सीहोर : श्री माधवमहाकाल आरोग्य आश्रम परिवार के तत्वाधान में दो नवंबर को भव्य अन्नकूट महोत्सव - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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रविवार, 26 अक्टूबर 2025

सीहोर : श्री माधवमहाकाल आरोग्य आश्रम परिवार के तत्वाधान में दो नवंबर को भव्य अन्नकूट महोत्सव

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सीहोर। हर साल की तरह इस साल भी श्री माधवमहाकाल आरोग्य आश्रम परिवार के तत्वाधान में दो नवंबर को भव्य अन्नकूट महोत्सव का आयोजन राष्ट्रीय कथा व्यास पंडित मोहित राम पाठक के मार्गदर्शन में आयोजित किया जाएगा। इसको लेकर आज आश्रम परिवार के द्वारा बैठक का आयोजन किया गया। इस मौके पर संस्कार मंच के संयोजक जितेन्द्र तिवारी का यहां पर मौजूद परिवार के सदस्यों ने स्वागत किया। इस मौके पर कथा व्यास पंडित श्री पाठक ने कहाकि सेवा और दान के काम में हमेशा आगे रहना इसलिए ज़रूरी है, क्योंकि यह व्यक्ति और समाज दोनों के लिए कल्याणकारी होता है। यह न केवल ज़रूरतमंदों की मदद करता है, बल्कि देने वाले को भी मानसिक संतुष्टि और खुशी देता है।


हमारे श्री तिवारी ऐसे सेवक है जो हमेशा दान और सहयोग के कार्य में रहते है।  उनके द्वारा करीब 150 परिवार को गत दिनों दीपावली के अवसर पर राशन सामग्री के अलावा अन्य वस्त्र और आतिशबाजी का वितरण किया गया था। अपने सम्मान पर आभार व्यक्त करते हुए संस्कार मंच के संयोजक श्री तिवारी ने बताया कि हर समय सेवा कार्य में तत्पर रहना चाहिए। धनी आदमी ही दान नही करता है, दान कोई भी कर सकता है, दिल होना चाहिए। सर्वे भवंतु सुखिन सर्वे संतु निरामया... सिर्फ एक धारणा नहीं है। यह मूर्त रूप ले सके, इसके लिए व्यवस्था भी बनाई गई है। दान उसी व्यवस्था का एक हिस्सा है। कहा जाता है कि बांटने से दुख घटते हैं, जबकि सुख बढते हैं। दान सुख की साझेदारी का जरिया है। अगर रूढिय़ों से मुक्त होकर दान की सच्ची अवधारणा को समझा और उस पर अमल किया जा सके तो यह मनुष्यता के समग्र कल्याण का माध्यम बन सकता है। हमारी सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विरासत दोनों में ही दान एक परंपरा के रूप में स्थापित है, जिसकी बडी महिमा बताई गई है। माना गया है कि सहृदयता और सहायता करने की सोच के साथ किसी जरूरतमंद को कुछ देने का ही अर्थ दान है। अपनी वस्तु पर से अधिकार हटाकर, जिसको दिया जा रहा है उसे उसका स्वामी बना देना, दान कहलाता है। यह अधिकार अगर किसी सुपात्र के हिस्से आता है तो देने वाले के मन को संतोष मिलता है और समाज के लिए भी हितकारी सिद्ध होता है। यानी जो वस्तु अपनी इच्छा से किसी को देकर वापस न ली जाए और साथ ही जिसे दी जा रही है उसके भी काम आए, वही सही अर्थों में दान है। भारतीय परंपरा में दान को कर्तव्य और धर्म दोनों ही माना जाता है। यही कारण है कि दान की महिमा को हमारी सभ्यता में बडे ही धार्मिक और सात्विक रूप में स्वीकार किया गया है। इसे बहुत कल्याणकारी कर्म माना गया है, क्योंकि इससे त्याग करने की क्षमता बढती है।

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