जस्टिस मार्कन्डेय काटजू और ज्ञानसुधा मिश्र की बेंच ने दहेज हत्या के एक अभियुक्त की उम्रकैद की सजा को घटाकर दस साल किए जाने के पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के फैसले पर यह महत्वपूर्ण निर्णय दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अपनी गर्भवती पत्नी की निर्मम हत्या करनेवाले पति की सजा कम करने का हाईकोर्ट का फैसला चौंकानेवाला है। मेडिकल सबूतों में साफ हो गया कि राजबीर उर्फ राजू ने अपनी पत्नी सुनीता का सिर कई बार दीवार में मारा और फिर उसकी गला दबाकर हत्या कर दी। फिर भी उसकी सजा कम करने का फैसला हैरत में डालनेवाला है।
गौरतलब है कि हत्या की यह वारदात सितम्बर 1998 में रोहतक में हुई थी। शादी के छह महीने बाद ही सुनीता की हत्या कर दी गई थी। हालांकि हरियाणा सरकार ने अभियुक्त की सजा बढ़ाने के लिए अपील दायर नहीं की थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने खुद पहले करते हुए अभियुक्त राजबीर और उसकी मां को नोटिस जारी किया। अभियुक्त की मां को दो साल की सजा दी गई थी। उस पर पुत्रवधू को दहेज के लिए तंग करने का आरोप है। सुप्रीम कोर्ट ने अभियुक्त सास की 80 साल की वृद्धावस्था को देखते हुए उसे जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया। सुप्रीम कोर्ट के फैसले की प्रति देश के सभी हाईकोर्टों को भेज दी गई है ताकि हाईकोर्ट अपने अधीनस्थ जिला अदालतों को शीर्ष अदालत के निर्णय की जानकारी दे सके।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह हाल ही में दो अन्य आदेशों में भी दहेज हत्या की वारदातों पर चिंता व्यक्त कर चुका है। सत्यनारायण बनाम उत्तर-प्रदेश सरकार के मामले में महिलाओं के खिलाफ होनेवाली हिंसा पर गंभीर रुख अपनाया गया था। इसी तरह सुखविंदर सिंह बनाम पंजाब सरकार के मामले में आजीवन कारावास की सजा भोग रहे अपराधी की सजा को फांसी में तब्दील करने के लिए सजायाफ्ता कैदी को नोटिस जारी किया गया है। मौजूदा मामले में भी अभियुक्त राजबीर को नोटिस जारी किया गया।
उल्लेखनीय है कि सत्र अदालत ने अभियुक्त पति को उम्रकैद की सजा सुनाई थी। राजबीर ने सजा के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील की। हाईकोर्ट ने उसकी सजा घटाकर दस साल कर दी। गौरतलब है कि दहेज हत्या के अपराध में अभियुक्तों के खिलाफ आईपीसी की धारा 304बी के तहत मुकदमा दर्ज किया जाता है। इस अपराध में अधिकतम आजीवन कारावास का प्रावधान है जबकि हत्या के जुर्म में आईपीसी की धारा 302 के अंतर्गत मुकदमा दर्ज किया जाता है जिसमें अधिकतम मृत्युदंड संभव है। दहेज दानवों को मौत की सजा देने की कवायद के मद्देनजर ही अदालत ने यह व्यवस्था दी है।

1 टिप्पणी:
adaalat ne bilkul sahi vyavasthaa ki hai.
एक टिप्पणी भेजें