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मंगलवार, 21 अक्टूबर 2025

विशेष : जीएसटी की दरें घटीं, फिर भी राहत क्यों नहीं

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दीवाली का पर्व भारत की अर्थव्यवस्था के लिए सबसे बड़ा अवसर होता है। यह केवल दीपों का त्योहार नहीं, बल्कि खपत और बाजार की रौनक का प्रतीक भी है। हर साल इस मौसम में करोड़ों रुपये की खरीदारी होती है, दुकानों और ऑनलाइन प्लेटफॉर्मों पर ऑफर की बाढ़ आ जाती है। फिर भी उपभोक्ता के मन में एक सवाल लगातार बना हुआ है-“सरकार ने तो कई वस्तुओं पर जीएसटी घटाया है, फिर भी बाजार में चीजें सस्ती क्यों नहीं हुईं?” इस सवाल का जवाब भारत की टैक्स प्रणाली, सप्लाई चेन और मूल्य निर्धारण की वास्तविकता में छिपा है।

1.दीवाली का अर्थशास्त्र, खपत का मौसम : भारत की जीडीपी में निजी उपभोग व्यय का हिस्सा लगभग 60 प्रतिशत है। त्योहारी सीजन, विशेषकर दीवाली, इस खपत को चरम पर ले जाता है। 2024 में भारतीय उपभोक्ताओं ने दीवाली के अवसर पर लगभग 4.5 लाख करोड़ रुपये की खरीदारी की थी, जो पिछले वर्ष की तुलना में 15 प्रतिशत अधिक थी। फिर भी उपभोक्ता को राहत का एहसास नहीं हुआ, क्योंकि अधिकांश वस्तुओं की कीमतों में अपेक्षित गिरावट नहीं दिखी।

2.सरकार ने दरें घटाईं, लेकिन असर सीमित : जब जुलाई 2017 में वस्तु एवं सेवा कर लागू हुआ था, तब इसका उद्देश्य था-“एक राष्ट्र, एक टैक्स, एक बाजार।” समय के साथ सरकार ने कई वस्तुओं पर टैक्स घटाया-


वस्तु पहले की दर      अब की दर

मोबाइल फोन 12 प्रतिशत 5 प्रतिशत

इलेक्ट्रिक वाहन 12 प्रतिशत 5 प्रतिशत

एलईडी बल्ब 12 प्रतिशत 5 प्रतिशत

सोलर उपकरण 12 प्रतिशत 5 प्रतिशत

वस्त्र (1000 रुपये तक) 12 प्रतिशत 5 प्रतिशत

किताबें, खाद्यान्न 5 प्रतिशत या 0 प्रतिशत 0 प्रतिशत


वित्त मंत्रालय के अनुसार, 2025 में औसत मासिक जीएसटी संग्रह  1.8 लाख करोड़ रुपये तक पहुँच गया है, जो दर्शाता है कि टैक्स प्रणाली स्थिर और सफल है। लेकिन कीमतों में राहत उतनी स्पष्ट नहीं है जितनी उम्मीद की गई थी। 

3.सप्लाई चेन की लागत ने खाया लाभ : जीएसटी घटने के बावजूद उपभोक्ता को राहत क्यों नहीं मिली, इसका बड़ा कारण है-सप्लाई चेन की बढ़ी हुई लागत। पिछले कुछ वर्षों में  ईंधन की कीमतें लगभग 40 प्रतिशत तक बढ़ीं। परिवहन लागत 25-30 प्रतिशत तक बढ़ी। मजदूरी और किराया औसतन 20 प्रतिशत बढ़ा। पैकेजिंग और विज्ञापन खर्च में 15 प्रतिशत वृद्धि हुई। इन सबके कारण उत्पाद की आधार कीमत इतनी बढ़ गई कि जीएसटी घटने का प्रभाव नगण्य रह गया।

4.व्यापारी “लाभ पास ऑन” नहीं करते : सरकार ने एंटी प्रॉफिटिंग कानून बनाया ताकि टैक्स में कमी का लाभ उपभोक्ता तक पहुँचे। लेकिन व्यवहार में, व्यापारी और निर्माता इस लाभ को अपने मार्जिन में जोड़ लेते हैं। उदाहरण के लिए यदि किसी रेफ्रिजरेटर की कीमत 30,000 रुपये थी और जीएसटी 18 प्रतिशत से घटाकर 12 प्रतिशत किया गया, तो कीमत लगभग 1,500 रुपये कम होनी चाहिए थी। परंतु व्यापारी या ब्रांड ने अपनी लागत या मार्जिन बढ़ाकर अंतिम कीमत 29,800 रुपये ही रखी, यानी उपभोक्ता को केवल 200 रुपये की राहत। इस तरह का व्यवहार पूरे बाजार में आम है, जिससे सरकार का लाभ जनता तक नहीं पहुँच पाता।

5.जटिलता और इनपुट टैक्स क्रेडिट का जाल : जीएसटी प्रणाली में “इनपुट टैक्स क्रेडिट” की सुविधा है, यानी निर्माता या व्यापारी, जो टैक्स उसने कच्चे माल पर दिया, वह अपने आउटपुट टैक्स से घटा सकता है। लेकिन यह प्रक्रिया अत्यंत तकनीकी और जटिल है। कई छोटे व्यापारी आईटीसी क्लेम करने में सक्षम नहीं हैं, जिससे उनकी कुल लागत बढ़ जाती है, और वे उपभोक्ता से अधिक वसूलने को मजबूर हो जाते हैं।

6.महँगाई का दबाव : जीएसटी की दरें घटीं जरूर हैं, लेकिन महँगाई दर लगातार 5 प्रतिशत से ऊपर बनी हुई है। अर्थात हर साल सामान्य कीमतों में बढ़ोतरी होती ही है। 2023 में औसत महँगाई दर 5.7 प्रतिशत, 2024 में 5.3 प्रतिशत और 2025 में अनुमानित 5.2 प्रतिशत रही। इस महँगाई का असर यह है कि टैक्स में कमी की राहत मूल्य वृद्धि के दबाव में गुम हो जाती है।

7.छोटे बनाम बड़े व्यापारी : जीएसटी का सबसे बड़ा प्रभाव छोटे व्यापारियों पर पड़ा है। बड़ी कंपनियाँ ऑटोमेटेड सिस्टम, सॉफ्टवेयर और अकाउंटिंग टीम के जरिए टैक्स मैनेज कर लेती हैं। लेकिन छोटे दुकानदारों को हर महीने रिटर्न, बिलिंग और इनवॉइस की झंझट में समय और पैसा दोनों खर्च करना पड़ता है। इन अतिरिक्त खर्चों को वे कीमत में जोड़ देते हैं। इससे छोटे बाजारों में सामान महँगा और ऑनलाइन पोर्टल पर अपेक्षाकृत सस्ता दिखता है।

8.उपभोक्ता के अनुभव की सच्चाई : गाज़ियाबाद की गृहिणी रीना गुप्ता बताती हैं “सरकार कहती है टैक्स घटा है, लेकिन बाजार में सब चीज़ें महँगी ही लगती हैं। मिठाई, कपड़े, सजावट किसी पर भी वास्तविक राहत महसूस नहीं होती।” दिल्ली के इलेक्ट्रॉनिक्स व्यापारी अमित खुराना कहते हैं “हमारी मार्जिन 7-8 प्रतिशत रह गई है। अगर हम ग्राहक को छूट दें तो टैक्स का बोझ हमारे सिर पर आता है। इसलिए जीएसटी घटने के बावजूद हम कीमत कम नहीं कर पाते।”

9.विशेषज्ञों की राय : आर्थिक विश्लेषक डॉ. अरुण कुमार कहते हैं “जीएसटी का मूल उद्देश्य सरलता था, पर आज यह पाँच दरों वाली जटिल प्रणाली बन गई है। जब तक टैक्स दरें एक समान और प्रक्रिया पारदर्शी नहीं होंगी, राहत अधूरी रहेगी।” वित्त विशेषज्ञ मीरा रस्तोगी का कहना है “जीएसटी दरों में कमी दीर्घकालिक लाभ देती है, राजस्व स्थिरता, कर चोरी में कमी, लेकिन तत्काल उपभोक्ता राहत महँगाई और व्यापारी व्यवहार के कारण नहीं पहुँचती।”


आगे का रास्ता : सुधार और उम्मीद

सरकार अब जीएसटी 2.0 की दिशा में सोच रही है, जहाँ 5 प्रतिशत, 12 प्रतिशत और 18 प्रतिशत के तीन स्लैब को मिलाकर एक समान दर बनाने की चर्चा है। यदि ऐसा हुआ, तो कर संरचना और सरल हो सकती है, और उपभोक्ता को प्रत्यक्ष लाभ मिलेगा। साथ ही डिजिटल रिटर्न प्रक्रिया और ई-इनवॉइसिंग प्रणाली को सरल बनाना भी जरूरी है, ताकि छोटे व्यापारियों पर अनुपालन का बोझ घटे।


टैक्स घटा, लेकिन राहत अधूरी

जीएसटी ने भारत की टैक्स प्रणाली को एकीकृत और पारदर्शी बनाया है। सरकार ने कई वस्तुओं पर दरें घटाईं, ताकि उपभोक्ता को राहत मिले। लेकिन बढ़ती लागत, महँगाई, और बाजार की व्यवहारिक कठिनाइयों के कारण वह राहत जमीन तक पहुँच नहीं पा रही। दीवाली जैसे पर्वों पर जब उपभोक्ता अपनी मेहनत की कमाई से खरीदारी करने निकलता है तो उसे सबसे पहले मूल्य की पारदर्शिता चाहिए, न कि केवल विज्ञापन में लिखी जीएसटी ऑफ की पंक्ति। जब टैक्स प्रणाली सचमुच सरल, समान और उपभोक्ता-केंद्रित बनेगी, तभी कहा जा सकेगा कि जीएसटी की दरें घटीं और राहत सचमुच आम जनता तक पहुँची। जीएसटी भारत के आर्थिक सुधार का बड़ा कदम है, लेकिन इसे “जन-हित” का रूप देने के लिए अब अगला चरण जरूरी है, जहाँ सरकार, व्यापारी और उपभोक्ता तीनों की साझेदारी से वास्तविक आर्थिक राहत आम लोगों तक पहुँचे।




—डॉ. चेतन आनंद—

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