गर्मी की मार में बिजली की भागदौड़
रिपोर्ट साफ़ करती है कि जैसे-जैसे तापमान 40 डिग्री को पार करता है, बिजली की मांग तेजी से उछल जाती है. पंखे तेज़ होते हैं. कूलर फुल स्पीड पर चलते हैं. और एसी तो बमुश्किल सांस लेने का मौका देते हैं. नतीजा ये कि मई और जून में मांग कई बार ऐतिहासिक उच्च स्तर तक पहुँच गई. मगर विडंबना देखिए. जिन इलाकों में तापमान सबसे तेज़ था, वहीं सबसे ज़्यादा पावर कट देखे गए। यानी गर्मी और बिजली दोनों एक-दूसरे के खिलाफ खड़ी हो गईं। रिपोर्ट बताती है कि कई राज्यों में पीक डिमांड के दौरान थर्मल प्लांट्स पर इतना दबाव आया कि सप्लाई लड़खड़ा गई. कई जगह बिजली का वोल्टेज गिरा. तो कहीं घंटों की कटौती ने लोगों को उमस और लू के बीच बेबस किया। भारत इस Heat-Power Trap में कैसे फँसता है
ये चक्र बड़ा खतरनाक है.
जैसे-जैसे गर्मी बढ़ती है, बिजली की जरूरत बढ़ती है. जैसे-जैसे बिजली की जरूरत बढ़ती है, सिस्टम टूटता है. और जब सप्लाई रुकती है, तो लोग हीट-स्ट्रेस, डिहाइड्रेशन और गर्मी की बीमारियों की चपेट में आ जाते हैं।
रिपोर्ट के शोधकर्ताओं की चेतावनी साफ है.
अगर भारत ने अब भी बिजली प्रणाली को अपग्रेड नहीं किया, तो अगले वर्षों में हीटवेव और पावर क्राइसिस एक साथ बड़े खतरे में बदल सकते हैं।
आगे क्या करना होगा
इस Heat-Power Trap से निकलने का रास्ता भी रिपोर्ट साफ़-साफ़ बताती है. पहला. तेजी से रिन्यूबल एनर्जी बढ़ानी होगी ताकि कोयले पर दबाव कम हो। दूसरा. बैटरी स्टोरेज को पावर सिस्टम का मुख्य स्तंभ बनाना होगा। तीसरा. ग्रिड को उन चरम दिनों के लिए तैयार करना होगा जब तापमान 45 के पार जाता है।
कहानी का असली संदेश
2024 की गर्मी ने ये याद दिला दिया कि जलवायु संकट अब भविष्य की बात नहीं रही. ये हमारे घरों के स्विच में. हमारे पंखों की आवाज़ में. और हर उस रात में मौजूद है जब बिजली कटती है और पसीना नहीं। अगर भारत को वास्तव में इस 9% की उछाल से सबक लेना है तो बिजली और जलवायु—दोनों को एक ही कहानी के हिस्से की तरह देखना होगा।

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