श्रीमद राजचंद्र और वीरचंद गांधी
युवा गांधी के प्रमुख जैन धर्मगुरु श्रीमद राजचंद्र और वीरचंद गांधी के साथ भी घनिष्ठ संबंध थे। गांधी पर श्रीमद राजचंद्र का प्रभाव इतना गहरा था कि उन्हें अक्सर ष्गांधी का गुरुष् कहा जाता है। व्यक्तिगत रूप से मिलने के अलावा, दोनों के बीच लंबा पत्राचार भी हुआ था, और बाद में गांधी ने राजचंद्र के मार्गदर्शन को नैतिक रूप से सही रास्ते पर बने रहने का श्रेय दिया। वीरचंद गांधी युवा मोहनदास के सहयोगी भी थे, और उन्होंने 1893 में शिकागो में प्रथम विश्व धर्म संसद में जैन परंपरा का प्रतिनिधित्व किया।19 दिवसीय वार्ता -
वर्ष - 1944 सितंबर माह में जब जिन्ना से मिलने गांधी जी मुंबई आए थे, उस समय कांदावाड़ी जैन स्थानक रमें चातुर्मास हेतु विराजमान स्थानकवासी जैन साध्वी श्री उज्ज्वला कुँवर जी म. से स्वामी आनंद की प्रेरणा से गांधी जी ने उन्नीस दिन तक धार्मिक, सामाजिक व राजनीतिक मुद्दों पर गहन वार्ता संपन्न की थी जिसे इतिहास में गाँधी उज्ज्वल वार्ता के नाम से जाना जाता है।
मैंने महान पुण्य उपार्जन किया-
एक दिवस गांधी को अपने मौन दिवस में यह विचार आया कि स्थानकवासी जैन साध्वी महासती श्री उज्ज्वला कुँवर जी को अपने हाथ से आहार पानी देने का भी लाभ लिया जाय। पर दूसरे ही क्षण यह प्रश्न पैदा हुआ कि क्या वह मेरे हाथ से कुछ ले सकेंगे? दूसरे दिन महात्माजीने अपनी यह बात महासतीजी से कह दी। महासतीजीने कहा हमें अपने नियमानुसार श्रावक के हाथ से आहार पानी लेने में कोई एतराज न होगा। स्वीकृति मिलने पर गांधी जी प्रसन्न हुए और बड़े ही अहोभाव - भक्तिभाव पूर्वक महासतीजी को आहार बहराया। बेशक महात्मा गांधी का जन्म जैन कुल में नहीं हुआ पर उन्होंने अपना पूरा जीवन में जैन गुणों, जैन सिद्धांतों का पालन करते हुए जिया।
श्रमण डॉ. पुष्पेन्द्र
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