कृष्णा से रामेश्वरम, वृंदावन से अयोध्या व महाकाल की नगरी उज्जैन से बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी तक यह रोशनी न केवल शहरों को बल्कि आत्माओं को भी प्रकाशित कर रही है। दीपावली संस्कारों, संस्कृति, भक्ति और मानवता का संगम है। आज हर दीप के प्रकाश में यही संदेश समाहित है, सत्य और अच्छाई हमेशा विजयी होती है। हर दीया, हर रंगोली, हर आरती इस संदेश को दोहराती है कि अंधकार पर प्रकाश की विजय सदा होती है। काशी, जो सदियों से आध्यात्मिक चेतना का केंद्र रही है, आज दीपों की रौशनी से नहाई हुई प्रतीत हो रही है। दशाश्वमेध घाट से लेकर अस्सी घाट तक दीपों की कतारें भक्तों के हृदयों में भक्ति और श्रद्धा का संचार कर रही हैं। बाबा विश्वनाथ और अन्नपूर्णा मंदिर में विशेष पूजा, आरती और श्रृंगार ने इस पर्व को और भी पावन बना दिया है
काशी की कंदीलें, गंगा के दीप : भक्ति और दर्शन का संगम
अयोध्या की ही तरह काशी में भी आज अद्भुत छटा बिखरी हुई है। माँ गंगा के तट पर बसे इस अविनाशी नगर में दीपावली मानो देवताओं का उत्सव बन जाती है। दशाश्वमेध घाट से लेकर अस्सी घाट तक दीपदान की अविरल श्रृंखला बह रही है। घाटों पर सजाए गए दीप जैसे जल की लहरों पर नृत्य करते हुए कह रहे हों, “प्रकाश सदा रहेगा, अंधकार मिट जाएगा।” काशी विश्वनाथ मंदिर में आज विशेष श्रृंगार, गंगा आरती और ‘अन्नकूट महोत्सव’ का आयोजन हुआ है। भक्तों की भीड़ इतनी अधिक कि गलियों में दीपों की रेखा किसी दिव्य मार्ग जैसी लग रही है। पुरोहितों के मंत्रोच्चार और घंटाध्वनि के बीच भक्तजन ‘हर हर महादेव’ का उच्चारण करते हुए माँ अन्नपूर्णा और बाबा विश्वनाथ से समृद्धि का आशीष मांग रहे हैं। सीईओ विश्वभूण मिश्र कहते है वाराणसी, जिसकी पावन घाटों की महिमा सदियों से अमर है, आज दीपावली के विशेष प्रकाश से जगमगा रही है। काशी के प्राचीन मंदिरों में पूजारी और श्रद्धालु मिलकर ऐसा माहौल बना रहे थे कि मानो समय थम गया हो और केवल भक्ति और दिव्यता का साम्राज्य शेष रह गया हो। गंगा नदी के तट पर लगाई गई आकाशदीप की कतारें ऐसा दृश्य प्रस्तुत कर रही थीं, मानो आकाश और पृथ्वी एक हो गए हों। प्रत्येक दीप एक कहानी कह रहा था, सत्य की, धर्म की और मानवता की। हर घर अपने आप में एक कला का केंद्र बन गया था। रंगोली की अलग-अलग आकृतियाँ, फूल, दीपक, ज्यामितीय आकार, हर घर में आनंद और सौंदर्य का संचार कर रही थीं। छोटे बच्चे और महिलाएँ मिलकर रंग-बिरंगे पाउडर, फूल और हल्दी-कुमकुम से घरों के द्वारों और आँगनों को सजाते हुए एक सांस्कृतिक संवाद प्रस्तुत कर रहे थे। मिट्टी के दीयों की सजावट और उन्हें घर-घर जलाना यह संदेश देता है कि छोटी-छोटी रोशनी भी अंधकार को मिटा सकती है। प्रत्येक दीया केवल रोशनी का प्रतीक नहीं, बल्कि यह हमारी आशा, प्रेम और सामूहिक विश्वास का संदेश भी है।आत्मदीप बनो
दीपावली का दार्शनिक संदेश सबसे गहरा है, अंधकार पर विजय केवल बाहर की नहीं, भीतर की भी होनी चाहिए। जैसे एक दीपक जलाने से कमरे का अंधकार मिट जाता है, वैसे ही ज्ञान और सद्गुणों का प्रकाश मनुष्य के भीतर के संशय और लोभ का अंधकार मिटा देता है। उपनिषदों में कहा गया है, “तमसो मा ज्योतिर्गमय” अर्थात् अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलो। भगवान श्रीराम के 14 वर्ष के वनवास के बाद लौटने की कथा केवल ऐतिहासिक घटना नहीं, बल्कि यह प्रतीक है कि जब धर्म, सत्य और मर्यादा लौटती है, तो अंधकार अपने आप मिट जाता है। आज दीपावली पर हर मनुष्य जब अपने घर में दीप जलाता है, तब वह अपने भीतर के भय, दुर्भावना और स्वार्थ को भी जला देता है।घर-आँगन में माँ लक्ष्मी का आगमन
सुबह से ही शहरों और गांवों में दीपावली की तैयारियों का उल्लास फैला रहा। घरों की रंगोली, गोबर से बने दीपों की कतारें, खिड़कियों में जलती कंदीलें, बच्चों की खिलखिलाहट और मिठाइयों की सुगंध, यह सब मिलकर भारतीय गृहस्थ जीवन की पवित्रता को प्रदर्शित कर रहे हैं। आज शाम जैसे ही सूर्यास्त हुआ, हा किसी ने माँ लक्ष्मी, गणेश और कुबेर की आराधना की. सनातनियों में विश्वास हैं कि इस रात जब दीप जलता है तो लक्ष्मी स्वयं उस घर में प्रवेश करती हैं जहाँ सफाई, पवित्रता और श्रद्धा होती है। इस दिन का सबसे बड़ा प्रतीक दीपक है, मिट्टी से बना, तेल से भरा, रुई से सजा। मिट्टी से बना दीप इस बात का प्रतीक है कि साधारण जन भी प्रकाश का स्रोत बन सकता है।
बाजारों की रौनक, अर्थव्यवस्था का उत्सव
दीपावली केवल धार्मिक नहीं, आर्थिक दृष्टि से भी भारत की आत्मा है। पिछले कई दिनों से बाजारों में जो भीड़ उमड़ रही थी, आज उसका चरम देखने को मिला। सुनारों की दुकानों पर सोने-चांदी के सिक्कों की चमक, मिठाई की दुकानों पर कतारें, फूलों की महक और दीयों की बिक्री ने पूरे देश को आर्थिक गति दी है। यह पर्व छोटे दुकानदारों और कारीगरों के लिए उम्मीद का प्रतीक बनता है। इस वर्ष प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘वोकल फॉर लोकल’ संदेश के बाद मिट्टी के दीयों, घरेलू उत्पादों और स्वदेशी वस्तुओं की बिक्री में अभूतपूर्व वृद्धि दर्ज की गई है। वाराणसी के गोदौलिया, लखनऊ के हजरतगंज, कानपुर के नवीन मार्केट, दिल्ली के सरोजिनी नगर से लेकर मुंबई के भुलेश्वर तक बाजारों में रौनक देखते ही बनती है।
पर्यावरण और स्वदेशी चेतना का नया स्वरूप
आधुनिक भारत की दीपावली अब केवल आतिशबाजी की नहीं, बल्कि पर्यावरण-संवेदनशील दीपावली की बन चुकी है। विद्यालयों और सामाजिक संगठनों ने इस बार “हर घर दीया, हर मन हरियाली” का अभियान चलाया। बच्चों ने प्लास्टिक की सजावट से परहेज़ कर प्राकृतिक रंगों और मिट्टी के दीयों से सजावट की। काशी, अयोध्या, प्रयागराज और लखनऊ में जगह-जगह वृक्षों के नीचे दीये रखे गए, संदेश देते हुए कि “प्रकाश केवल घरों का नहीं, प्रकृति का भी हो।”
अयोध्या दीपोत्सव का प्रशासनिक चमत्कार
अयोध्या दीपोत्सव के आयोजन में प्रशासन और जनता का अद्भुत समन्वय देखने को मिला। करीब 26 लाख दीपों के साथ यह आयोजन फिर से विश्व कीर्तिमान की ओर अग्रसर है। सैकड़ों वालंटियर्स, एनसीसी कैडेट्स, छात्र, स्वयंसेवी संस्थाएँ और साधु-संत इस कार्यक्रम में शामिल हुए। ड्रोन शो, रामायण झांकी, और संगीत समारोह ने इस आयोजन को सांस्कृतिक उत्सव का रूप दे दिया है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपने संबोधन में कहा, “दीपावली का अर्थ केवल रोशनी नहीं, बल्कि वह संस्कृति है जिसने हमें अपने पूर्वजों से जोड़ रखा है। अयोध्या का दीपोत्सव भारत के गौरव, आत्मविश्वास और वैश्विक सांस्कृतिक पहचान का प्रतीक है।”
भक्ति और उत्सव का संगम, मंदिरों से मोहल्लों तक
चाहे वाराणसी का बाबा विश्वनाथ मंदिर हो, मथुरा का श्रीकृष्ण जन्मस्थान, या जयपुर का गोविंददेव मंदिर, हर जगह आज श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ी है। सड़कों पर रंग-बिरंगी झालरें, मंदिरों में फूलों का श्रृंगार और भक्तों के चेहरों पर प्रसन्नता झलक रही है। गांवों में बच्चे मिट्टी के दीये सजाकर आंगन में पंक्तिबद्ध करते हैं, महिलाएं मंगल गीत गाती हैं, “आओ लक्ष्मी माता, आओ गणेशा राजा...” यह वही लोक-संस्कृति है जिसने सदियों से दीपावली को केवल धर्म का नहीं, बल्कि जन-जीवन का उत्सव बनाया है।
दीपदान और सामाजिक समरसता का संदेश
आज कई स्थानों पर ‘एक दीया शहीदों के नाम’, ‘एक दीया मातृभूमि के नाम’, और ‘एक दीया पर्यावरण के नाम’ जैसी मुहिमें चल रही हैं। काशी के पुलिस लाइन मैदान में आयोजित कार्यक्रम में जवानों, पुलिस कर्मियों और नागरिकों ने दीप जलाकर वीर शहीदों को नमन किया। इसी प्रकार बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के छात्र संघ द्वारा ‘दीप शिक्षा के लिए’ अभियान चलाया गया, जिसमें गरीब बच्चों को पुस्तकें और दीप भेंट किए गए।
भारतीय दर्शन में दीप का प्रतीक
भारतीय दर्शन में दीप का स्थान अत्यंत पवित्र है। वेदों में इसे “अग्नि देवता का प्राकट्य” कहा गया है। भक्ति आंदोलन में तुलसीदास से लेकर मीरा तक ने दीप को आत्मा का प्रतीक माना। तुलसीदास ने ‘रामचरितमानस’ में लिखा, “जग मग सगरी अयोध्या हुई, मंगल भवन अमंगल हारी।” दीप का अर्थ केवल प्रकाश नहीं, बल्कि संयम, तप, और सत्कर्म का द्योतक है। तेल तपस्या है, बत्ती श्रद्धा है, और लौ जीवन का लक्ष्य, यही गूढ़ संदेश हर दीप में निहित है।
आधुनिक भारत में दीपावली, नई दिशा
आज जब भारत विश्व मंच पर अपनी सांस्कृतिक पहचान को पुनः स्थापित कर रहा है, दीपावली का स्वरूप भी उस आत्मविश्वास का प्रतीक बन गया है। विदेशों में बसे भारतीयों ने लंदन, न्यूयॉर्क, सिडनी और दुबई तक दीपावली के पर्व को भारतीय गौरव के साथ मनाया है। यानी दीपावली अब सीमाओं से परे ‘वैश्विक भारतीयता’ की पहचान बन चुकी है।
समाज में परिवर्तन का दीप
इस दीपावली पर सामाजिक संस्थाओं ने निर्धन परिवारों तक प्रकाश पहुँचाने का संकल्प लिया है। अनाथालयों, वृद्धाश्रमों, झुग्गी बस्तियों में बच्चों ने स्वयं जाकर दीप जलाए। यह बताने के लिए कि दीपावली केवल अमीरों का नहीं, सबका पर्व है। जहाँ प्रकाश पहुंचे, वहाँ समरसता और समानता भी जन्म ले।
भविष्य का संदेश, आत्मप्रकाश का युग
आज की दीपावली हमें यह स्मरण कराती है कि यदि प्रत्येक व्यक्ति अपने भीतर का दीप जलाए तो समाज में कोई अंधकार नहीं रहेगा। विकास का दीप तभी सच्चा है जब उसमें नैतिकता की लौ हो। सुख का दीप तभी स्थायी है जब उसमें संवेदना का तेल हो। और जीवन का दीप तभी सुंदर है जब उसमें सत्य की ज्योति हो।
रोशनी से भर उठे जीवन का हर कोना
गोधूली बेला के बाद जब रात गहरी हुई और दीपों की पंक्तियां आकाश से संवाद की, तब यह भारत एक बार फिर कहा, “हमारे भीतर का प्रकाश कभी नहीं बुझेगा।” दीपावली केवल एक रात्रि की उजास नहीं, बल्कि संस्कारों की दीर्घ परंपरा, सभ्यता का आलोक और मनुष्य के भीतर के देवत्व की अभिव्यक्ति है। आज के इस पर्व पर जब करोड़ों दीप एक साथ जल रहे हैं, तब यह केवल शहरों का नहीं, आत्माओं का उत्सव है। काशी से अयोध्या, वृंदावन से रामेश्वरम तक, यह रोशनी साक्षी है कि भारत आज भी ज्योतिर्मय है, सत्य और धर्म की राह पर अग्रसर है।
मिठाई और स्वाद का महोत्सव
दीपावली केवल रोशनी का पर्व नहीं, बल्कि मिठाई और स्वाद का भी त्योहार है। इस अवसर पर हलवा, लड्डू, बर्फी, कालाकंद और पेड़े हर घर में बनते हैं। मिठाई की दुकानों पर ग्राहकों की भीड़ और स्थानीय कारीगरों की मेहनत इसे और भी जीवंत बनाती है। हर मिठाई में परिवार और मित्रता की मिठास छिपी होती है। बच्चे और बुजुर्ग समान रूप से इस मिठास का आनंद लेते हैं। कुछ मिठाईयाँ विशेष रूप से भगवान लक्ष्मी और गणेश जी को अर्पित की जाती हैं, ताकि घर में समृद्धि और खुशहाली बनी रहे।
दीपावली का संदेश
दीपावली केवल एक त्योहार नहीं, बल्कि जीवन की शिक्षा है। यह हमें यह याद दिलाती है कि चाहे जीवन में कितनी भी कठिनाइयाँ हों, प्रेम, भक्ति और सत्य की ज्योति हमेशा अंधकार को चीरती है। आज जब पूरा भारत दीपों की रौशनी में नहा रहा है, तब हमें यह समझना चाहिए कि यह रोशनी केवल घरों को नहीं, बल्कि हमारे हृदयों और समाज को भी प्रकाशित कर रही है। यह पर्व हमें सौहार्द, समृद्धि, आध्यात्मिक उन्नति और सांस्कृतिक समरसता का संदेश देता है। अंततः, दीपावली हमें यह सिखाती है कि जीवन में जितनी भी बाधाएँ हों, जब हम अपने भीतर की ज्योति को जगाते हैं, तो अंधकार हमेशा हारता है और उजाले का साम्राज्य स्थापित होता है। यही है दिवाली का सार और संदेश।
सुरेश गांधी
वरिष्ठ पत्रकार
वाराणसी




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