- पंचायती राज विभाग एवं ग्राम्य विकास विभाग के बाद नगरीय विकास विभाग पर भी उठने लगे सवाल
- लोगों का मानना है कि क्या भ्रष्टाचार सिर्फ पंचायतों में है नागरिक निकायों में नहीं?
पंचायतों पर शिकंजा, नगर निकाय पर खामोशी
ग्राम पंचायतों में गबन और अनियमितताओं को लेकर कार्रवाई तेज हुई है, और यह कदम स्वागत योग्य भी है। लेकिन जब नगर निकायों की तरफ नजर दौड़ाई जाती है तो वहां भी हालात किसी से छिपे नहीं हैं। करोड़ों रुपये का बजट आने के बावजूद शहर और कस्बों की तस्वीर बदहाल है। नालियां टूटी पड़ी हैं, सफाई व्यवस्था चरमराई है, सड़कें गड्ढों में तब्दील हैं। सवाल उठता है कि यह पैसा आखिर कहां गया?
क्या नगर निकाय "अस्पृश्य" हैं?
सरकंडी जैसी पंचायत में लाखों का घोटाला हो तो कार्यवाही तुरंत हो जाती है, लेकिन नगर निकायों में करोड़ों की बंदरबांट पर चुप्पी क्यों? क्या वजह है कि नगर पालिका परिषद और नगर पंचायतें प्रशासन की कार्रवाई से "अस्पृश्य" बनी हुई हैं? क्या यहां राजनीतिक दबाव इतना हावी है कि अधिकारी आंख मूंद कर बैठे हैं?
जनता के मन का सवाल
फतेहपुर, बिंदकी, खागा, धाता, हथगाम, असोथर, खखरेडू, जहानाबाद, बहुआ और किशनपुर सहित लगभग सभी नगर पंचायतों में हर जगह लोग पूछ रहे हैं कि नगर निकायों की जांच कब होगी। सफाई कर्मियों की फर्जी हाजिरी, अपूर्ण निर्माण कार्य, टेंडरों में हेराफेरी आदि ये सब काम खुले राज हैं लेकिन कार्रवाई नहीं होती। इससे यही संदेश जाता है कि प्रशासन छोटे स्तर पर तो सख्ती दिखाता है, लेकिन बड़े घोटालों पर चुप्पी साध लेता है। सरकंडी काण्ड ने पंचायतों को आईना दिखा दिया है। अब समय आ गया है कि यही आईना नगर निकायों के सामने भी रखा जाए। यदि प्रशासन वास्तव में भ्रष्टाचार खत्म करने के लिए गंभीर है, तो उसे पंचायत और नगर निकाय दोनों को एक ही तराजू में तौलना होगा। क्योंकि जनता का सवाल सीधा है – "क्या नगर निकाय भ्रष्टाचार से मुक्त हैं, या फिर वहां की फाइलों पर सिर्फ सत्ता का ताला लगा है?"

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