- आया शहनाइयों का मौसम : 11 मुहूर्तों में शहर - गांव में छाई रौनक
- विवाह उद्योग में 25 हजार से अधिक शादियों का अनुमान, बाजारों में उमड़ा अभूतपूर्व फुटफॉल
शादियां : आर्थिक गतिविधि का बड़ा इंजन
पंडितों के अनुसार, नवंबर के मुहूर्त :22, 23, 24, 25, 27, 29 और दिसंबर के 1, 4, 7, 11 हैं. अब तक के सबसे दौड़तेकृ- भागते विवाह स्लॉट माने जा रहे हैं। अकेले 22, 23, 24 और 25 नवंबर को ही हजारों शादियां प्रस्तावित हैं। यानी शहरी और ग्रामीण - दोनों क्षेत्रों में आर्थिक गतिविधि इतनी बढ़ गई है कि इसे एक “सीजनल इकोनॉमी बूस्ट” कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा। एक शादी में परिधान, मेकअप, ज्वैलरी, फोटोग्राफी, कैटरिंग, इवेंट मैनेजमेंट, वाहन किराया से लेकर पंडित, बैंड, टेंट, फर्नीचर, सबके लिए काम निकलता है। अगर प्रति शादी औसत खर्च 3 से 7 लाख भी माना जाए, तो केवल वाराणसी और आसपास में इस विवाह सीजन का आर्थिक प्रभाव 3,000 से 7,000 करोड़ रुपये से कम नहीं बैठता।
होटल - गार्डन फुल : कई परिवारों ने तारीखें बदलीं
शहर के लगभग सभी होटल, बैंक्वेट हॉल, मैरिज लॉन और बड़े गार्डन पूरी तरह हाउसफुल हो चुके हैं। कुछ प्रमुख होटल तो नवंबर के पहले सप्ताह में ही 22 से 29 नवंबर के बीच की सभी तारीखें बुक कर चुके थे। नतीजा यह हुआ कि कई परिवारों को, या तो शादी की तारीख बदलनी पड़ी या फिर अपनी क्षमता से महंगे स्थल लेने पड़े. प्रीमियम पैकेज 20 से 40 फीसदी महंगे होने के बावजूद उपभोक्ताओं की मांग में कोई कमी नहीं आई। इसे सामाजिक व्यवहार का एक ट्रेंड भी माना जा सकता है : शादी में शोभा कम नहीं हो सकती, भले ही महंगाई अधिक हो।
बाजारों का हाल : पार्किंग तक नहीं, दुकानों में कंधे छूते ग्राहक
गोदौलिया, पीलीकोठी, चौक, लंका, महमूरगंज, सिगरा, कैन्ट, पांडेयपुर सहित हर जगह भीड़ उमड़ रही है। दुकानदारों के अनुसार इस बार फुटफॉल अक्टूबर से तीन गुना है।
परिधानों में सबसे ज्यादा मांग
दुल्हनों के लिए बनारसी रेड, मरून, फ्यूजन - बॉर्डर लहंगे, दूल्हों के लिए इंडो - वेस्टर्न, क्रीम - बीच शेरवानी, साड़ी में शुद्ध रेशम और जरी के नए पैटर्न, ब्राइडल डिजाइनर बताते हैं कि इस बार लड़कियाँ कस्टमाइज्ड दुपट्टे और मिक्स्ड पैटर्न लहंगे पसंद कर रही हैं, जिसमें परंपरा और आधुनिकता दोनों झलकें।
सराफा बाजार : सोना महंगा, पर खरीद की रफ्तार कम नहीं
सोने की कीमतों में वृद्धि के बाद भी सराफा बाजार की रौनक बरकरार है। सबसे बड़ा बदलाव यह है कि लोग अब 10 ग्राम की जगह 8 ग्राम के सेट ले रहे हैं, लेकिन डिजाइनर पैटर्न से कोई समझौता नहीं। लाइटवेट ज्वैलरी इस सीजन की सबसे बड़ी मांग है। पायल और बिछुए, सिल्वर कलेक्शन, कुंदन - पोल्की, स्टोन स्टडेड नेक सेट, सबकी बिक्री में तेज उछाल है। मध्यमवर्ग इसमें अपनी व्यावहारिकता दिखा रहा है, “थोड़ा कम वजन३ लेकिन अच्छा डिजाइन।”
वैदिक विवाह की वापसी : वेद पाठ टीमों की बुकिंग दोगुनी
यह विवाह सीजन का सबसे बड़ा सांस्कृतिक परिवर्तन माना जा रहा है। जहाँ पहले डीजे, ग्लैमरस थीम, लाइट शो और बॉलीवुड शैली के कार्यक्रमों का बोलबाला था, वहीं इस बार एक अनोखा बदलाव सामने आया है, वैदिक विवाह का ट्रेंड वापस लौट आया है। वेद पाठ, मंत्रोच्चार, शहनाई, अग्निकुंड, परंपरागत मंडप, वाद्ययंत्र, ढोलक, शंख, ध्वनि, इस पूरे पैकेज को इवेंट कंपनियाँ “वैदिक वेडिंग” नाम से बेच रही हैं। पंडित समुदाय के अनुसार, इस सीजन में 10 से 11 सदस्यों वाली ब्राह्मण टीमों की बुकिंग दोगुनी हो चुकी है। लोग अब फेरे और वरमाला भी मंत्रोच्चार के बीच कराना पसंद कर रहे हैं। यह बदलाव सिर्फ धार्मिकता नहीं, बल्कि संस्कृति की ओर वापसी भी है।
जीएसटी में राहत का असर नहीं : पुराने ही रेट वसूल रहे होटल, कैटरर
