- कला के संवर्द्धन एवं संरक्षण हेतु ''कला प्रदर्शनी'' का महत्व

मधुबनी 17 दिसंबर (रजनीश के झा)। कला एवं संस्कृति विभाग, बिहार सरकार, पटना द्वारा संचालित मिथिला चित्रकला संस्थान के तत्वाधान में ''कला प्रदर्शनी'' विषय पर एक दिवसीय व्याख्यान श्रृंखला का आयोजन संस्थान के बहुउदेशीय सभागार में किया गया। व्याख्यान श्रृंखला का आयोजन पूर्वाहन 11:00 बजे दीप प्रज्वलन संस्थान के प्रभारी उप-निदेशक, पदाधिकारियों, सभी आचार्यो एवं अतिथि व्याख्याता ''श्री सुनील कुमार'' कला विशेषज्ञ के द्वारा किया गया। संस्थान के प्रभारी उप-निदेशक, वरीय आचार्य पद्मश्री बौआ देवी एवं आचार्य शिवन पासवान के द्वारा व्याख्याता श्री सुनील कुमार को पाग, दोपटा एवं स्मृति चिन्ह भेंट कर सम्मानित किया गया। तत्पश्चात व्याख्यान श्रृंखला के प्रारंभ में संस्थान के कनीय आचार्य डा० रानी झा के द्वारा संबोधन प्रारंभ कर व्याख्यान श्रृंखला के महत्व को गंभीरता से सुनने एवं समझने की संस्थान के सभी छात्र-छात्राओं से अपील की। श्री प्रतीक प्रभाकर, कनीय आचार्य के द्वारा व्याख्याता के संक्षिप्त परिचय में बता गया की श्री सुनील कुमार, फोकआर्टोपीडिया, Archive of Folk Arts तथा बिहार के पहले कला-शिक्षा स्टार्ट-अप FoCarts India OPC Pvt. Ltd., पटना के संस्थापक है, साथ ही लोक, पारंपरिक एवं जनजातीय कलाओं के क्षेत्र में सक्रिय सांस्कृतिक कार्यकर्ता, कला अभिलेखपाल (आर्ट आर्काइविस्ट) और कला शोधकर्ता। बिहार की लोक कलाओं के व्यापक प्रलेखन का कार्य इनके द्वारा किया गया है। सुनील कुमार, कला विशेषज्ञ के द्वारा ''कला प्रदर्शनी'' विषय पर व्याख्यान के प्रारंभ में कहा गया कि कला प्रदर्शनी वह मंच है, जहाँ कलाकार अपनी रचनात्मक कृतियों को लोगों, कला समीक्षकों और संग्रहकर्ताओं के समक्ष प्रस्तुत करते हैं। इसका उद्देश्य कला दीर्घाओं (Art Galleries), संग्रहालयों, सांस्कृतिक केंद्रों या ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म पर कला का प्रचार-प्रसार, कलाकारों को पहचान दिलाना तथा दर्शकों को कला से जोड़ने का माध्यम है। उन्होंने कला प्रदर्शनी के विभिन्न प्रकारों जैसे- एकल कला प्रदर्शनी (Solo Exhibition), दो कलाकारों द्वारा लगाऐ गए प्रदर्शनी (Duo Exhibition), ग्रुप प्रदर्शनी, थीम आधारित प्रदर्शनी (Thematic Exhibition), ऑनलाइन कला प्रदर्शनी (Online Exhibition) के बारे में विस्तार से 10 से 11 तरह के ''कला प्रदर्शनी'' विषय पर समझाया। उन्होंने क्यूरेटर (Curator) के परिचय एवं भूमिका के बारे में जानकारी देते हुऐ साझा किया कि क्यूरेटर वह विशेषज्ञ व्यक्ति होता है जो कला प्रदर्शनी, संग्रहालय या गैलरी में प्रदर्शित की जाने वाली कलाकृतियों का चयन, आयोजन और प्रस्तुति करता है। क्यूरेटर कला और दर्शकों के बीच सेतु का कार्य करता है। उन्होंने कई नामचिन्ह कलाकारों का जिक्र करते हुऐ देश-विदेश के प्रसिद्ध कला प्रदर्शनियों के बारे में जानकारी प्रदान किया। इस आयोजन में संस्थान के त्रि-वर्षीय डिग्री कोर्स के सभी सत्रों के छात्र-छात्राओं ने सक्रिय रूप से भाग लिया। विद्यार्थियों ने संवाद सत्र में अपनी जिज्ञासाएँ रखीं, जिनका समाधान व्याख्याता श्री सुनील कुमार के द्वारा सारगर्भित तरीके से किया गया। कार्यक्रम के समापन पर श्री प्रतीक प्रभाकर, कनीय आचार्य, मिथिला चित्रकला संस्थान, मधुबनी ने अतिथि व्याख्याता को धन्यवाद ज्ञापित करते हुए कहा कि यह एक दिवसीय व्याख्यान श्रृंखला संस्थान के विद्यार्थियों के लिए अत्यंत उपयोगी सिद्ध होगी और उनके अध्ययन एवं सृजनात्मक दृष्टिकोण को नई दिशा प्रदान करेगी। एक दिवसीय व्याख्यान श्रृंखला आयोजन के अंत में प्रभाकर के द्वारा धन्यवाद ज्ञापन देकर आयोजन का समापन किया गया।
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