दोहे और उक्तियाँ - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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प्रबिसि नगर कीजै सब काजा । हृदय राखि कौशलपुर राजा।। -- मंगल भवन अमंगल हारी। द्रवहु सुदसरथ अजिर बिहारी ।। -- सब नर करहिं परस्पर प्रीति । चलहिं स्वधर्म निरत श्रुतिनीति ।। -- तेहि अवसर सुनि शिव धनु भंगा । आयउ भृगुकुल कमल पतंगा।। -- राजिव नयन धरैधनु सायक । भगत विपत्ति भंजनु सुखदायक।। -- अनुचित बहुत कहेउं अग्याता । छमहु क्षमा मंदिर दोउ भ्राता।। -- हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता। कहहि सुनहि बहुविधि सब संता। -- साधक नाम जपहिं लय लाएं। होहिं सिद्ध अनिमादिक पाएं।। -- अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के । कामद धन दारिद्र दवारिके।।


बुधवार, 21 जुलाई 2010

दोहे और उक्तियाँ

स्वकेन्द्रित व्यक्ति को अपना द्रष्टिकोण बदल लेना चाहिये।
उसे अपने अन्दर दूसरों के दृष्टिकोण से वस्तुओं को देखने
की आदत का विकास करना चाहिये। उसे अपने में सत्य
और सही दृष्टि विकसित करनी चाहिये| प्रत्येक व्यक्ति को
आदर और सम्मान को कूडे की तरह और निन्दा तथा
अभद्रता को आभूषण की तरह मानना चाहिये।
- स्वामी शिवानानद-