- कार्तिक पूर्णिमा की गोधूलि में गंगा तट पर 25 लाख दीपों की दिव्यता से अलौकिक बना काशी का महातीर्थ
- नमो घाट पर मुख्यमंत्री योगी ने जलाया प्रथम दीप, 88 घाटों पर आस्था की अनगिनत ज्योतियां एक साथ दमक उठीं
- मुख्यमंत्री ने माँ गंगा की विधिवत पूजा के बाद क्रूज से दशाश्वमेध से लेकर शिवाला तक के घाटों का अवलोकन किया
घाटों पर उमड़ा श्रद्धालुओं का जनसैलाब
एक ओर भक्ति की लहरें लिए बैठा था, तो दूसरी ओर 6 लाख से अधिक भक्त गंगा आरती में शामिल होकर “हर-हर महादेव“ की महाध्वनि से वातावरण गुंजायमान कर रहे थे। घंटों की ध्वनि, शंखनाद, जलधारा का कलकल और दीपों से उठती मधुशीतल उजास, सब मिलकर काशी को देवलोक का प्रतिरूप बना रहे थे। गंगा की गोद में बहते तैरते दीप मानो हर मनोकामना को अपने साथ प्रकाश में बाँधकर आगे बढ़ रहे थे। कैमरों की चमक, पर्यटकों की विस्मय भरी आँखें और श्रद्धालुओं की झुकी पलकें, सबकुछ एक सम्मिलित भाव में डूबा हुआ प्रतीत होता था। आकाश में टूटते रंगों की आतिशबाजी, संगीत-संध्याओं में बहते राग, शिव तांडव की धुनों पर थिरकती श्रद्धा और लोकगीतों का मधुर विस्तार, सब मिलकर काशी को एक ऐसा सौंदर्य प्रदान कर रहे थे, जिसे समझने के लिए दृष्टि नहीं, श्रद्धा की आवश्यकता थी। यह दृश्य देखने वालों ने कहा, “काशी सिर्फ रोशनी में नहाई नहीं, काशी स्वयं रोशनी बन गई है।” देव दीपावली की जड़ें उस पौराणिक प्रसंग में हैं, जब देवताओं ने त्रिपुरासुर वध के उपलक्ष्य में स्वर्ग को दीपों से सजाया था। काशी में आज भी वही दीप जगते हैंकृवही स्मृति, वही विजय, वही सनातन विश्वास। रात गहराती रही, और दीयों की गंगा बहती रही... काशी झिलमिलाती रही.और हर हृदय के भीतर एक ही मंत्र बार-बार बजता रहा, “हर-हर महादेव। हर-हर गंगे।”त्रिपुरासुर-विजय की स्मृति का महापर्व
देव दीपावली वही शुभ घड़ी है जब भगवान शिव ने राक्षस त्रिपुरासुर का संहार कर ब्रह्मांड की रक्षा की थी। मान्यता है कि उसी आनंदोत्सव में देवता काशी में प्रकट हुए और गंगा तट पर दीपों का पर्व मनाया। इसी स्मरण में आज भी काशी उज्ज्वल रहती है। दूसरी कथा राजा दिवोदास से जुड़ी है, जिनके धर्मशील शासन में देवताओं का प्रवेश वर्जित था। अंततः शिव के पुनः आगमन के स्वागत में देवताओं ने घाटों को दीपों से अलंकृत किया, यहीं से काशी में दीपोत्सव की परंपरा जीवंत हुई।
आस्था, कला और राष्ट्रगौरव का समन्वय
इस पावन पर्व में भक्ति के साथ देश के वीरों को भी नमन किया जाता है। थलसेना, वायुसेना, नौसेना, सीआरपीएफ और एनसीसी द्वारा शहीदों के सम्मान में आकाशदीप अर्पित किए गए। घाटों पर भव्य गंगा आरती, शास्त्रीय संगीत, तैरते मंचों पर नृत्य, नौकाओं की साज-सज्जा, सबने मिलकर काशी को प्रकाश नगरी बना दिया। इस रात काशी केवल शहर नहीं, अनुभव है। दीपों की लौ कहती है, “जहाँ श्रद्धा जलती है, वहाँ अंधकार ठहर नहीं पाता।”


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