मित्र न तो किसी को प्रसन्नता दे सकता है
और न शत्रु किसी को दुःख दे सकता है|
न बुद्धिमत्ता से धन मिलता है और न धन से शान्ति|
प्रत्येक कार्य ईशवरीय इच्छा पर निर्भर होता है|
कहा भी है- ’कोऊ न काहू सुह दुःख कर
दाता, निज कृत कर्म भोग सब भ्राता’
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मित्र न तो किसी को प्रसन्नता दे सकता है
और न शत्रु किसी को दुःख दे सकता है|
न बुद्धिमत्ता से धन मिलता है और न धन से शान्ति|
प्रत्येक कार्य ईशवरीय इच्छा पर निर्भर होता है|
कहा भी है- ’कोऊ न काहू सुह दुःख कर
दाता, निज कृत कर्म भोग सब भ्राता’
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