एम्स में सेंटर फॉर डेंटल एजुकेशन एंड रिसर्च की निदेशक डा. नसीम शाह ने कहाकि यहां वर्ष 2006 में पहले चरण में चार बच्चों में सफलता हासिल की है। अब तक यह संख्या 13 तक पहुंच चुकी है। अक्सर खेलते समय बच्चों के दांत में चोट भी लग जाती है। इससे दांतों के रूट डैमेज हो जाते हैं, जिससे लिगामेंट बोन बननी बंद हो जाती है, ब्लड वेसल्स नष्ट हो जाते हैं और जड़ें कमजोर हो जाती हैं, इसलिए दांत दोबारा उग नहीं पाते।
दांतों के जड़ों की हड्डी में मेम्ब्रोन, प्री डेंटल लिगामेंट और स्टेम सेल होते हैं। इन्हें दोबारा एक्टिव बनाने के लिए बच्चे की आरसीटी कर सबसे पहले संक्रमण हटाते हैं फिर जड़ खोदकर ब्लड निकाला जाता है और उसे जड़ में ही रोककर थक्का जमा लिया जाता है। इसके साथ निकले स्टेम सेल ब्लड के थक्के के साथ मिलकर वहीं ठहर जाएंगे और धीरे-धीरे डैमेज टिश्यू फिर से बनने लगेंगे।
विशेषज्ञों का मानना है कि यह प्रक्रिया नार्मली 6-10 साल की उम्र के बच्चों में की जाती है। विकसित देशों में यह तकनीक काफी ज्यादा इस्तेमाल हो रही है, लेकिन भारत में ऐसा पहली बार किया गया है। उनका कहना है कि यह प्रक्रिया कोई भी डेंटल सर्जन कर सकता है।

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