संस्थागत मदद जरूरी-
आईसीएआर-नेशनल रिसर्च सेंटर ऑन कैमल, बीकानेर, जो 1984 में स्थापित हुआ था। इसे 1995 में अपग्रेड किया गया है और ऊंटों की सेहत, प्रजनन और वैल्यू-एडेड प्रोडक्ट दूध पाउडर और आइसक्रीम से लेकर नई डायग्नोस्टिक किट तक के क्षेत्र में अग्रणी काम कर रहा है। इससे ऊंट ऊंट पालकों के लिए बोझ बनने की जगह आय का साधन बनने लगे हैं। हालांकि इस क्षेत्र में अभी और काम किये जाने की आवश्यकता हैं क्योंकि ऊंटों की आबादी मेें बढ़ोतरी अभी हो नहीं पा रही है। राज्य सरकार ऊंट की घटती आबादी को लेकर गंभीर हुई है और साल 2014 में, राजस्थान सरकार ने ऊंट को अपना राज्य पशु घोषित किया। साल 2015 के कैमल एक्ट ने ऊंटों की हत्या पर रोक लगा दी और उनके आवागमन-निर्यात को नियंत्रित किया गया। इन उपायों का मकसद इस प्रजाति को बचाना ही था, हालांकि इसका ऊंट पालने वालों पर आर्थिक असर मिला-जुला रहा है। ऐसे में सरकार को ऊंट पालकों के लिए भी पैकेज लाने की पहल की जानी चाहिए। एक निजी बातः जब मैं बीकानेर का कलेक्टर और जिला मजिस्ट्रेट था (1994-95), तो हमने कैमल फेस्टिवल को बढ़ावा दिया। हमारे इस प्रयास को सराहा गया और यह आयोजन नवाचार होने के साथ ही बहुत सफल रहा। ऊंट फेस्टिवल में देश-विदेश के पर्यटकों की सहभागिता तय की गई उनकी हिस्सेदारी से ऊंट के प्रति लोगों का झुकाव और ध्यान आकर्षित हुआ। ऊंट फेस्टिवल के माध्यम से सिर्फ ऊंट पशु तक सीमित ना रहकर इससे जुड़ी संस्कृति और लोगों की आजीविका का जश्न मनाया गया।
रेगिस्तानी संस्कृति की पहचान
ऊंट रेगिस्तान की जान है। आज रेगिस्तारी धोरों की सफारी का नया दौर आया है। इस सफारी में वाहनों के स्थान पर ऊंट सफारी के रुप में ही आगे बढ़ाया जाए तो ऊंट और इससे जुड़ी गौरवपूर्ण संस्कृति को आगे बढ़ाया जा सकेगा। इसके साथ ही राजस्थान में ऊंटों को डेयरी, हस्तशिल्प और टिकाऊ पर्यटन जैसे उच्च-मूल्य वाले क्षेत्रों से जोड़ जाना चाहिए। सकारात्मक सोच, सही नीति, नवाचार और गर्व के मिश्रण से, हम आजीविका की रक्षा कर सकते हैं और विरासत को जीवित रख सकते हैं। वैसे तो ऊंट के बिना रेगिस्तान की कल्पना नहीं की जा सकती ठीक उसी प्रकार कार्तिक पुष्कर मेला रंग बिरंगे सजे धजे ऊंट और ऊंट के करतबों, विभिन्न प्रतियोगिताओं के बिना अधूरा है।
डॉ. सुबोध अग्रवाल,(आईएएस)
अतिरिक्त मुख्य सचिव, राजस्थान सरकार
मोबाईल नंबर 88907 78800

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