उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि किसी भी व्यक्ति को बिना किसी पर्याप्त कारण के एहतियातन हिरासत में नहीं रखा जा सकता क्योंकि ऐसा करना स्वतंत्रता के उसके मूल अधिकार का हनन होगा।
मणिपुर के एक अखबार के संपादक रणजीत ओनामचा को हिरासत में रखने के आदेश को निरस्त करते हुए उच्चतम न्यायालय ने कहा कि इस तरह के आदेश अगर मनमाने ढंग से जारी किए गए हैं तो फिर वे न्यायिक जांच के लिए बाध्य हैं।
न्यायमूर्ति डीके जैन और न्यायमूर्ति एचएल दत्तू की पीठ ने एक फैसले में कहा कि प्रशासन ने अपने निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए जिस सामग्री पर विश्वास किया, अदालत उसकी जांच करने की हकदार है। अदालत इसी के अनुरूप यह तय करेगी कि क्या विषयपरक संतोष के लिए कोई उद्देश्यपरक आधार है। पाओजेल के संपादक रणजीत को राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत 24 सितंबर 2009 को हिरासत में लिया गया था।
उन पर यह आरोप था कि वह भारत से आजादी की मांग को लेकर लड़ रहे यूनाइटेड नेशनल लाइब्रेशन फ्रंट के वित्त प्रभारी रतन उर्फ इनाओ उर्फ एन इबोचाउबा सिंह की मिलीभगत से विभिन्न लोगों से अवैध वसूली कर राष्ट्र विरोधी गतिविधियां कर रहे हैं।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें