प्रधान न्यायाधीश गवई ने कहा कि समकालीन चुनौतियों के आलोक में कानून की व्याख्या करके अदालतें शासन को बेहतर बनाने का रास्ता दिखा सकती हैं, जनता का भरोसा जीत सकती हैं और इस विचार को सुदृढ़ कर सकती हैं कि लोकतंत्र सिर्फ संस्थाओं पर ही नहीं टिका है, बल्कि उन मूल्यों पर टिका है जिन्हें ये संस्थाएं अपनाती और प्रदर्शित करती हैं। उन्होंने कहा कि न्यायपालिका "संरक्षक और उत्प्रेरक" दोनों की भूमिका में है, जो समाज की आधारभूत संरचनाओं की रक्षा करती है तथा राष्ट्र के नैतिक और नैतिक ताने-बाने को मजबूत करने वाले सुधारों को प्रोत्साहित करती है। न्यायमूर्ति गवई ने कहा कि न्यायपालिका की यह उभरती भूमिका उसके पारंपरिक कार्य का एक महत्वपूर्ण विस्तार दर्शाती है जिसे अब तक मुख्य रूप से लिखित कानूनों की सख़्त व्याख्या और लागू कराने के रूप में समझा जाता था।
न्यायाधीश ने कहा, "हालांकि, आज न्यायपालिका से यह अपेक्षा की जा रही है कि वह केवल पाठ्य-सामग्री के प्रयोग से आगे बढ़कर कानून के गहन उद्देश्यों और परिणामों को समझे। दशकों से, यह सक्रिय भूमिका न्यायपालिका की पहचान का केंद्र बन गई है।" उन्होंने कहा कि लोकतंत्र और न्याय को मजबूत करने के लिए उच्चतम न्यायालय की प्रतिबद्धता केवल न्यायिक घोषणाओं तक ही सीमित नहीं है। सीजेआई ने कहा, "उतना ही महत्त्वपूर्ण न्यायपालिका का प्रशासनिक और संस्थागत क्षेत्र में किया गया प्रयास भी है, जहां अदालतों के प्रबंधन, मामलों की प्रक्रिया, डिजिटल ढांचे और न्याय तक पहुंच सुनिश्चित करने की पहलों में किए गए नवाचार एक ऐसी न्यायपालिका की व्यापक दृष्टि को दर्शाते हैं, जो संवेदनशील, प्रभावी और समावेशी है।" गवई ने कहा कि भारत में डिजिटल बुनियादी ढांचे का तेजी से विस्तार हो रहा है, जिसके तहत 95 प्रतिशत से अधिक गांवों में अब इंटरनेट की सुविधा है और 2014 से 2024 के बीच इंटरनेट उपभोक्ताओं की संख्या में लगभग 280 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। उन्होंने कहा कि साथ ही कोविड-19 महामारी की चुनौतियों ने न्यायपालिका सहित सभी क्षेत्रों में प्रौद्योगिकी-संचालित सुधारों के उपयोग को बहुत तेज कर दिया है। सीजेआई ने कहा कि इस तरह न्यायपालिका की भूमिका, न्यायिक और प्रशासनिक-दोनों स्तरों पर, बदलती हुए चुनौतियों का सामना करने और न्याय तक पहुंच को बढ़ावा देने के लिए विकसित हुई है।

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