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सोमवार, 18 अक्टूबर 2010

सौ साल की उम्र में कॉलेज.

किसी काम को करने की अगर ठान लें तो उम्र कोई बाधा नहीं. इसे सच साबित कर दिखाया है भारत के भोलाराम दास ने. सौ साल की उम्र में फिर से कॉलेज का रुख कर रहे हैं भोलाराम. अब पीएचडी करेंगे.


भारत के पूर्वोत्तर राज्य असम में देश की आजादी के लिए अंग्रेज हुकूमत से लड़ चुके भोलाराम ने गुवाहाटी यूनीवर्सिटी में दाखिला लिया है. भोलाराम ने पिछले सप्ताह ही जीवन के सौ साल भी पूरे कर लिए. जिंदगी के इस मोड़ पर अब उन्हें पढ़ाई करने की हूक सी उठी है.

वह धर्म दर्शन में पीएचडी करेंगे. हमेशा कुछ नया सीखते रहने की भूख भोलाराम को कॉलेज की दहलीज तक खींच ले गई. वह बताते हैं कि सौ साल की अब तक की जिंदगी में वह राजनीति, समाज सेवा, सरकारी नौकरी और धर्म के क्षेत्र में काम कर चुके हैं. बीत शनिवार को सौवां जन्मदिन मनाने वाले भोलाराम को सूट टाई और सफेद गांधी टोपी में देखकर उनकी उम्र का अंदाजा ही नहीं लगाया जा सकता.

वैसे भी भोलाराम की पढ़ने लिखने में रुचि का अंदाजा उनके प्रोफाइल को देखकर अपने आप ही लग जाता है. गांधी जी की अगुवाई में अंग्रेज सरकार के खिलाफ छिड़े आंदोलन में भोलाराम ने हिस्सा लिया और दो महीने के लिए जेल भी गए. उस समय वह महज 20 साल के थे. उन्होंने 1945 में कांग्रेस की सदस्यता ली और उसी का झंडा थामकर आजादी की लड़ाई में 1947 तक लगे रहे. आजादी के बाद उन्होंने शिक्षक के रूप में करियर की शुरूआत की. इसके बाद वकील बने, फिर मजिस्ट्रेट और 1971 में बतौर जिला जज सेवानिवृत्त हुए.

रिटायरमेंट के 40 साल बाद अचानक फिर से पढ़ने के पीछे वह अपनी पोती को प्रेरणास्रोत बताते हैं. भोलाराम कहते हैं कि पोती ने ही पढ़ाई के प्रति उनकी रुचि को देखकर पीएचडी करने का सुझाव दिया. गुवाहाटी यूनीवर्सिटी ने भी उनकी ललक को देखकर उम्र को नजरंदाज कर शोध करने की अनुमति दे दी.

यूनीवर्सिटी के कुलपति ओके मेंदही कहते हैं कि सौ साल की उम्र में पढाई कर ने का शायद यह दुनिया में पहला मामला होगा. हालांकि भोलाराम का यह जज्बा युवाओं को पढ़ने और संतुलित जीवनशैली के लिए प्रेरित करेगा.

भरेपूरे परिवार में रह रहे भोलाराम के पांच बेटे और एक बेटी के अलावा दस पोते पोतियां और परपोते भी हैं. उनकी पत्नी का निधन 1988 में हो गया था.

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