एनडीटीवी और उनके मुखिया प्रणय रॉय की क्या मजबूरी है ये तो वे ही जानते होंगे मगर बरखा दत्त को बचाने के मामले में जो बेशर्म बयान एनडीटीवी ने अपनी वेबसाइट पर दिया है वह नहीं ही दिया जाता तो बेहतर होता। इस बयान के पहले तक तो सिर्फ संदेह था मगर अब किसी के दिमाग में शक बाकी नहीं बचा है कि प्रणय रॉय को दलाली से कोई फर्क नहीं पड़ता।भांति भांति की सौंदर्य मुद्राएं बिखेरने वाली और अपने आपको संवेदनशील पत्रकार साबित करने में हर कोशिश करने वाली बरखा दत्त के बारे में एनडीटीवी ने धमकी के अंदाज में लिखा है कि बरखा दत्त सारे पत्रकारों की तरह हर तरह के लोगों से मिलती हैं और बात करती है। इन बातों को संदर्भ से हटा कर देखना अपने आपमें गलत है और अनैतिक है। धमकी में यह भी कहा गया है कि अगर किसी पत्र या पत्रिका ने बरखा दत्त के महान पत्रकारिता के उद्देश्यो पर सवाल उठाए तो उन्हें कानूनी बाधाओं का सामना करना पड़ेगा। जिन लोगों ने चोरों द्वारा कोतवाल को डांटे जाने का सिर्फ मुहावरा सुना हो वे अब इसे साक्षात देख सकते हैं।
बरखा दत्त और महा दलाल नीरा राडिया हर कीमत पर भारत के इतिहास के सबसे चोर मंत्री साबित होते जा रहे मंत्री ए राजा को केंद्रीय मंत्रिमंडल में लाने और संचार मंत्री बनाने के लिए कितने आतुर थे यह बात कोई हवा में नहीं कहीं गई। इसके टेप अब तो सैकड़ों जगह उपलब्ध हैं और जब नीरा राडिया को उल्टा टांग कर पूछताछ की जाएगी तो उनके मुंह से वीर, सुहेल और बरखा के नाम की बरखा होने लगेगी।
जो टेप रिकॉर्ड भारत सरकार के आयकर विभाग की पहल पर तैयार हुए हैं उनमें बरखा दत्त नीरा राडिया की नौकर की तरह नजर आ रहे हैं। वे इस बात पर दुखी हैं कि राजा के मामले में गतिरोध अब भी बना हुआ है और प्रधानमंत्री भी दुखी हो चुके हैं क्योंकि टी आर बालू ने कांग्रेस को गलत सलत बाते कही है और उन्हें मीडिया के सामने भी दोहराया है। बरखा दत्त आतुर हो कर स्कूली बच्ची की तरह चालीस के आसपास के उम्र में भी राडिया से पूछती हैं कि अब तुम बताओ, मैं उनसे क्या कहूं? मेरी तो हालत खराब हो गई है। यहां जो उनसे हैं वह कौन है या कितने हैं यह तो बरखा ही जानती होगी। उन्होंने अपने आपको राजनैतिक द्रोपदी साबित कर दिया है और आयकर विभाग ने उनका चीर हरण कर डाला है। प्रणय रॉय किसको बचा रहे हैं?
नीरा राडिया का समझ में आता है। उनका तो धंधा ही यह है। वे दलाली का ही खाती है। राडिया कहती है कि बरखा तुम कुछ करो क्योंकि करुणानिधि से बात होनी जरूरी है और उनकी बेटी कनिमोझी से मेरी बात हो चुकी है। करुणानिधि के बेटे अलागिरि को राज्यमंत्री नहीं, पूरा मंत्री बनवाना है। बरखा बहुत आज्ञाकारी भाव से हां हां करती है और फिर पूछती है कि क्या करुणानिधि बालू को छोड़ेंगे? नीरा राडिया बरखा को आज्ञा देती है कि तुम कहो तो छोड़ भी सकते हैं। फिर बरखा किंग मेकर की भूमिका में आ जाती है और कहती है कि फिर मंत्रालयों को ले कर दिक्कत होगी और नीरा राडिया कहती हैं कि वो मैं संभाल लूंगी। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में मतदाता की ऐसी की तैसी। इसे तो बरखा और नीरा जैसे दलाल संभालेंगे।
बरखा को यह भी पता था कि द्रविण मुनेत्र कषगम को परिवहन, उर्जा, संचार, संचार तकनीक, रेलवे और स्वास्थ्य मंत्रालय चाहिए। नीरा और बरखा दोनों दयानिधि मारन को किसी भी कीमत पर मंत्री नहीं बनने देना चाहती थी और इसमें उन्होंने मुकेश अंबानी तक की मदद ली। जब देश के सबसे रईस आदमी से दोस्ती है तो बरखा दत्त पत्रिकारिता में नौकरी क्यों कर रही है? बरखा दत्त ने तो यहां तक कहा कि कांग्रेस को पता नहीं लगना चाहिए कि हम दयानिधि मारन के बारे में क्या बात कर रहे हैं और नीरा राडिया कहती है कि यह तुम तय कर लो।
प्रणय रॉय हिंदी नहीं पढ़ सकते इसलिए किसी से पढ़वा कर सुन ले। उनकी महान पत्रकार बरखा दत्त कह रही हैं कि एक समस्या है और वह यह है कि मैं गुलाम नबी आजाद से बात कर लूंगी मगर अभी मैं रेसकोर्स रोड यानी प्रधानमंत्री के घर में हूं। निकल कर ही बात हो पाएगी। यानी बरखा दत्त इतनी ताकतवर है कि प्रधानमंत्री निवास में जहां केंद्रीय मंत्रियाें के मोबाइल भी नहीं जाते, उनका मोबाइल जाता है और वे दलाली की बाते कर सकती है।
फिर बरखा इस बात पर चकित नजर आती है कि उनके अलावा आखिर और कौन डीएमके और कांग्रेस से बात कर रहा है? यानी दूसरा दलाल कौन है? फिर खुद ही कहती है कि दयानिधि मारन शायद वार्ताकार की भूमिका में हो। बरखा यह भी बताती है कि अभी अभी सोनिया गांधी यहां आ कर गई हैं और जैसे ही प्रधानमंत्री की बैठक खत्म होती है, मैं बात करने की कोशिश करूंगी।
गुलाम नबी आजाद अपने आपको चाहे जितना महान समझते रहे मगर बरखा और नीरा आपसी बातचीत में उन्हें गुलाम कह कर ही संबोधित करती है। वे तो अहमद पटेल को अहमद कहती है और ज्यादातर बड़े नेताओं के बारे में जिन शब्दों में बात करती है उनसे लगता है कि वे उनके बाप के नौकर हो। उन्हें सारे नेताओं के उड़ान नंबर और ठिकाने पता होते है और इस हिसाब से वे राजीव गांधी की हत्यारी धनु से भी ज्यादा बड़ा सुरक्षा खतरा है।
बरखा दत्त के बारे में कभी कभार कहानियां उड़ती रही है मगर सच तो यह है कि अब बात कहानियों से आगे चली गई है। हकीकत के आइने में बरखा दत्त के पास कोई आवरण नहीं हैं और उनके संरक्षक प्रणय रॉय जो मंत्रियो और बड़े अफसरों के रिश्तेदारों को नौकरी देने और दिए रहने मे माहिर है, खुद
दूरदर्शन से करोड़ो रुपए के घोटालों के चक्कर में सीबीआई के अभियुक्त रह चुके है।
---अलोक तोमर---
डेट लाइन इंडिया डाट कॉम
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