहिए।







हरीश शिवनानी

(स्वतंत्र पत्रकारिता - लेखन)

ईमेल : shivnaniharish@gmail.com

मोबाइल :  9829210036

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