वैज्ञानिकों ने फ्लू के टीके को तैयार करने की दिशा में एक कदम और आगे बढ़ा दिया है। चूहों और बंदरों पर इसका परीक्षण सफल साबित हुआ है। फ्लू के टीके के लिए सुरक्षा परीक्षण पहले ही शुरू किए जा चुके हैं। सन् 2013 तक मानव पर इसका परीक्षण किया जाएगा। यदि इसका परिणाम सफल रहा तो सामान्य फ्लू से लेकर हेपेटाइटिस जैसी बीमारियों पर शुरुआत से ही काबू पा लिया जाएगा। कुछ साल बाद यह टीका मार्किट में आ जाएगा। इस दिशा में काम कर रहे अंतराष्ट्रीय वैज्ञानिकों ने कहा है कि टीकाकरण के मामले में एक नई तकनीक ईजाद की है।अभी तक वैज्ञानिकों को केवल स्मालपॉक्स, पोलियो, खसरा एवं येलो फीवर का टीका तैयार करने में ही सफलता मिली है। स्वाइन फ्लू का टीका भी हाल में तैयार किया गया है। लेकिन इसके दूरगामी परिणाम आने अभी बाकी हैं।
कैंसर के टीके को तैयार करने का काम भी जारी है। स्तन, आंत और सर्वाइकल कैंसर के टीके पर काम काफी आगे बढ़ गया है। इस टीके को बनाने में सेल्डेक्स थेराप्यूटिक्स और मिडिलसेक्स विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों की टीम जुटी हुई है। इस टीके का जानवरों पर परीक्षण किया जा चुका है, जो कि बेहद सफल रहा। मानव पर भी इसका जो प्रारंभिक परीक्षण किया गया है, उसे सुरक्षित पाया गया है।
कैंसर काउंसिल साउथ आस्ट्रलिया के मुख्य कार्यकारी प्रोफेसर ब्रेंडा विल्सन का कहना है कि हम ट्रायल परिणामों की जांच कर रहे हैं। उनका कहना है कि यह टीका लोगों की जान बचाने में मददगार साबित होगा।
एचआईवी समकालीन दौर की सबसे भयानक बीमारी के तौर पर सामने आई है। संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के मुताबिक 2008 तक विश्व में 300 लाख से अधिक लोग एचआईवी से पीडि़त थे। यही कारण है कि इस बीमारी के टीके की को बनाने का काम उच्च प्राथमिकता पर है। विश्व में कई संस्थान इस दिशा में काम कर रहे हैं।
एचआईवी एड्स पर अनुसंधान करने वाला विश्व का प्रमुख संस्थान एन.आई.ए.आई.डी. इस बीमारी का सुरक्षित एवं प्रभावकारी टीका तैयार करने की दिशा में गंभीरता से काम कर रहा है।
एचआईवी एड्स पर अनुसंधान करने वाला विश्व का प्रमुख संस्थान एन.आई.ए.आई.डी. इस बीमारी का सुरक्षित एवं प्रभावकारी टीका तैयार करने की दिशा में गंभीरता से काम कर रहा है।
अमरीकन आर्मी के एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक सितंबर 2009 में थाईलैंड में 16 हजार लोगों पर इसका परीक्षण किया जा चुका है, जो कि सफल रहा।
अभी इस टीके के कुछ और परीक्षण अभी बाकी है, लेकिन यह अपने अंतिम स्टेज पर है। आने वाले कुछ सालों में यह बाजार में उपलब्ध हो जाएगा।
टीके का मानव शरीर पर दो तरह का प्रभाव पड़ता है। एक प्रभाव तो यह कि हम कमजोरी महसूस करते हैं और दूसरा हमें बुखार, जुखाम, उल्टी, डायरिया आदि की शिकायत होती है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने विभिन्न बीमारियों के इलाज के लिए टीके तैयार करने की दिशा में 2001 में पहलकदमी की। यह संगठन टीका ईजाद करने वाले संस्थानों को बड़ी मात्रा में धन भी उपलब्ध कराता है।

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