60 साल से चल रहे मुकदमे के सुलह की कोई गुंजाइश नहीं !! - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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मंगलवार, 28 सितंबर 2010

60 साल से चल रहे मुकदमे के सुलह की कोई गुंजाइश नहीं !!

निर्मोही अखाड़े को छोड़कर सभी पक्षकारों ने अयोध्या विवाद का हल आपसी बातचीत के जरिए निकलने की संभावना से इनकार कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट में दायर हलफनामे में सभी पक्षकारों ने कहा है कि सुलह की कोई गुंजाइश बाकी नहीं है। 60 साल से चल रहे मुकदमे के निर्णय को रोकने का प्रयास दुर्भावना से प्रेरित है।  चीफ जस्टिस एसएच कपाड़िया की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट की बेंच अयोध्या विवाद के इलाहाबाद हाईकोर्ट में सुरक्षित फैसले को स्थगित करने की याचिका पर मंगलवार को सुनवाई करेगी।
सुप्रीम कोर्ट के 23 सितम्बर के अंतरिम स्टे के कारण इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच पूर्व निर्धारित तिथि (24 सितम्बर) को अपना फैसला नहीं सुना सकी थी। निर्मोही अखाड़े को छोड़कर बाकी किसी भी पक्षकार ने रमेशचन्द्र त्रिपाठी की फैसला टालने की  याचिका का समर्थन नहीं किया है। 

अदालत में पिछले 60 साल से चल रहे मुकदमे के सबसे पुराने पक्षकार मोहम्मद हाशिम ने त्रिपाठी को निहित स्वार्थ से प्रेरित किसी अन्य द्वारा 'स्पांसर्ड" कहा है। उन्होंने त्रिपाठी के इरादों पर संदेह व्यक्त किया है। 90 वर्षीय हाशिम ने कहा है कि सुलह के जरिए समस्या का हल खोजने की सारी कोशिशें विफल हो चुकी हैं। शंकराचार्य से लेकर देश के तीन प्रधानमंत्री इस विवाद का समाधान ढूंढ़ने के लिए मध्यस्थता कर चुके हैं। लम्बी बातचीत अैर मंत्रणा के बावजूद हल नहीं निकला। हाईकोर्ट ने भी सभी पक्षकारों को सुलह-सफाई का कई बार मौका दिया।

यहां तक कि फैसला सुरक्षित रखते समय 27 जुलाई, 2010 को हाईकोर्ट ने दोनों समुदायों के पक्षकारों से एक बार फिर विचार विमर्श करके हल निकालने का सुझाव दिया लेकिन कोई भी पक्ष बातचीत के जरिए समाधान को राजी नहीं हुआ। सुन्नी वक्फ बोर्ड और मोहम्मद हाशिम के अलावा कई अन्य पक्षकारों ने भी रमेशचन्द्र त्रिपाठी की याचिका पर सवालिया निशान लगाया है। उनका कहना है कि हाईकोर्ट में 19 साल तक चली लम्बी सुनवाई के दौरान त्रिपाठी ने गंभीरता से पैरवी नहीं की। मामले की सुनवाई की तारीख पर वह हाजिर नहीं होते थे।

वह 20 मई, 2005 को बयान दर्ज करने के लिए हाजिर हुए लेकिन अपने पक्ष में एक भी गवाह पेश नहीं कर सके। इससे साफ है कि उन्हें अपने ही समुदाय के एक भी शख्स का समर्थन प्राप्त नहीं है। इस संवेदनशील महत्वपूर्ण मसले को सुलझाने की कोशिश देश के तीन पूर्व प्रधानमंत्री कर चुके हैं। इस गंभीर विवाद को सुलझाना त्रिपाठी के बूते की बात नहीं है।

मुस्लिम समुदाय के पक्षकारों ने कहा है कि देश में कानून का राज स्थापित करने के लिए इस विवाद का अदालती फैसला आना जरूरी है। फैसला टालने से एक गलत संदेश जाएगा। अगर त्रिपाठी बातचीत के जरिए सुलह चाहते होते तो हाईकोर्ट की इस संबंध में पेशकश को नहीं ठुकराते। फैसला सुरक्षित होने के बाद उन्होंने सुलह की याचिका दायर की जबकि इससे पहले वह इस मुद्दे पर चुप्पी साधे हुए थे।

सुन्नी वक्फ बोर्ड ने अपने हलफनामे में कहा है कि अयोध्या के फैसले से किसी तरह की कानून व्यवस्था बिगड़ने की उम्मीद नहीं है।  उत्तर प्रदेश सरकार ने सम्पूर्ण सुरक्षा का आश्वासन दिया है। एक और पक्षकार अखिल भारतीय हिंदू महासभा ने भी त्रिपाठी की याचिका का विरोध किया है।

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