6 सितंबर, शनिवार को अनंत चतुर्दशी का पावन पर्व मनाया जाएगा। भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को पड़ने वाला यह दिन भगवान विष्णु की पूजा और गणपति विसर्जन दोनों का विशेष संयोग है। अनंत चतुर्दशी को अनंत चौदस के नाम से भी जाना जाता है. इस दिन भक्त भगवान विष्णु, देवी यमुना और शेषनाग की पूजा करते हैं और पवित्र अनंत सूत्र बांधते हैं. शास्त्र मानते हैं कि इस दिन व्रत रखकर अनंत सूत्र धारण करने से सभी कष्ट दूर होते हैं और जीवन में सुख-समृद्धि आती है। इस वर्ष शनिवार का अद्भुत योग बन रहा है, जिससे इस पर्व का महत्व कई गुना बढ़ गया है। खास यह है कि इस बार अनंत चतुर्दशी को सुकर्मा, रवि योग के साथ धनिष्ठा व शतभिषा नक्षत्र का शुभ संयोग बन रहा है। मंगलकारी योग में भगवान गणेश और विष्णु की पूजा करने से सकल मनोरथ सिद्ध होते हैं, साथ ही सभी प्रकार के संकटों से मुक्ति मिलेगी। मान्यता है कि गणपति गणेश चतुर्थी पर विराजमान हुए थे और अनंत चर्तुदशी को मंगलकामना के साथ भक्तों से विदा लेते हैं। अनंत चतुर्दशी का पर्व विष्णु पूजा और गणपति विसर्जन का अद्वितीय संगम है। श्रद्धालु व्रत, पूजन, दीपदान और दान-पुण्य कर सुख-समृद्धि की कामना करते हैं और भगवान गणेश को भावभीनी विदाई देते हैं
पूजा का शुभ मुहूर्त
तिथि आरंभ : 6 सितंबर प्रातः 3ः12 बजे
समापन : 7 सितंबर रात्रि 1ः41 बजे
पूजन काल : 6 सितंबर प्रातः 6ः02 बजे से रात्रि 1ः41 बजे तक
गणपति विसर्जन का समय
गणेशोत्सव का समापन इसी दिन होता है। भक्त “गणपति बप्पा मोरया” के जयघोष के साथ प्रतिमाओं का विसर्जन करेंगे। प्रातः 7ः36 से 9ः10, अपराह्न 12ः19 से 5ः02, सायं 6ः37 से 8ः02 व रात्रि 9ः28 से 1ः45 (7 सितंबर तक).
पौराणिक कथा : युधिष्ठिर और अनंत भगवान
महाभारत में वर्णन है कि जुए में सब कुछ हारने के बाद पांडव वनवास में थे। तब भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को अनंत चतुर्दशी का व्रत करने का उपदेश दिया। युधिष्ठिर ने परिवार सहित यह व्रत किया और अनंत भगवान की पूजा की। इसके परिणामस्वरूप उन्हें पुनः हस्तिनापुर का राजपाट प्राप्त हुआ।
अनंत सूत्र का रहस्य और शक्ति
अनंत चतुर्दशी की पूजा में सूत से बना विशेष धागा अनंत सूत्र धारण किया जाता है। यह धागा हल्दी से रंगकर तैयार किया जाता है और इसमें 14 गांठें लगाई जाती हैं। प्रत्येक गांठ भगवान विष्णु के स्वरूप का प्रतीक है, अनंत, ऋषिकेश, पद्मनाभ, माधव, वैकुण्ठ, श्रीधर, त्रिविक्रम, मधुसूदन, वामन, केशव, नारायण, दामोदर, गोविन्द और विष्णु। पुरुष इसे दाहिने हाथ में व महिलाएं इसे बाएं हाथ में बांधती हैं। मान्यता है कि इसे धारण करने से जीवन में अनंत सुख और समृद्धि आती है।
पूजा विधि
स्नान करके घर और पूजा स्थल को स्वच्छ करें। कलश स्थापना कर उस पर कुश से भरा लोटा रखें। भगवान विष्णु की प्रतिमा या चित्र के समक्ष दीपक, धूप, पुष्प और नैवेद्य अर्पित करें। अनंत सूत्र को पूजन में रखकर भगवान विष्णु को अर्पित करें। विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ और सत्यनारायण कथा का विशेष महत्व है। पूजा के बाद अनंत सूत्र को धारण करें।
14 दीपकों की परंपरा
अनंत चतुर्दशी पर प्रदोष काल में 14 दीपक जलाने का विशेष महत्व है। इन्हें घर के अलग-अलग स्थानों पर रखा जाता है, पूजा घर, रसोई, तुलसी के पास, मुख्य द्वार, तिजोरी व धन स्थान, पानी के नल के पास, घर के चारों कोनों में, छत पर, पितरों के लिए बाहर, सीढ़ियों और आंगन में, इस परंपरा से माना जाता है कि घर में शांति, लक्ष्मी कृपा और समृद्धि बनी रहती है।
गणेश उत्सव का समापन
अनंत चतुर्दशी का महत्व इसलिए भी बढ़ जाता है क्योंकि इसी दिन दस दिवसीय गणेश उत्सव का समापन होता है। भक्त बड़ी धूमधाम और उत्साह के साथ ’गणपति बप्पा मोरया’ के जयघोष के बीच गणेश प्रतिमा का विसर्जन करते हैं। यह केवल विदाई का क्षण नहीं, बल्कि यह संदेश भी देता है कि भगवान गणेश साकार रूप से विदा होकर निराकार रूप में भक्तों के साथ सदा रहते हैं।
लोक परंपराएँ और सांस्कृतिक रंग
भारत के विभिन्न हिस्सों में अनंत चतुर्दशी अलग-अलग परंपराओं से जुड़ी है, उत्तर भारत में व्रत और अनंत सूत्र बांधने की परंपरा प्रमुख है। महाराष्ट्र और गुजरात में इसे गणपति विसर्जन के भव्य उत्सव के रूप में मनाया जाता है। दक्षिण भारत में इसे अनंतपद्मनाभ व्रत के नाम से जाना जाता है। ग्रामीण अंचलों में महिलाएँ घर सजाती हैं, विशेष पकवान बनाती हैं और पड़ोसियों के साथ मिलकर सामूहिक पूजा करती हैं।
धार्मिक महत्व
अनंत चतुर्दशी, हिंदू धर्म का ऐसा पर्व है जिसमें भक्ति, श्रद्धा और अनुशासन तीनों का सुंदर संगम होता है। यह दिन भगवान विष्णु को समर्पित है, जिनका स्वरूप “अनंत“ यानी असीम और अखंड है। अनंत चतुर्दशी का व्रत केवल सांसारिक बंधनों से मुक्ति का मार्ग नहीं दिखाता, बल्कि जीवन के संघर्षों को पार करने की शक्ति भी प्रदान करता है। यही कारण है कि इसे मोक्ष की प्राप्ति का द्वार भी कहा गया है। शास्त्रों के अनुसार, इस दिन व्रत और पूजा करने से सभी दुख-दर्द समाप्त होते हैं। परिवार में सुख-समृद्धि आती है। विष्णु और लक्ष्मी दोनों की कृपा प्राप्त होती है। व्यक्ति के जीवन में स्थिरता और सफलता आती है।
सुरेश गांधी
वरिष्ठ पत्रकार
वाराणसी



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