पटना : 2 नवम्बर को विद्यापति भवन में होगा मैथिली नाटक “देसिल बयना” का मंचन - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

Breaking

प्रबिसि नगर कीजै सब काजा । हृदय राखि कौशलपुर राजा।। -- मंगल भवन अमंगल हारी। द्रवहु सुदसरथ अजिर बिहारी ।। -- सब नर करहिं परस्पर प्रीति । चलहिं स्वधर्म निरत श्रुतिनीति ।। -- तेहि अवसर सुनि शिव धनु भंगा । आयउ भृगुकुल कमल पतंगा।। -- राजिव नयन धरैधनु सायक । भगत विपत्ति भंजनु सुखदायक।। -- अनुचित बहुत कहेउं अग्याता । छमहु क्षमा मंदिर दोउ भ्राता।। -- हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता। कहहि सुनहि बहुविधि सब संता। -- साधक नाम जपहिं लय लाएं। होहिं सिद्ध अनिमादिक पाएं।। -- अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के । कामद धन दारिद्र दवारिके।।


रविवार, 26 अक्टूबर 2025

पटना : 2 नवम्बर को विद्यापति भवन में होगा मैथिली नाटक “देसिल बयना” का मंचन

chetna-samiti-patna
पटना, 26 अक्टूबर (रजनीश के झा)। प्रसिद्ध संस्था चेतना समिति द्वारा आयोजित इस वर्ष के दो-दिवसीय विद्यापति स्मृति पर्व समारोह के पहले ही दिन 2 नवम्बर को स्थानीय विद्यापति भवन में मैथिली नाटक “देसिल बयना” का मंचन होगा। कुमार शैलेन्द्र लिखित और किशोर केशव निर्देशित इस नाटक की तैयारी जोर-शोर से चल रही है। लगभग 25 कलाकारों के साथ तैयार हुई इस संगीतमय प्रस्तुति में महाकवि विद्यापति के भाषा-संघर्ष को नये संदर्भों में देखने का प्रयास किया गया है। नाटक के मुख्य आकर्षण में संगीत नाटक अकादमी से सम्मानित नीलेश्वर मिश्र (महाकवि विद्यापति) और रामश्रेष्ठ पासवान (राजा शिव सिंह) का अभिनय है।


नाटक के निर्देशक किशोर केशव ने बताया कि भूमंडलीकरण के इस दौर में स्थानीय भाषाओं और बोलियों के समक्ष अस्तित्व-संकट की जो चुनौती खड़ी हुई है, जिस प्रकार एक भाषा, एक तरह के खान-पान, एक तरह की वेशभूषा का प्रचलन और वर्चस्व हालिया समय में बढ़ा है, यह नाटक उस विमर्श को नये सिरे से समझने और लोगों को सजग करने का प्रयास है। दरअसल भाषाइ अस्मिता निजी अस्मिता, पहचान और क्षेत्रीय निजता-विशिष्टता के साथ गहरे रूप से जुड़ी है जिसे फैशन के अंधानुकरण में जाने-अनजाने अवहेलित किया जा रहा है।


नाटक की प्रस्तुति संयोजक और वरिष्ठ अभिनेत्री पूनमश्री ने बताया कि नाटक की प्रदर्शन अवधि लगभग दो घंटे है और यह पीरियड ड्रामा है। महाकवि विद्यापति के “देसिल बयना सब जन मिट्ठा” के उद्घोष और इब्राहिम शाह के मिथिला पर आक्रमण के बाद की स्थितियों पर नाटक में विमर्श प्रस्तुत करने का प्रयास है। उस समय देसिल बयना यानी मैथिली में रचना करने के लिए विद्यापति को कैसा विरोध झेलना पड़ा, किन परिस्थितयों का सामना करना पड़ा और क्यों करना पड़ा, इसी के इर्द-गिर्द नाटक की कथा वस्तु को केन्द्रित करने का प्रयास किया गया है, जो समसामयिक सन्दर्भों और प्रसंगों को जोड़ते हुए समकालीन विमर्श प्रस्तुत करता है।

कोई टिप्पणी नहीं: