दिवाली और छठ पर्व से पहले बाजारों में रौनक और खरीदारी का उत्साह चरम पर है। इस बार त्योहार न सिर्फ खुशियों का प्रतीक है, बल्कि भारतीय उत्पादों की ताकत को भी दिखा रहा है। व्यापारियों और उनसे जुड़े संगठनों के अनुसार, कपड़े, घरेलू सजावट, बर्तन, गिफ्ट आइटम और ज्वेलरी में लोकल ब्रांड्स की मांग सबसे ज्यादा रहेगी। वहीं सस्ते इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स, छोटे प्लास्टिक आइटम और खिलौनों में कुछ हद तक चीनी माल की खपत बढ़ सकती है। मतलब साफ है इस बार भी देशभर में लोकल फॉर वोकल के स्वर्णिम असर की झलक न सिर्फ देखने को मिलेगी, बल्कि व्यापारिक संगठनों का दावा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ‘लोकल फॉर वोकल’ अपील के साकार होने का असर बाजार में दिखने भी लगा है. यानी इस त्योहारी सीजन में लोकल प्रोडक्ट्स की चमक के साथ कुछ सस्ते चीनी आइटम की मांग बनी रहेगी
भारतीय उत्पादों की चमक, चीनी सामान को झटका
इस बार ग्राहक “वोकल फॉर लोकल” पर पूरा जोर दे रहे हैं। मिट्टी के दीए, हस्तनिर्मित लक्ष्मी-गणेश की मूर्तियां, हस्तकला से बने शुभ-लाभ और ओम के चिन्हों की जबरदस्त बिक्री हो रही है। अनुमान है कि चीनी सामान के बहिष्कार से चीन को 1.25 लाख करोड़ रुपये तक का नुकसान हुआ है।
लोकल ब्रांड्स की धमक
कपड़े, साड़ी और फैशन उत्पादों में लगभग 85 से 90 फीसदी ग्राहक भारतीय ब्रांड्स चुन रहे हैं। मिट्टी, लकड़ी और हस्तशिल्प सजावट में “मेड इन इंडिया” का दबदबा है। इलेक्ट्रॉनिक और घरेलू उपकरणों में भी स्थानीय ब्रांड्स के ऑफर और योजनाएं ग्राहकों को आकर्षित कर रही हैं।
कहां बनी रहेगी चीनी माल की मांग?
छोटे इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स और बच्चों के खिलौने।
सस्ते प्लास्टिक और सजावटी आइटम।
उच्च गुणवत्ता वाले स्मार्टफोन और स्पेसिफिक गैजेट्स में कुछ चीनी आयात जारी।
त्योहारी सीजन में आर्थिक प्रभाव
लोकल ब्रांड्स की बिक्री बढ़ने से स्थानीय कारीगरों और उद्योगों को फायदा।
सस्ते चीनी माल की खपत थोड़ी बढ़ने के बावजूद भारतीय उत्पादन में मजबूती।
सरकार की “मेड इन इंडिया” पहल, उपभोक्ता भरोसा और राजनीतिक/सामाजिक दबावों से लोकल विकल्पों का दबदबा कायम।
चीनी बनाम भारतीय विकल्प : संभावित खपत
श्रेणी चीनी माल की खपत भारतीय विकल्प टिप्पणियाँ
इलेक्ट्रॉनिक उपकरण 25 से 30 फीसदी 70 से 75 फीसदी महंगे गैजेट्स में चीनी माल, सस्ते भारतीय विकल्प
घरेलू उपकरण 15 से 20 फीसदी 80 फीसदी ब्रांड्स का भरोसा और त्योहार ऑफर
सजावटी / प्लास्टिक आइटम्स 30 से 35 फीसदी 65 फीसदी मिट्टी, लकड़ी और हस्तशिल्प में लोकल हावी
कपड़े / फैशन 10 से 15 फीसदी 85 से 90 फीसदी “वोकल फॉर लोकल” की जोरदार प्रतिक्रिया
खिलौने / छोटे इलेक्ट्रॉनिक 35 से 40 फीसदी 60 फीसदी बच्चों के सस्ते विकल्प में चीनी माल बनी रहेगी
खाद्य / ड्राई फ्रूट्स 5 से 10 फीसदी 90 फीसदी भारतीय उत्पादों का दबदबा
त्योहारी सीजन : लोकल प्रोडक्ट्स हावी, चीनी माल की खपत सिर्फ कुछ श्रेणियों में बढ़ेगी”
वर्तमान आंकड़े और ट्रेंड्स
1. विदेशी आयात में बढ़ोतरी : इंडिया ने चीन से आयात बड़ी मात्रा में बढ़ाया है। उदाहरण स्वरूप, वित्त वर्ष 2024-25 में भारत ने लगभग न्ै$113.45 अरब के सामान चीन से मंगाए, जो कि पिछले वर्ष से लगभग 11-12 फीसदी ज्यादा है।
2. ट्रेड डेफिसिट बढ़ा है : इस बढ़े हुए आयात के कारण भारत-चीन का व्यापार घाटा भी रिकॉर्ड स्तर पर है, करीब $99.2 अरब।
3. उद्योगों में निर्भरता : कई जरूरी वस्तुएँ और औद्योगिक इनपुट जैसे कि इलेक्ट्रॉनिक पार्ट्स, मशीनरी, कैमिकल्स, एपीआई (दवा बनाने की कच्ची सामग्री) आदि में चीन पर निर्भरता बढ़ी है।
4. लोकल प्रोडक्ट्स और बायोकॉट की प्रवृत्ति : राजनीतिक/सामाजिक स्तर पर “मेक इंन इंडिया”, चीनी माल का बहिष्कार आदि ट्रेंड मजबूत हो रहे हैं, खासकर उपभोक्ता स्तर पर। लेकिन ये हमेशा आर्थिक व्यवहार में बहुत तीव्र परिवर्तन नहीं करते, क्योंकि कीमत, सुविधा, गुणवत्ता आदि भी बड़े रोल निभाते हैं। (सीधे हालिया सर्वे या आंकड़ा इस संदर्भ में कम हैं)।
मोदी-जिनपिंग मिलन और प्रभाव
मोदी व जिनपिंग की हालिया मुलाकातों एवं द्विपक्षीय वार्ताओं ने कुछ संकेत दिए हैं कि : दोनों देशों का वैश्विक आर्थिक स्थिरता और व्यापारिक साझेदारी की दिशा में शुरुआत हुई है। लेकिन इस तरह की बैठकों से तुरंत चीनी सामानों की खपत बढ़ाने वाला जलवा नहीं बनता, इसमें समय लगता है। भारत सरकार “निर्भरता कम करने” की नीति बना रही है, जैसे कि कुछ इलेक्ट्रॉनिक एवं घरेलू उपकरणों के मामले में आयात नियंत्रण, गुणवत्ता मानकों को बढ़ावा देना, “मेड इन इंडिया” पहल को आगे बढ़ाना। इसके बावजूद मुझे लगता है, कुछ श्रेणियों में चीनी सामानों की खपत बढ़ने की संभावना है, लेकिन यह निर्भर करेगा कि वो सामान कितने कम खर्चे वाले हों, गुणवत्ता कितनी स्वीकृत हो, या और विकल्प कितने उपलब्ध हों। ऐसे में बड़ा सवाल तो यही है क्या राजनीतिक/नागरिक दबाव चीनी माल से हटने की प्रवृत्ति को मजबूर करेगा। सरकार द्वारा लगाई गई सीमा, आयात शुल्क, सेफ्टी/मानक नियम आदि। त्योहारों के मौसम में “तुरंत खरीदारी” जरूरतों के लिए सस्ते विकल्पों की माँग ज़्यादा होती है, अगर चीनी सामान सस्ते और उपलब्ध हों तो लोग उनका चुनाव कर सकते हैं।
ज्वेलरी मार्केट में ‘बूम-बूम’
सोने-चांदी के बढ़ते दामों के बावजूद आभूषणों की मांग में कोई कमी नहीं आई है। 22 कैरेट सोना लगभग ₹11,490 प्रति ग्राम व 24 कैरेट सोना प्रति 10 ग्राम 122,290 रुपयें में बिक रहा है, जबकि चांदी 167,135 रुपये प्रति किलो के भाव पर उपलब्ध है। सर्राफा बाजार के कारोबारियों को उम्मीद है कि इस बार धनतेरस-दीवाली पर आभूषण बिक्री में 20 फीसदी तक की वृद्धि हो सकती है। चेन, कंगन, झुमके, पायल, पेंडेंट, डायमंड सेट और बेस्पोक कलेक्शन की मांग सबसे अधिक है। कई दुकानदार डायमंड पर 20 फीसदी तक की छूट दे रहे हैं।चांदी के सिक्कों और गिफ्ट्स का नया ट्रेंड
गिफ्ट मार्केट में भी इस बार नया चलन देखने को मिल रहा है। लक्ष्मी-गणेश की मूर्तियों के अलावा चांदी के सिक्कों पर ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ, किंग जॉर्ज, लॉफिंग बुद्धा और ट्री डिज़ाइन के चित्रों की मांग है। गोल्ड लुक वाले स्क्वायर शेप के ये सिक्के खूब पसंद किए जा रहे हैं। 5 से 10 ग्राम के सिक्कों के साथ ही चांदी की थाली, कटोरी और पूजा सामग्री की बिक्री जोरों पर है। दिल्ली के सर्राफा बाजार से लेकर जयपुर, सूरत, मुंबई और वाराणसी तक, सोना-चांदी की दुकानों में खरीदारों की भीड़ इस बार रिकार्ड तोड़ रही है। ज्वेलरी उद्योग के अनुमानों के अनुसार, देशभर में इस धनतेरस पर 40 से 45 हजार करोड़ रुपये से अधिक का कारोबार संभव है। गोल्ड की बढ़ती अंतरराष्ट्रीय कीमतों के बावजूद ग्राहकों का रुझान थमा नहीं है। खास बात यह कि इस बार सादा सोना और हैंडक्राफ्टेड ज्वेलरी की माँग सबसे अधिक है। डिजिटल गोल्ड और ई-वाउचर की खरीद भी बढ़ी है, जिससे बाजारों में पारंपरिक और आधुनिक दोनों रूपों की चमक बराबर दिखाई दे रही है।
खनक उठा बर्तन बाजार
त्योहारी मौसम के साथ बर्तन बाजार में भी रौनक लौट आई है। पीतल और चांदी के बर्तनों के साथ नॉनस्टिक और इंडक्शन कुकवेयर की डिमांड लगातार बढ़ रही है। व्यापारियों के मुताबिक इस सीजन में 300 से 350 करोड़ रुपये तक के कारोबार की उम्मीद है। खासकर तांबे की बोतलें, इंडक्शन कुकर और कढ़ाई-पैन की बिक्री में इजाफा हुआ है। ग्राहकों को लुभाने के लिए दुकानदार गिफ्ट ऑफर, कैशबैक और सिल्वर कॉइन की सौगात दे रहे हैं।
ऑटो और इलेक्ट्रॉनिक मार्केट में भी बंपर सेल
वाराणसी और आसपास के जिलों में इलेक्ट्रॉनिक एवं ऑटो सेक्टर में भी उत्साह चरम पर है। लोग इलेक्ट्रिक टू-व्हीलर, लैपटॉप, टीवी, एसी और फ्रिज की प्री-बुकिंग कर रहे हैं। अलग-अलग कंपनियों की ओर से ज़ीरो डाउन पेमेंट, म्डप् और कैशबैक ऑफर दिए जा रहे हैं। त्योहारी खरीदारी को देखते हुए कई ब्रांड्स ने हर खरीद पर सिल्वर कॉइन और स्क्रैच कूपन देने की घोषणा की है। देश के ऑटो सेक्टर में त्योहार के सीजन में 15 से 20 प्रतिशत तक की वृद्धि का अनुमान है। ऑनलाइन मार्केटप्लेस जैसे अमेज़न, फ्लिपकार्ट और टाटा क्लिक ने भी इस अवसर पर “मेड इन इंडिया” उत्पादों के विशेष सेक्शन शुरू किए हैं।
खरीदारी से मजबूत होगी अर्थव्यवस्था
रिटेल ट्रेड के जानकारों के अनुसार एफएमसीजी, घरेलू उपकरण, परिधान, मिठाई-नमकीन, खिलौने और फर्नीचर जैसे उत्पादों की बिक्री में इस बार 8 से 10 फीसदी की बढ़ोतरी पहले ही दर्ज की जा चुकी है। पाबंदियों के हटने और रोजगार अवसर बढ़ने से लोगों की जेब में पैसा है, और उपभोक्ता अब उत्सव पर खर्च करने में हिचक नहीं दिखा रहे।
आर्थिक उम्मीदों से जगमग शहर
वाराणसी की सड़कों से लेकर गंगा घाट तक, हर कोना दिवाली की रौनक में नहाया है। मिट्टी के दीयों की चमक, हस्तशिल्प की सादगी और भारतीय बाजार की ऊर्जा इस बार न केवल खुशियों बल्कि “आर्थिक नवजागरण” का भी प्रतीक बन गई है।
इस बार की दीवाली बाजार के 5 बड़े ट्रेंड्स
ट्रेंड मुख्य आकर्षण
वोकल फॉर लोकल’ की लहर मिट्टी के दीए, स्थानीय मूर्तियां, हस्तकला उत्पादों की सबसे अधिक बिक्री
ज्वेलरी में रिकॉर्ड बुकिंग सोने-चांदी के दाम ऊँचे, फिर भी 20þ बढ़ी बिक्री
इलेक्ट्रिक वाहनों की डिमांड दोपहिया ईवी की प्री-बुकिंग तेजी पर
डेकोरेटिव आइटम्स की बाढ़ मिट्टी और फाइबर के दीये, शोपीस और झालर की भारी मांग
गिफ्ट आइटम्स में बदलाव चांदी के सिक्के, ड्राई फ्रूट सेट और डिजिटल गिफ्ट कार्ड्स की लोकप्रियता
खरीदारी का आर्थिक प्रभाव
वाराणसी और आसपास के जिले : ₹45,000 करोड़ का अनुमान
देशभर का कुल कारोबार : ₹6 लाख करोड़ से अधिक
आभूषण बिक्री वृद्धि : लगभग 20 फीसदी
एफएमसीजी और इलेक्ट्रॉनिक सेक्टर : 8 से 10 फीसदी की बढ़त
चीन को नुकसान : 98,000 करोड़ का अनुमान
लोकल फॉर वोकल के पाँच प्रमुख संकेत
1. हस्तनिर्मित उत्पादों का उत्थान : टेराकोटा, खादी, हैंडलूम और लोककला आधारित वस्तुओं की बिक्री में उल्लेखनीय वृद्धि।
2. ग्रामीण उद्योगों को नई ऊर्जा : ग्रामोद्योग, लघु और सूक्ष्म उद्यमों के उत्पाद पहली बार मुख्यधारा के बाजारों में प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं।
3. ग्राहक जागरूकता में बढ़ोतरी : लोग अब पूछते हैं, “यह भारत में बना है या नहीं?”
4. डिजिटल मंचों पर स्वदेशी पहचान : ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर “मेड इन इंडिया” फिल्टर और प्रमोशन ज़ोर पकड़ रहे हैं।
5. आत्मनिर्भर भारत की भावना सशक्त : स्थानीय खरीदारी को राष्ट्रसेवा के भाव से जोड़ने की सोच मज़बूत हो रही है।
कारोबार के अनुमानित आँकड़े (राष्ट्रीय स्तर)
क्षेत्र अनुमानित कारोबार (₹ करोड़ में) मुख्य आकर्षण
सोना-चांदी / ज्वेलरी 40,000 से 45,000 गोल्ड ज्वेलरी, डिजिटल गोल्ड
बर्तन व धातु सामग्री 6,000 से 7,500 पीतल, कांसा, तांबा, स्टील
इलेक्ट्रॉनिक व ऑटो सेक्टर 30,000$ स्मार्ट टीवी, मोबाइल, टू-व्हीलर
हैंडलूम / लोकल उत्पाद 4,000$ खादी, मिट्टी शिल्प, लोककला
कुल अनुमानित कारोबार 2 लाख करोड़ रुपये त्योहारी खरीदारी का चरम सप्ताह
लोकल फॉर वोकल का असर : स्वदेशी की नई पहचान
प्रधानमंत्री मोदी की “लोकल फॉर वोकल” अपील ने इस बार धनतेरस के बाजार को एक नया रूप दिया है। कुटीर उद्योग, हस्तशिल्प, हैंडलूम और ग्रामीण उत्पादों की दुकानों पर भीड़ उमड़ रही है। मिट्टी के दीप, टेराकोटा के गणेश-लक्ष्मी, बनारस और खादी के परिधान, हस्तनिर्मित गहनेकृसब अपनी अलग पहचान बना रहे हैं। वाराणसी के एक दुकानदार ने मुस्कराते हुए कहा, “अब लोग पूछते हैं, यह भारत में बना है या नहीं।” यही भाव इस धनतेरस की सबसे बड़ी सफलता है, जहाँ उपभोक्ता के मन में ‘ब्रांड’ नहीं, ‘देश’ प्राथमिकता बनता जा रहा है।
ग्राहक अनुभव में तकनीक की भूमिका
जहाँ पहले धनतेरस का मतलब सिर्फ बाजार की भीड़ से था, वहीं अब ओमनी-चैनल रिटेलिंग (ऑनलाइन व ऑफलाइन का मिश्रण) ने नया आयाम जोड़ा है। ग्राहक अब पहले ऑनलाइन डिज़ाइन चुनते हैं, फिर स्टोर में जाकर खरीदारी करते हैं। इससे ग्राहकों को सुविधा और व्यापारियों को भरोसा दोनों मिला है। विशेषज्ञों का मानना है कि ज्वेलरी व मेटल सेक्टर में ग्राहक अनुभव आने वाले वर्षों में बिक्री का निर्णायक आधार बनेगा
सुरेश गांधी
वरिष्ठ पत्रकार
वाराणसी




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