लोकतंत्र में विरोध की आवाज़ को कुचलना सरकार की कमजोरी का प्रतीक है.भारत को यह समझना होगा कि सरकार की आलोचना राष्ट्र विरोधी नहीं है. असहमति को कुचलना लोकतंत्र को खोखला करना है.सरकार को चाहिए कि तुरंत वांगचुक और अन्य गिरफ्तार कार्यकर्ताओं की रिहाई सुनिश्चित करे और लद्दाखियों की न्यायोचित मांगों पर संवेदनशील संवाद शुरू करें.यही एक लोकतांत्रिक राष्ट्र की पहचान है. कारगिल डेमोक्रेटिक अलायंस (केडीए) ने लेह में 24 सितंबर को हुई हिंसा के बाद हिरासत में लिए गए कार्यकर्ता सोनम वांगचुक और अन्य लोगों की तत्काल और बिना शर्त रिहाई की मांग की. साथ ही, केंद्र को चेतावनी दी कि लद्दाख को राज्य का दर्जा देने और अन्य प्रमुख मांगों को पूरा करने में उसकी विफलता हिमालयी क्षेत्र के लोगों को "अलग-थलग" कर रही है. केडीए सदस्य सज्जाद करगिली ने यहां एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए कठोर राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (एनएसए) के तहत हिरासत में लेकर जोधपुर जेल भेजे गए वांगचुक और लेह में हिरासत में लिए गए अन्य युवा नेताओं की बिना शर्त रिहाई की मांग की.उन्होंने कहा कि छठी अनुसूची के तहत राज्य का दर्जा और संवैधानिक सुरक्षा की मांग को लेकर कोई समझौता नहीं किया जा सकता. करगिली ने कहा, ‘ऐसे समय में जब राष्ट्र अनेक चुनौतियों का सामना कर रहा है, संवेदनशील क्षेत्र लद्दाख के लोगों के साथ इस तरह का व्यवहार लोगों में अलगाव और असुरक्षा की भावना को बढ़ाएगा.'उन्होंने कहा कि सरकार को ‘लोगों के साथ समझदारी से पेश आना चाहिए.’
लद्दाख, (आलोक कुमार). भारतीय लोकतंत्र पर गहरे सवाल खड़े करती है. लद्दाख की जनता के अधिकारों और पर्यावरण की रक्षा के लिए संघर्षरत वांगचुक को “राष्ट्रविरोधी” ठहराना केवल अन्यायपूर्ण ही नहीं, बल्कि लोकतंत्र की आत्मा के साथ खिलवाड़ है.यह वही प्रवृत्ति है जिसने वयोवृद्ध मानवाधिकार कार्यकर्ता फादर स्टेन स्वामी जैसे निर्दोष को जेल की यातना के हवाले कर उनकी जान ले ली थी. सरकार का दायित्व जनता की जायज मांगों को सुनना और संवाद करना है, न कि आलोचना को अपराध मानना. लद्दाखियों की राज्य के दर्जे की मांग या पर्यावरणीय संसाधनों की रक्षा के प्रयास किसी भी तरह राष्ट्रविरोधी नहीं हैं, बल्कि आत्मनिर्भर भारत की उस भावना से जुड़े हैं जिसे प्रधानमंत्री स्वयं बढ़ावा देते हैं. 24 सितंबर 2025 की हिंसा निंदनीय है, लेकिन शांति की अपील करने वाले वांगचुक को इसका जिम्मेदार ठहराना अन्याय है.

कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें