सरकार के फैसलों और घटती पेंशनभोगियों की संख्या से जुड़ा ताज़ा अपडेट सामने आया है। EPS-95 के लाखों बुजुर्गों को राहत की उम्मीद, लेकिन क्या सच में ₹7500 न्यूनतम पेंशन मिल पाएगी? पेंशन में बढ़ोतरी के पीछे छिपे असर और ताज़ा हालात जानकर आप चौंक जाएंगे!पटना, (आलोक कुमार). ईपीएस-95 पेंशन : उम्मीदें, वादे और हकीकत 1995 में जब आजतक ने दूरदर्शन पर एक 20 मिनट के समाचार कार्यक्रम के रूप में शुरुआत की थी, तब हर बुलेटिन के अंत में ऐंकर कहते थे — “इंतज़ार करिए कल तक.” उस समय यह वाक्य सिर्फ समाचारों की निरंतरता का प्रतीक था, पर आज यह पंक्ति लाखों ईपीएस-95 पेंशनधारियों की ज़िंदगी का पर्याय बन चुकी है — जो हर नए वादे के साथ बस “कल तक” का इंतज़ार करते रहते हैं। ईपीएस-95 पेंशन योजना से जुड़े करीब 75 लाख पेंशनधारी वर्षों से अपनी न्यूनतम पेंशन में सम्मानजनक वृद्धि की मांग कर रहे हैं. वे चाहते हैं कि ₹7500 मासिक पेंशन, महंगाई भत्ता और पति-पत्नी के लिए चिकित्सा सुविधा लागू हो. पर हर बार उम्मीदें बंधती हैं, घोषणा होती हैं, और फिर सब “फाइल प्रक्रिया में है” कहकर टाल दिया जाता है. जब केंद्रीय श्रम मंत्री भूपेंद्र यादव सेंट्रल बोर्ड ऑफ ट्रस्टीज (CBT) के अध्यक्ष थे, तब उन्होंने घोषणा की थी कि आगामी बैठक में पेंशन वृद्धि का निर्णय लिया जाएगा. पर बोलते-बोलते मंत्रालय बदल गया और वे किसी और विभाग में स्थानांतरित हो गए.
अब श्रम मंत्रालय की कमान डॉ. मनसुख लक्ष्मण भाई मंडाविया के पास है. वे भी वही पुराने शब्द दोहरा रहे हैं — “आपका आंदोलन मर्यादित है, मैं उसका सम्मान करता हूं, सरकार सकारात्मक है, जल्द ही सम्मानजनक पेंशन मिलेगी — पर मैं समय नहीं बता सकता.”यह वही आश्वासन है जो वर्षों से दिया जा रहा है, पर कभी अमल में नहीं उतरा. अब खबर है कि सीबीटी की अगली बैठक नवंबर 2025 के अंत या दिसंबर की शुरुआत में हो सकती है. सूत्रों के अनुसार, वित्त मंत्रालय और श्रम मंत्रालय के बीच सहमति बन चुकी है, बस औपचारिक मंजूरी बाकी है. यही उम्मीद फिर से जागी है कि शायद इस बार फैसला हो जाए.पर सवाल वही है — “क्या यह भी सिर्फ कल तक का इंतज़ार बनकर रह जाएगा?”ईपीएफओ के विशेषज्ञ मानते हैं कि यदि पेंशन वृद्धि लागू होती है, तो इससे लाखों बुजुर्गों के जीवन में स्थायित्व आएगा. यह न केवल उनकी आर्थिक सुरक्षा को मजबूती देगा, बल्कि ईपीएफओ की छवि को भी सुदृढ़ करेगा.
कई सेवानिवृत्त कर्मचारी अब भी 1000-1200 रुपये मासिक पेंशन पर गुज़ारा कर रहे हैं — जो मौजूदा समय में एक अपमानजनक स्थिति है. यह पेंशन नहीं, बल्कि औपचारिकता भर रह गई है.आज भी सड़कों पर बैठा वृद्धा पेंशन धारक सरकार से कोई एहसान नहीं, बल्कि अपना हक मांग रहा है.यह वही वर्ग है जिसने अपनी युवावस्था में देश की औद्योगिक और आर्थिक नींव को मजबूती दी. अब वही लोग अपनी बुज़ुर्गी में सरकार के रहम पर निर्भर हैं.शब्दों में सहानुभूति, पर कार्रवाई में सन्नाटा — यही इस पूरे प्रकरण का सार है.दरअसल, सरकारें बदलती है, मंत्रियों के नाम बदलते हैं, पर बयान वही रहते हैं — “हम इस दिशा में काम कर रहे हैं… फाइल आगे बढ़ गई है… फैसला जल्द होगा…”पर ‘जल्द’ की यह परिभाषा कभी हकीकत नहीं बन पाई।ईपीएस-95 पेंशनधारियों की कहानी आज आजतक की उस पुरानी आवाज़ जैसी है —जहाँ हर उम्मीद के बाद बस इतना कहा जाता है —“इंतज़ार करिए... कल तक.”

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