नाटक के निर्देशक किशोर केशव ने बताया कि भूमंडलीकरण के इस दौर में स्थानीय भाषाओं और बोलियों के समक्ष अस्तित्व-संकट की जो चुनौती खड़ी हुई है, जिस प्रकार एक भाषा, एक तरह के खान-पान, एक तरह की वेशभूषा का प्रचलन और वर्चस्व हालिया समय में बढ़ा है, यह नाटक उस विमर्श को नये सिरे से समझने और लोगों को सजग करने का प्रयास है। दरअसल भाषाइ अस्मिता निजी अस्मिता, पहचान और क्षेत्रीय निजता-विशिष्टता के साथ गहरे रूप से जुड़ी है जिसे फैशन के अंधानुकरण में जाने-अनजाने अवहेलित किया जा रहा है।
नाटक की प्रस्तुति संयोजक और वरिष्ठ अभिनेत्री पूनमश्री ने बताया कि नाटक की प्रदर्शन अवधि लगभग दो घंटे है और यह पीरियड ड्रामा है। महाकवि विद्यापति के “देसिल बयना सब जन मिट्ठा” के उद्घोष और इब्राहिम शाह के मिथिला पर आक्रमण के बाद की स्थितियों पर नाटक में विमर्श प्रस्तुत करने का प्रयास है। उस समय देसिल बयना यानी मैथिली में रचना करने के लिए विद्यापति को कैसा विरोध झेलना पड़ा, किन परिस्थितयों का सामना करना पड़ा और क्यों करना पड़ा, इसी के इर्द-गिर्द नाटक की कथा वस्तु को केन्द्रित करने का प्रयास किया गया है, जो समसामयिक सन्दर्भों और प्रसंगों को जोड़ते हुए समकालीन विमर्श प्रस्तुत करता है।

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