बच्चन परिवार और मीडिया !! - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

Breaking

प्रबिसि नगर कीजै सब काजा । हृदय राखि कौशलपुर राजा।। -- मंगल भवन अमंगल हारी। द्रवहु सुदसरथ अजिर बिहारी ।। -- सब नर करहिं परस्पर प्रीति । चलहिं स्वधर्म निरत श्रुतिनीति ।। -- तेहि अवसर सुनि शिव धनु भंगा । आयउ भृगुकुल कमल पतंगा।। -- राजिव नयन धरैधनु सायक । भगत विपत्ति भंजनु सुखदायक।। -- अनुचित बहुत कहेउं अग्याता । छमहु क्षमा मंदिर दोउ भ्राता।। -- हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता। कहहि सुनहि बहुविधि सब संता। -- साधक नाम जपहिं लय लाएं। होहिं सिद्ध अनिमादिक पाएं।। -- अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के । कामद धन दारिद्र दवारिके।।

मंगलवार, 30 मार्च 2010

बच्चन परिवार और मीडिया !!

पिछले दिनों श्री अमिताभ बच्चन और उनके परिवार के साथ विभिन्न राजनीतिक मंचों पर जोकुछ हुआ, ग़लत हुआ, पर जिस तरह मीडिया हाथ धोकर इस घटना के पीछे पड़ा हुआ है, वो कहाँतक उचित है ? हर चेनल पर यही समाचार है |

मीडिया क्यों भूल जाता है कि अमिताभ बच्चन और उबके परिवार के लोग कलाकार हैं, और कलाकारों को किसी भी प्रकार की राजनीति में घसीटना अच्छी बात नहीं | कलाकार किसी राजनीतिक दल की मिलकियत तो होता नहीं, वो तो देश का सम्मान होता है | उनके अपमान को इस तरह हर चेनल पर लगातार दिखाया जाना, राजनेताओं को बुलाकर इस विषय पर परिचर्चाएं करना, हमारे विचार से तो अच्छी बात नहीं | और बहुत सी समस्याएं हैं जिनके विषय में यदि मीडिया चाहे तो लोगों में जागरूकता पैदा कर सकता है | मसलन, देश या समाज के प्रति आम आदमी के क्या कर्तव्य हैं और क्या अधिकार हैं - यदि मीडिया इस सबके विषय में लोगों को जागरूक करने की मुहिम चलाये, बजाय इसके कि किस फिल्म कलाकार के साथ क्या कुछ घट रहा है, तो क्या सकारात्मक नहीं होगा ? आज आलम ये है कि हम लोग कारों में घूमते हुए कुछ खाते पीते हैं और कार का शीशा खोलकर खाने पीने के खाली पैकेट्स बाहर सड़क पर फेंक देते हैं, इतना भी नहीं देखने का प्रयास करते कि कोई पैदल या स्कूटर पर आ रहा होगा तो उसके सर पर जाकर गिरेगा कूड़ा |


किसी भोज में जाएंगे तो डस्टबिन रखी होने पर भी खाने के दौने डस्टबिन के बाहर ही डालेंगे | किसी पर्वतीय स्थल पर सैर के लिए जाएंगे तो सैर करते समय जो भी पान मसाला या चिप्स आदि खा रहे होंगे उसके खाली पाउच वहीं फेंक देंगे | इतना भी नहीं सोचेंगे कि जिस जगह वो पाउच गिरेंगे उस जगह तो ज़मीन में फिर कभी घास भी नहीं उगेगी | इतना भी नहीं सोचेंगे कि जिन पर्वतीय स्थलों की प्राकृतिक सुषमा निहारने आते हैं उनका कितना नुक्सान कर रहे हैं, कितना उजाड़ बना रहे हैं उसे और अपनी अगली पीढी को कितना कुछ देखने से वंचित कर रहे हैं | धार्मिक अनुष्ठान होते हैं तो पूरी आवाज़ में लाउडस्पीकर लगाकर भजन गाते हैं | ज़रा सोचिये किसी के घर में कोई मरीज़ हो सकता है, किसी को अगली सुबह इंटरव्यू के लिए जाना हो सकता है, किसी के बच्चे की परीक्षा हो सकती है अगली सुबह, क्या होगा उन लोगों का ? धार्मिक अनुष्ठान पूर्ण रूप से व्यक्तिगत मामला होता है, क्यों चाहते हैं कि दूसरे भी न चाहते हुए भी उस शोर को सुनें ? यदि ऐसा ही करना है तो किसी ऑडीटोरियम में जाकर कर सकते हैं | पर नहीं, करेंगे तो अपनी सोसायटी या कालोनी में ही, और दूसरों की नीद खराब करेंगे |


धर्म तो यह सब नहीं सिखाता | इसी तरह की न जाने कितनी सामाजिक समस्याओं से आम आदमी को आए दिन रू-बरू होना पड़ता है | मीडिया क्यों नहीं फिल्म कलाकारों को उनके हाल पर छोड़कर इसी प्रकार की समस्यायों पर विचार करता और जन साधारण को जागरूक करने का प्रयास करता ?



पूर्णिमा शर्मा

कोई टिप्पणी नहीं: