- ‘जश्न-ए-चरागा’ में मोहब्बत, अमन और इंसानियत की रौशनी से जगमगाया निज़ामुद्दीन दरगाह परिसर
क़व्वालियों और कलामों ने बाँधा रूहानी समा
कार्यक्रम का विशेष आकर्षण था सूफी गायकों द्वारा प्रस्तुत की गई रूहानी क़व्वालियाँ। “मौला मौला मौला अली…” और “क़ाबे में जलवा है, काशी में नज़ारा है…” जैसे सूफियाना कलामों ने माहौल को आध्यात्मिक ऊँचाइयों पर पहुँचा दिया। इन कलामों ने दर्शाया कि भारत की संस्कृति में प्रेम और भक्ति की कोई सीमाएँ नहीं हैं — यह भूमि हर मज़हब, हर भावना को आत्मसात करती है।
डॉ. इंद्रेश कुमार ने दरगाह पर चादर चढ़ाई, दी अमन का संदेश
कार्यक्रम में मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के मार्गदर्शक डॉ. इंद्रेश कुमार ने दरगाह पर चादर चढ़ाई और फातेहा पढ़कर मुल्क में अमन और भाईचारे के लिए दुआ की। उन्होंने अपने संबोधन में कहा कि अगर कोई इस आयोजन को विवादित करने का प्रयास करता है, तो वह न तो इंसानियत का, न ही किसी धर्म का प्रतिनिधि हो सकता है। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा, “यह आयोजन न तो सियासी है और न ही मजहबी। यह भारत की साझी विरासत का उत्सव है।” उन्होंने आगे कहा कि यह आयोजन 4 वर्षों से पूरी तरह से गैर-राजनीतिक और गैर-मज़हबी रूप से किया जा रहा है और इसकी सफलता इस बात की गवाही देती है कि इंसानियत की आवाज़ आज भी ज़िंदा है। डॉ. इंद्रेश कुमार ने सभी भारतीयों से अपील की कि वे अपने-अपने घरों में चार दीये जलाएं — एक नशामुक्त भारत, दूसरा दंगामुक्त और भाईचारे वाला भारत, तीसरा प्रदूषणमुक्त पर्यावरण, और चौथा गरीब, पीड़ित और बेसहारा लोगों के लिए ममता और मदद के प्रतीक स्वरूप। उन्होंने कहा, “जब-जब देश में संकट आया है, तब-तब दरगाहों, मंदिरों, मस्जिदों, गुरुद्वारों और चर्चों ने इंसानियत की रौशनी फैलाई है। हम उसी परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं।”प्रो. शाहिद अख्तर: 'यह साझी विरासत का उत्सव है, धर्म का प्रचार नहीं'
मंच के राष्ट्रीय संयोजक प्रो. शाहिद अख्तर ने कहा कि ‘जश्न-ए-चरागा’ किसी एक धर्म विशेष का आयोजन नहीं है, बल्कि यह उस साझी संस्कृति का उत्सव है, जो भारत की आत्मा है। उन्होंने कहा, “जब देश के सभी धर्मों के लोग एक साथ दीये जलाते हैं, तो वह कोई धार्मिक रस्म नहीं रह जाती — वह इंसानियत का त्योहार बन जाती है।” उन्होंने आगे कहा कि आज की इस रौशनी में मोहब्बत का पैग़ाम है, जो मज़हब से नहीं, बल्कि इंसानियत से जुड़ा हुआ है।
‘जश्न-ए-चरागा’ — एक परंपरा जो जोड़ती है, तोड़ती नहीं
यह आयोजन सिर्फ एक सांस्कृतिक कार्यक्रम नहीं, बल्कि एक विचारधारा है — जो बताती है कि भारत एक भावना है, जहाँ विविधता में एकता की मिसालें हर रोज़ बनती हैं। 'जश्न-ए-चरागा' आज एक ऐसी परंपरा बन चुका है, जो धर्म, जाति, भाषा और विचारधारा से ऊपर उठकर इंसानियत और मेलजोल का संदेश देता है।
निष्कर्ष: जब दिलों में जलते हैं दीये
‘जश्न-ए-चरागा’ ने यह साबित कर दिया कि जब भारत के लोग मिलकर दीये जलाते हैं, तो वे सिर्फ अंधेरे को नहीं मिटाते, बल्कि अपने भीतर की नफरत, भेदभाव और दूरियों को भी खत्म करते हैं। और यही भारत की असली पहचान है — एक ऐसा देश, जहाँ मंदिर की घंटियों और दरगाह की अज़ानों में एक ही सुर होता है — इंसानियत का।


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