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शुक्रवार, 16 जुलाई 2010

बिहार सरकार की वित्तीय गड़बड़ी मामले की सीबीआई जांच !!

पटना हाईकोर्ट ने बिहार के सरकारी खजाने से 11,412 करो़ड रूपए की निकासी संबंधी कथित वित्तीय ग़डब़डी की सीबीआई जांच के आदेश दिए हैं। इसमें मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उपमुख्यमंत्री सहित 47 लोगों को आरोपी बनाया गया है।


बिहार महालेखाकार ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि सरकारी खजाने से निकाली गई इस राशि के खर्च के जरूरी विवरण नहीं होने से ब़डी वित्तीय अनियमितता का संदेह होता है। इस रिपोर्ट के आधार पर दायर एक एडवोकेट अरविंद कुमार शर्मा की जनहित याचिका पर दो दिन चली सुनवाई के बाद हाईकोर्ट की जस्टिस रेखा मनहरलाल दोशित और जस्टिस सुधीर कुमार कटरियार की खंडपीठ ने इस मामले को केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को सौंपने के आदेश दिए हैं।
याचिकाकर्ता ने इस ग़डब़डी के लिए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी, उनके 13 मंत्रियों और मुख्य सचिव सहित कई अधिकारियों को मिलाकर कुल 47 लोगों के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज करके उन पर मुकदमा चलाने का अनुरोध किया था। हाईकोर्ट ने जांच के आदेश देते हुए सीबीआई निदेशक को 26 जुलाई को अदालत में उपस्थित होने का आदेश दिया है ताकि उन्हें जांच के विषय में आवश्यक निर्देश दिए जा सकें। इसी दिन मामले में आगे सुनवाई होनी है।
इस वर्ष के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव के ठीक पहले आए इस मामले से जनता दल यूनाइटेड और भारतीय जनता पार्टी के सत्तारूढ़ गठबंधन में अफरा-तफरी मची हुई है। हालांकि सत्तारूढ़ गठबंधन ने अभी इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है।

महालेखाकार ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि वर्ष 2002 से 2008 के बीच सरकारी खजाने से विभिन्न सरकारी योजनाओं पर खर्च के लिए निकाली गई 11,412 करो़ड की राशि का कोई विवरण उपलब्ध नहीं है। नीतीश सरकार 2005 में सत्ता में आई थी इसलिए जाहिर है कि यह ग़डब़डी नीतीश के सत्ता में आने से पहले ही शुरू हो चुकी थी। रिपोर्ट में कहा गया है कि महात्मा गांधी ग्रामीण रोजगार योजना और मध्या±न भोजन जैसी योजनाओं के लिए निकाली गई राशि का सही लेखा-जोखा उपलब्ध नही होना एक ब़डी ग़डब़डी का संदेह पैदा करता है।

यह मामला सरकारी खजाने से निकाली जाने वाली आकस्मिक राशि और उसके खर्च के विवरण दिए जाने से जु़डा है। नियमानुसार जब सरकार खजाने से किसी भी योजना के लिए राशि निकालती है तो एक विवरण दिया जाता है जिसे अग्रिम आकस्मिक विपत्र यानी एसी बिल कहा जाता है। जब यह राशि खर्च कर ली जाती है तब संबंधित अधिकारियों की ओर से एक पूरा विवरण जमा करवाया जाता है, जिसे विस्तृत आकस्मिक विपत्र यानी डीसी बिल कहा जाता है।


जानकारों का कहना है कि डीसी बिल से ही प्रमाणित होता है कि राशि सही मद में खर्च की गई है या नहीं। यह बिल छोटे प्रशासनिक अधिकारियों से होते हुए मुख्यमंत्री तक फाइलों के जरिए पहुंचता है। याचिकाकर्ता के वकील दीनू कुमार मुताबिक महालेखाकार ने पाया है कि वर्ष 2002-02 से लेकर 2007-08 के बीच 11,412 करो़ड रूपए की राशि का डीसी बिल ही जमा नहीं करवाया गया है। उन्होंने उदाहरण देते हुए बताया कि वर्ष 2007-08 में ही सरकारी खजाने से 3800 करो़ड़ रूपए निकाले गए, जिसमें से सिर्फ 51 करो़ड रूपए का डीसी बिल जमा किया गया है और 3749 करो़ड रूपयों का कोई हिसाब-किताब नहीं है। उनके मुताबिक इतनी ब़डी राशि की ग़डब़डी मंत्रियों और अधिकारियों की मिलीभगत के बिना संभव नहीं है।

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