विशेष : कार्तिक पुष्कर मेला, रेगिस्तान का जहाज और ऊंट संरक्षण की दरकार - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

Breaking

प्रबिसि नगर कीजै सब काजा । हृदय राखि कौशलपुर राजा।। -- मंगल भवन अमंगल हारी। द्रवहु सुदसरथ अजिर बिहारी ।। -- सब नर करहिं परस्पर प्रीति । चलहिं स्वधर्म निरत श्रुतिनीति ।। -- तेहि अवसर सुनि शिव धनु भंगा । आयउ भृगुकुल कमल पतंगा।। -- राजिव नयन धरैधनु सायक । भगत विपत्ति भंजनु सुखदायक।। -- अनुचित बहुत कहेउं अग्याता । छमहु क्षमा मंदिर दोउ भ्राता।। -- हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता। कहहि सुनहि बहुविधि सब संता। -- साधक नाम जपहिं लय लाएं। होहिं सिद्ध अनिमादिक पाएं।। -- अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के । कामद धन दारिद्र दवारिके।।


बुधवार, 8 अक्टूबर 2025

विशेष : कार्तिक पुष्कर मेला, रेगिस्तान का जहाज और ऊंट संरक्षण की दरकार

Subodh-aggrawal-ias
राजस्थान का सबसे खास सांस्कृतिक मेला, पुष्कर मेला, अब बस कुछ ही दिन दूर रह गया है। जब रेगिस्तान में सुनहरे रेत के धोरों के पीछे सूर्य अपनी दिन की यात्रा पूरी कर छिपता है तब हवा में गूंजते लोकगीतों के बीच मेले की पहचान एक और तस्वीर उभरती है और वह तस्वीर होती है रेगिस्तान के जहाज ऊंट की। मोर के पंखों और छोटे छोटे कटिंग वाले शीशों से सजाए गए ऊंट और रंग-बिरंगी पगड़ी पहने सजे धजे ऊंट के मालिक पुष्कर मेले की अलग ही छटा बिखेरते दिखते हैं। देसी-विदेशी पावणों के बीच रंगीन पहनावा में ऊंट पालक और सजे धजे ऊंट रेत के धोरों को और भी खूबसूरत बना देते है। कार्तिक पुष्कर मेले की ऊंट रौणक है तो मेले की जीवंतता भी ऊंटों की उपस्थिति से ही बनती है। ऊंट कई सदियों से रेगिस्तान की जान रहा है। रेगिस्तान की संस्कृति में रचा-बसा रहा हैं ऊंट। आवागमन का माध्यम, व्यापार का साधन, घुमंतू लोगों का साथी और पुष्कर का सितारा। लेकिन, अब इनकी संख्या कम हो रही है। साल 2012 में राजस्थान में ऊंटों की संख्या 3 लाख 26 हजार थी, जो साल 2019 आते आते घटकर 2 लाख 12 हजार रह गई (पशुधन जनगणना) है। इसके कारण कई रहे हैं उनमें से कुछ घटते और सिकुड़ते चरागाह, आवागमन के आधुनितक साधनों की सहज उपलब्धता, मशीनीकरण और कम कमाई की वजह से ऊंट पालने वाले निराश हो गए हैं। इसके अलावा एक और अन्य प्रमुख कारण ऊंटों की तस्करी भी है। आज पुष्कर मेले में ऊंटों की संख्या घोड़ों से कम होती जा रही है। यह उन देसी-विदेशी पर्यटकों के लिए निराशाजनक है जो ऊंट को रेगिस्तान का असली प्रतीक मानते आए हैं। राजस्थान और यहां के लोगों के लिए भी यह अपने आपमें गंभीर है। ऐसा नहीं है कि ऊंटों की घटती संख्या से गंभीर ना हो। यह भी साफ हो जाना चाहिए कि कमी का मतलब खत्म होना नहीं है। ऊंट का दूध, जिसे अब सुपरफूड माना जाता है, 80-100 रुपये प्रति लीटर बिकता है और यह दुनिया भर में बिक रहा है। सरकारी गैरसरकारी पहल से सहकारी समितियां और डेयरी कंपनियां ऊंट के दूध और सह उत्पादों से नई कमाई के अवसर पैदा कर रही हैं। पर्यटन भी बदल रहा है और ऊंट सफारी आकर्षण का केन्द्र बनती जा रही हैं। इको-सफारी, सांस्कृतिक यात्राएं और रेगिस्तानी अनुभव ऊंटों को फिर से मुख्य आकर्षण बना रहे हैं।