सरकार द्वारा होटल और कैटरिंग बिल पर जीएसटी में की गई हालिया राहत का प्रभाव आम ग्राहक तक नहीं पहुँचा है। होटल संचालक कहते हैं, “हमारी लागत इतनी बढ़ चुकी है कि जीएसटी राहत का फायदा दे पाना अभी संभव नहीं।” नतीजतन, ग्राहक अभी भी वही पुराने रेट चुका रहे हैं। महंगाई के बावजूद बुकिंग का दबाव इतना है कि ग्राहक भाव - ताव भी नहीं कर पा रहे।
इवेंट सेक्टर : क्रिएटिविटी की होड़, ’प्रिंसेस एंट्री’ से ’फूलों की बारिश’ तक
इवेंट मैनेजमेंट कंपनियों ने इस सीजन में कई नए प्रयोग किए हैं, फूलों की बारिश के बीच दुल्हन का प्रवेश, ढोल नगाड़े से दूल्हे की “राजा स्टाइल” एंट्री, 360 डिग्री वीडियो बूथ, ड्रोन - लाइव स्ट्रीमिंग, रॉयल राजस्थानी, बनारसी, थीम आधारित मंडप, एलईडी लॉबी सेटअप : सोशल मीडिया रील्स, फ्रेंडली शूट फोटोग्राफरों की टीमों के पास इतने ऑर्डर हैं कि बड़े स्टूडियो 25 नवंबर तक पूरी तरह बुक हो चुके हैं।
ग्रामीण इलाकों की भी बदली चाल : सरलता के साथ बढ़ रहा वैभव
ग्रामीण क्षेत्रों, चोलापुर, पिंडरा, हरहुआ, बड़ागाँव, सेवापुरी में भी विवाह तैयारियों का जोर है। एक दशक पहले ग्रामीण शादियाँ अपेक्षाकृत सरल होती थीं, पर अब, बड़ी कैटरिंग, बैंड - डीजे, एलईडी स्टेज, वीडियो शूट सब आम हो गया है। परिधान और ज्वैलरी का बजट चाहे कम हो, लेकिन आयोजन में शान - शौकत पर्याप्त मिलती है। शहर जैसे ट्रेंड अब ग्रामीण इलाकों तक पहुँच चुके हैं, यह सामाजिक बदलाव का बड़ा संकेत है।
महंगाई बढ़ी, पर उत्साह दोगुना क्यों?
यह एक सामाजिक - आर्थिक पहेली है कि बढ़ती महंगाई के बावजूद लोग शादी में खर्च कम क्यों नहीं करते? इसका जवाब भारतीय समाज की उस परंपरा में है, जिसमें, विवाह “प्रतिष्ठा”, “परिवार की साख” और “समारोहिक आनंद” का प्रतीक है। लोग शादी को जीवन का सबसे महत्वपूर्ण अवसर मानते हैं। उत्सवप्रिय संस्कृति में खर्च को बोझ नहीं, आनंद माना गया है। यही कारण है कि बाजार महंगे हैं, पर भीड़ कम नहीं।
बाजारों में रौनक
राकेश जौहरी, बनारसी साड़ी व्यापारी (गोदौलिया) कहते है “लोग परंपरागत बनारसी में ही सबसे ज्यादा रुचि दिखा रहे हैं। रेड और मरून रंग का जादू अभी भी कायम है। फुटफॉल तीन गुना हो चुका है।” “सोना महंगा है पर ग्राहक उतना ही उत्साहित। लाइटवेट डिजाइन और 8 ग्राम सेट की बिक्री पिछले साल से ज्यादा है।” स्नेहा अग्रवाल, ब्राइडल कलेक्शन मैनेजर का कहना है कि “क्रीम - बीच शेरवानी इस सीजन की स्टार है। लड़कियाँ कस्टम पैटर्न की चाहत में हैं। स्टॉक भरने में समय लग रहा है।” अनीस कुरैशी, डिजाइनर टेलर का कहना है कि हर दिन 40 से 50 नए ऑर्डर मिल रहे हैं। कोई भी ग्राहक फिटिंग से समझौता नहीं चाहता। कई लोग एक्सप्रेस डिलीवरी के लिए दोगुना भुगतान कर रहे हैं। विनय सिंह, इवेंट आयोजक का कहना है कि “वैदिक विवाह पहले विकल्प के रूप में था, अब मुख्य आकर्षण बन गया है। 11 ब्राह्मणों की टीम की सभी बुकिंग पहले ही फुल हैं।” आकाश शुक्ला, फोटोग्राफर का कहना है कि “ड्रोन शूट और 4के सिनेमा की डिमांड सबसे अधिक। लोग अब एल्बम से ज्यादा रीलकृफ्रेंडली शूट चाहते हैं।”
रौनक, अर्थव्यवस्था और संस्कृति, तीनों का संगम
नवंबर - दिसंबर के विवाह मुहूर्तों ने वाराणसी और आसपास के जिलों में एक बार फिर वह चमक लौटा दी है जो कोरोना काल के बाद खो सी गई थी। बाजारों में जीवन है, दुकानदारों में उत्साह है, ग्राहकों में उमंग है और सामाजिकता में नई ऊर्जा. सबसे महत्वपूर्ण परिवर्तन यह है कि आधुनिकता के बीच वैदिक परंपराएँ फिर लौट रही हैं। विवाह केवल एक रस्म नहीं, बल्कि संस्कृति, अर्थव्यवस्था और सामाजिक एकता का बड़ा उत्सव है। इस सीजन के आंकड़े बताते हैं कि भारत की पारिवारिक और सांस्कृतिक ताकत कितनी गहरी है, जहाँ उत्सव किसी भी परिस्थिति में कम नहीं होते। और सच भी यही है, “शादी जिंदगी में एक बार होती है३ इसलिए सब कुछ अच्छा होना ही चाहिए।”

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