सांसारिक वस्तुओं के प्रति अधिकार की भावना सभी दुखों
और कष्टों का मूल है। ऐसी वस्तुओं के प्रति भावना का
विकास न होने दे जो स्वभावत: नश्वर हैं। जिस संसार मे
आप रहते हैं और जो आपके सामने है प्रति पल बदल रहा है।
आपका अपना शरीर ही निरंतर बदलाव का जीता-जागता उदाहरण है।
कोई भी संवेदनशील व्यक्ति यह विश्वास नही कर सकता
कि वह इस विशाल सागर मे आने वाली लहर के समान है।
(विष्णु प्रसाद बख्सी)
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