दिल्ली : बिहार में मतदाता सूची से नाम हटाने के नोटिस संबंधी खबर पर ईसी से जवाब तलब करने से कोर्ट का इनकार - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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बुधवार, 17 दिसंबर 2025

दिल्ली : बिहार में मतदाता सूची से नाम हटाने के नोटिस संबंधी खबर पर ईसी से जवाब तलब करने से कोर्ट का इनकार

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नई दिल्ली (रजनीश के झा)। उच्चतम न्यायालय ने उस मीडिया रिपोर्ट पर निर्वाचन आयोग से जवाब तलब करने का एक गैर-सरकारी संगठन (एनजीओ) का अनुरोध मंगलवार को ठुकरा दिया, जिसमें आरोप लगाया गया है कि बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) के दौरान मतदाताओं के नाम हटाने के लिए पहले से भरे हुए लाखों नोटिस स्थानीय अधिकारियों के बजाय सीधे केंद्रीय स्तर पर जारी किए गए थे। प्रधान न्यायाधीश सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने कहा कि इससे एक गलत मिसाल कायम होगी। पीठ ने एनजीओ ‘एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर)’ को निर्देश दिया कि वह निर्वाचन आयोग से जवाब तलब करने का अनुरोध करने से पहले तथ्यों को उसके संज्ञान में लाते हुए एक हलफनामा दाखिल करे। निर्वाचन आयोग की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने एनजीओ के एक अखबार में प्रकाशित खबर पर भरोसा करने पर आपत्ति जताई और इसमें लगाए गए आरोपों का खंडन किया। उन्होंने कहा कि आयोग को ऐसे समय में अचानक किसी मीडिया रिपोर्ट पर जवाब देने के लिए अदालत में नहीं बुलाया जा सकता, जब इस मुद्दे पर महत्वपूर्ण सुनवाई हो चुकी हो। 


पीठ ने कहा कि जब तक इस मुद्दे को औपचारिक रूप से हलफनामे के माध्यम से रिकॉर्ड में नहीं लाया जाता, तब तक वह मीडिया रिपोर्ट के आधार पर कदम नहीं उठा सकती। एडीआर ने अपनी याचिका में बिहार में एसआईआर के लिए जारी निर्वाचन आयोग के 24 जून के नोटिस की संवैधानिक वैधता को भी चुनौती दी है। एनजीओ की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने कहा कि मीडिया रिपोर्ट में कुछ बहुत ही “परेशान करने वाले” और “गंभीर” आरोप लगाए गए हैं कि बिहार में एसआईआर के दौरान मानदंडों का पालन नहीं किया गया। उन्होंने कहा कि मीडिया रिपोर्ट में दावा किया गया है कि निर्वाचन आयोग की ओर से सीधे मतदाताओं को लाखों पहले से भरे हुए नोटिस भेजे गए, जिनमें नाम हटाने का अनुरोध किया गया था, जबकि जनप्रतिनिधित्व अधिनियम के तहत ऐसे नोटिस जारी करने का अधिकार केवल स्थानीय निर्वाचन पंजीकरण अधिकारी को है। द्विवेदी ने कहा कि अगर प्रशांत भूषण अब भी आरोप पर टिके रहना चाहते हैं, तो उन्हें हलफनामे के माध्यम से सबूत पेश करने चाहिए। उन्होंने दावा किया कि यह आरोप तथ्यात्मक रूप से गलत है, क्योंकि सभी नोटिस जिला निर्वाचन अधिकारियों की ओर से जारी किए गए थे। प्रधान न्यायाधीश सूर्यकांत ने भूषण से कहा कि स्थापित प्रक्रियाओं के अनुसार, दूसरे पक्ष से जवाब तभी मांगा जा सकता है, जब औपचारिक रूप से अदालत के समक्ष कुछ रखा जाए। उन्होंने कहा कि अदालतें केवल मीडिया रिपोर्ट के आधार पर जवाब दाखिल करने का निर्देश नहीं दे सकतीं, क्योंकि मीडिया रिपोर्ट खुद भी कभी-कभी सूत्रों पर निर्भर होती हैं और पूरी तरह या आंशिक रूप से सही हो सकती हैं। 


पीठ ने अखबार की रिपोर्ट का अध्ययन किया और कहा कि इसमें संवाददाता ने “पता चला है” शब्द का इस्तेमाल किया है, जिसका अर्थ है कि रिपोर्ट किसी सूत्र से मिली जानकारी पर आधारित है। द्विवेदी ने कहा कि रिपोर्ट में इस बात का जिक्र नहीं किया गया है कि जानकारी कहां से “प्राप्त” हुई और इसे कैसे हासिल किया गया। भूषण ने कहा कि जानकारी अचानक सामने नहीं आई और उन्हें बिहार के एक “जिम्मेदार” नेता ने पहले भी अनियमितताओं के बारे में सूचित किया था। शीर्ष अदालत में एसआईआर से जुड़े एक अन्य मामले में असम सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा, “जब भी कोई शीर्ष नेता किसी जनहितैषी व्यक्ति से संपर्क करे, तो उस जनहितैषी व्यक्ति को संबंधित नेता को किसी और के कंधे पर बंदूक रखकर चलाने के बजाय सीधे याचिका दायर करने की सलाह देनी चाहिए।” न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कहा, “हमें पूरा विश्वास है कि जिन सज्जन ने भूषण से संपर्क किया था, वह निश्चित रूप से याचिका दायर करने के लिए आगे आएंगे।” द्विवेदी ने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि याचिका में बिना सत्यापन के अखबारों में छपी खबरों पर बहुत अधिक भरोसा किया गया, जिसके कारण अपुष्ट सामग्री पर आधारित लंबी बहस हुई। शीर्ष अदालत ने द्विवेदी को विभिन्न राज्यों में मतदाता सूची के पुनरीक्षण कवायद को चुनौती देने वाले मुख्य मामले में एसआईआर संबंधी दलीलों पर जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया। भाषा पारुल दिलीपदिलीप

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