बंगला देश की आज़ादी का ३९ वाँ वर्ष - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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बुधवार, 15 दिसंबर 2010

बंगला देश की आज़ादी का ३९ वाँ वर्ष

1971 में बांग्लादेश की आज़ादी को लेकर भारत और पाकिस्तान की सेनाओं के बीच सीधी जंग हुई थी। इस जंग में भारतीय जवानों ने बड़ी चतुराई और बहादुरी से दुश्मन के दांत खट्टे कर दिए थे। इस जंग में जेएफआर जैकब ने इस ऐतिहासिक युद्ध में बढ़चढ़कर हिस्सा लिया था और वे उस लम्हे के भी गवाह बने थे जब जगजीत सिंह अरोड़ा के सामने पाकिस्तान सेना के प्रमुख जनरल नियाजी और उनके हजारों फौजियों ने आत्मसमर्पण किया था।   


१६ दिसंबर को इस जंग की ३९ वीं बरसी है। इस जंग में भारतीय सेनाओं की कमान संभालने वाले बहादुर फौजियों की नज़र से भारत की इस ऐतिहासिक जीत को टटोलते हैं। 1969 में सेना प्रमुख सैम हॉरमुसजी फ्रेमजी जमशेदजी मानेकशॉ ने जेएफआर जैकब को पूर्वी कमान प्रमुख बना दिया था। 


जैकब ने १९७१ की लड़ाई में अहम भूमिका निभाते हुए दुश्मनों को रणनीतिक मात दी थी।। जैकब के मुताबिक १९७१ में पूर्वी पाकिस्तान (वर्तमान में बांग्लादेश) में युद्ध के बादल मंडरा रहे थे। जंग से आजिज आ चुके और बेहतर ज़िंदगी की तलाश में बांग्लादेश के शरणार्थी लाखों की संख्या में सीमा पार करके देश के पूर्वी हिस्सों में प्रवेश कर रहे थे। पूर्वी पाकिस्तान में लोग इस्लामी कानूनों के लागू होने और उर्दू के बतौर राष्ट्रीय भाषा बनाए जाने का विरोध कर रहे थे। इसलिए हालात ज़्यादा खतरनाक हो गए थे। पाकिस्तानी फौज को आत्मसमर्पण के लिए मजबूर करने वाले जनरल (रिटायर्ड) जैकब फर्ज रफेल (जेएफआर) जैकब के मुताबिक भारत के तीखे हमलों से परेशान होकर पाकिस्तान सेना ने संयुक्त राष्ट्र के तत्वावधान में युद्ध विराम की पेशकश की, जिसे भारतीय सेना ने अपनी चतुराई और पराक्रम से पाकिस्तान के पूर्वी कमान के 93,000 सैनिकों के सरेंडर में बदल दिया। 

जैकब के मुताबिक नियाजी के पास ढाका में ही करीब ३० हजार सैनिक थे, जबकि हमारे पास ३ हजार। जैकब के मुताबिक उसके पास कई हफ्तों तक लड़ाई लड़ने की क्षमता थी। जैकब के मुताबिक अगर नियाजी ने समर्पण करने की बजाय युद्ध लड़ता तो पोलिश रिजॉल्यूशन जिस पर संयुक्त राष्ट्र में बहस हो रही थी, वह लागू हो जाता और बांग्लादेश की आज़ादी का सपना अधूरा रह जाता। लेकिन वह समर्पण के लिए तैयार हो गया।

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