जहां तक देश और देश में मोदी विरोधियों की बात है तो यह भी अब तक साफ हो गया है कि मोदी के विरोध में जो जो नारे गढ़े गए या अभियानों में जो मोदी विरोध की आवाज बने वह सब विरोधियों पर ही भारी पड़े है। इसकी शुरुआत 2007 में गोदरा कांड के बाद चुनाव के बाद का नारा मौत का सौदागर हो या आज चौकीदार चोर है सभी नारे उल्टे पड़े हैं और देशवासियों ने इन्हें सिरे से नकारा है। चौकीदार चोर है का उत्तर देते हुए स्वयं मोदी ने इसका उपयोग मैं भी चौकीदार का जबावी नारा देकर उत्तर दिया। नारों की यह एक लंबी फेहरिस्त है जिससे देशवासी अवगत है। अब आज वोट चोर गद्दी छोड़ का नारा लगाकर या संविधान बचाओं का नारा देकर मोदी विरोध में हवा बनाने व बिहार आदि के चुनाव जीतने का सपना पाल रहे हैं पर कहीं पहले की तरह सेल्फ गोल ही साबित ना हो जाये इससे नकारा नहीं जा सकता। राममंदिर, कश्मीर में धारा 370 हटाने, कश्मीर युवाओं को मुख्यधारा में लाने, ऑपरेशन सिन्दुर, एयर स्ट्राइक, जनधन खाते, डिजिटल भुगतान, जन औषधी केन्द्र, आयुष्मान योजना, गिग इकोनोमी, रक्षा आयुधों का देश में ही उत्पादन व निर्यात, एमएसएमई सेक्टर, स्टार्टअप, यूनिकोर्न, विदेशी निवेश, सडक परिवहन विकास, आदि आदि सभी क्षेत्रों में विकास का जो दौर दिखाई दे रहा है यह ठोस और त्वरित योजनावद्ध निर्णयों का ही परिणाम है। यह तो केवल बानगी मात्र है। आज आतंकवादी गतिविधियां लगभग समाप्त हो गई, नक्सलवादी गतिविधियां दिखाई नहीं दे रही हैं, सांप्रदायिकता पर रोक लगी है, पत्थरबाजी नहीं दिखती, सपाट यातायात दिखाई दे रहा है यह और इसके अलावा भी बहुत कुछ सामने हैं।
एक बात साफ हो जानी चाहिए कि विश्वसनीयता एक दिन में या एक काम से नहीं बनती। इसके साथ ही केवल व्यक्ति विशेष को निशाना बनाने से भी कोई खास हासिल नहीं हो सकता। अच्छे को अच्छा और बुरे को बुरा कहने की आदत डाले तो शायद आमजनता में अधिक प्रभावी तरीके से अपनी बात रख कर लोगों को अपने पक्ष में किया जा सकता है। जब राष्ट्रीय अस्मिता पर और सेना के पराक्रम को प्रश्नों में उभारा जाता है तो लाख कमियों के बावजूद सच्चा राष्ट्रप्रेमी नागरिक इसे स्वीकार नहीं पाता। यही कारण है कि मोदी जी को जितना निशाना बनाया जाता है मोदी उस निशाने से और अधिक निखार के साथ उभरते आ रहे हैं। आज जब ट्रंप भारत की अर्थ व्यवस्था को नकारते हैं तो यह देशवासियों के गले उतरने वाली बात नहीं होती। इसी तरह से जब ऑपरेशन सिन्दुर पर प्रश्न चिन्ह उठाया जाता है तो आमजन इसे देश के खिलाफ आवाज और सेना के असम्मान के रुप में देखता है। जब संविधान की प्रति उठाकर संविधान बचाओ की बात करते हैं तो उनकी सरकार के समय ही संसद से पास अधिसूचना को सार्वजनिक रुप से फाड़ने को याद करते हैं। जीएसटी को लेकर प्रश्न उठाते हैं तो आज इससे मिल रही राहत को जनता कैसे नकार सकती है। इसलिए सकारात्मक विरोध के साथ आगे आकर ही मोदी और मोदी की नीतियों का पार पा सकते हैं। संसद और विधानसभाओं में गतिरोध का दौर चलता है, खुली चर्चाएं हो नहीं पाती, सत्र सालों साल छोटे होते जा रहे हैं। आधी आधी रात तक होने वाली चर्चाएं अब बीते दिनों की बात हो गई है तो ऐसे में केवल आरोप प्रत्यारोप के भरोसे मोदी पर जीत की बात करना बेमानी होगा। दूसरी बात यह कि हम बड़ी लकीर खींच कर ही दूसरी लकीर को छोटी बता सकते हैं हो इसका उल्टा रहा है और प्रयास लकीर से ही छेड़ छोड़ कर छोटी दिखाने के प्रयास किये जाते हैं तो यह गले नहीं उतरती। यह सब समझने वाली बात हो गई है। मोदी जी की अमृत वेला में शतायु होने की कामना के साथ आज देश उनकी और देख रहा है। ऐसे में मोदी जी के नेतृत्व और निवृति की बात करना पूरी तरह से बेमानी होगी। देश को अभी मोदी जी और उनके जैसे नेतृत्व की आवश्यकता है जिससे आजादी के शताब्दी वर्ष तक देश विश्व की सबसे बड़ी ताकत बन कर उभर सके।
डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा

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