पितृपक्ष में तीन पीढ़ियों तक के पिता पक्ष के तथा तीन पीढ़ियों तक के माता पक्ष के पूर्वजों के लिए तर्पण किया जाता हैं। इन्हीं को ‘पितर’ कहते हैं। जिस तिथि को माता-पिता का देहांत होता है, उसी तिथि को पितृपक्ष में उनका श्राद्ध किया जाता है। शास्त्रों के अनुसार पितृपक्ष में अपने पितरों के निमित्त जो अपनी शक्ति सामर्थ्य के अनुरूप शास्त्र विधि से श्रद्धापूर्वक दान करता है, उसके सकल मनोरथ सिद्ध होते हैं और घर-परिवार, व्यवसाय तथा आजीविका में हमेशा उन्नति होती है। एक प्रसंग याद आ रहा है।भारतीय संस्कृति के अग्रदूत और गीताप्रेस गोरखपुर के संस्थापक स्वर्गीय हनुमानप्रसाद पोद्दार से एक जिज्ञासु ने प्रश्न किया: ‘क्या सचमुच श्राद्धपक्ष के दौरान पितरों को दिया गया पिंडदान या फल-फूल आदि की तर्पण-अंजलि पितरों तक पहुँचती है?’पोद्दारजी ने मुस्कराते हुए उत्तर दिया:’राजस्थान के किसी दूरदराज गाँव से केरल के किसी दूरदराज़ गाँव में रह रहे किसी व्यक्ति को अगर हम सौ रुपये का मनीऑर्डर भेजते हैं तो वह केरल में रह रहे उस व्यक्ति तक पहुंचता है कि नहीं?
’पहुंचता है।‘उस व्यक्ति ने तुरंत उत्तर दिया।‘ ‘बस वैसे ही किसी पूर्व-नियोजित विधि से पितर-दान भी संबंधित पितर तक पहुंचता है।‘
(डॉ० शिबन कृष्ण रैणा)

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