पटना : कल्पना पटवारी का नया छठ गीत ‘माई के अनादर’ रिलीज होते ही हुआ वायरल - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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गुरुवार, 23 अक्टूबर 2025

पटना : कल्पना पटवारी का नया छठ गीत ‘माई के अनादर’ रिलीज होते ही हुआ वायरल

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पटना (रजनीश के झा)। भोजपुरी संगीत जगत की मशहूर लोकगायिका कल्पना पटवारी ने इस बार छठ पर्व के अवसर पर एक ऐसा गीत पेश किया है जिसने लोगों के दिलों को झकझोर कर रख दिया है। उनका नया छठ गीत “माई के अनादर” रिलीज होते ही सोशल मीडिया पर वायरल हो गया है। यह गीत केवल एक भक्ति गीत नहीं, बल्कि एक सामाजिक सन्देश है — जो आधुनिकता की अंधी दौड़ में खोती जा रही पारिवारिक संवेदनाओं को उजागर करता है। कल्पना पटवारी ने अपनी अद्भुत गायकी के माध्यम से इस विषय को ऐसा रूप दिया है कि श्रोता भावनाओं में डूब जाते हैं। गीत “माई के अनादर” में दिखाया गया है कि आज का समाज किस तरह उन माताओं को वृद्धाश्रम भेज देता है, जिन्होंने जीवनभर अपने बच्चों के लिए सब कुछ त्याग दिया। गीत में उस वेदना को आवाज दी गई है जो हर उस माँ के दिल में बसती है जिसे अपने ही बच्चे बुढ़ापे में अकेला छोड़ देते हैं। कल्पना पटवारी की गायकी में वह करुणा, वह भावनात्मक गहराई झलकती है जो सीधे दिल को छूती है। गीत के बोल लिखे हैं अशोक शिवपुरी ने, जबकि संगीत निर्देशन दीपक ठाकुर और स्वयं कल्पना पटवारी** ने किया है।


वीडियो के निर्देशन की कमान पवन पाल ने संभाली है। गीत का फिल्मांकन Silver Lining Old Age Home में किया गया है, जहाँ वास्तविक वृद्ध माताओं की भावनाओं को कैमरे में उतारा गया है। इस गीत में शैलेन्द्र सिंह, शारदा सिंह और स्वयं कल्पना पटवारी ने अपनी मार्मिक अदाकारी से गीत की आत्मा को जीवंत किया है। छठ पूजा जैसे पवित्र पर्व पर यह गीत समाज को आत्ममंथन के लिए मजबूर करता है। कल्पना पटवारी ने इस गीत के जरिये न केवल एक लोकगायिका के रूप में अपनी जिम्मेदारी निभाई है, बल्कि एक संवेदनशील इंसान के रूप में भी समाज से सवाल किया है – क्या यही तरक्की है कि हम अपनी ही माँ को वृद्धाश्रम भेज दें? उनकी आवाज में जो दर्द और सच्चाई है, वह इस गीत को एक साधारण गीत से कहीं अधिक बनाता है — यह एक सामाजिक चेतावनी है। ‘माई के अनादर’ न सिर्फ भोजपुरी संगीत प्रेमियों के बीच लोकप्रिय हो रहा है बल्कि विभिन्न सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर भी लाखों बार देखा जा चुका है। लोग इस गीत को “2025 का सबसे भावनात्मक छठ गीत” कह रहे हैं। कल्पना पटवारी का यह प्रयास दिखाता है कि लोकसंगीत केवल मनोरंजन का माध्यम नहीं, बल्कि समाज सुधार का सशक्त जरिया भी हो सकता है। यह गीत निश्चय ही आने वाले वर्षों तक छठ पर्व की सांस्कृतिक स्मृति में दर्ज रहेगा।

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