संस्थागत मदद जरूरी-

आईसीएआर-नेशनल रिसर्च सेंटर ऑन कैमल, बीकानेर, जो 1984 में स्थापित हुआ था। इसे 1995 में अपग्रेड किया गया है और ऊंटों की सेहत, प्रजनन और वैल्यू-एडेड प्रोडक्ट दूध पाउडर और आइसक्रीम से लेकर नई डायग्नोस्टिक किट तक के क्षेत्र में अग्रणी काम कर रहा है। इससे ऊंट ऊंट पालकों के लिए बोझ बनने की जगह आय का साधन बनने लगे हैं। हालांकि इस क्षेत्र में अभी और काम किये जाने की आवश्यकता हैं क्योंकि ऊंटों की आबादी मेें बढ़ोतरी अभी हो नहीं पा रही है। राज्य सरकार ऊंट की घटती आबादी को लेकर गंभीर हुई है और साल 2014 में, राजस्थान सरकार ने ऊंट को अपना राज्य पशु घोषित किया। साल 2015 के कैमल एक्ट ने ऊंटों की हत्या पर रोक लगा दी और उनके आवागमन-निर्यात को नियंत्रित किया गया। इन उपायों का मकसद इस प्रजाति को बचाना ही था, हालांकि इसका ऊंट पालने वालों पर आर्थिक असर मिला-जुला रहा है। ऐसे में सरकार को ऊंट पालकों के लिए भी पैकेज लाने की पहल की जानी चाहिए। एक निजी बातः जब मैं बीकानेर का कलेक्टर और जिला मजिस्ट्रेट था (1994-95), तो हमने कैमल फेस्टिवल को बढ़ावा दिया। हमारे इस प्रयास को सराहा गया और यह आयोजन नवाचार होने के साथ ही बहुत सफल रहा। ऊंट फेस्टिवल में देश-विदेश के पर्यटकों की सहभागिता तय की गई उनकी हिस्सेदारी से ऊंट के प्रति लोगों का झुकाव और ध्यान आकर्षित हुआ। ऊंट  फेस्टिवल के माध्यम से सिर्फ ऊंट पशु तक सीमित ना रहकर इससे जुड़ी संस्कृति और लोगों की आजीविका का जश्न मनाया गया।


रेगिस्तानी संस्कृति की पहचान

ऊंट रेगिस्तान की जान है। आज रेगिस्तारी धोरों की सफारी का नया दौर आया है। इस सफारी में वाहनों के स्थान पर ऊंट  सफारी के रुप में ही आगे बढ़ाया जाए तो ऊंट  और इससे जुड़ी गौरवपूर्ण संस्कृति को आगे बढ़ाया जा सकेगा। इसके साथ ही राजस्थान में ऊंटों को डेयरी, हस्तशिल्प और टिकाऊ पर्यटन जैसे उच्च-मूल्य वाले क्षेत्रों से जोड़ जाना चाहिए। सकारात्मक सोच, सही नीति, नवाचार और गर्व के मिश्रण से, हम आजीविका की रक्षा कर सकते हैं और विरासत को जीवित रख सकते हैं। वैसे तो ऊंट  के बिना रेगिस्तान की कल्पना नहीं की जा सकती ठीक उसी प्रकार कार्तिक पुष्कर मेला रंग बिरंगे सजे धजे ऊंट और ऊंट के करतबों, विभिन्न प्रतियोगिताओं के बिना अधूरा है।





डॉ. सुबोध अग्रवाल,(आईएएस)

अतिरिक्त मुख्य सचिव, राजस्थान सरकार

मोबाईल नंबर 88907 78800


कोई टिप्पणी नहीं: