दिल्ली हाईकोर्ट ने एक महिला को आदेश दिया है कि वह अपने पति को गुजारा भत्ता के रूप में हर महीने 20 हजार रुपये का भुगतान करे। अदालत ने महिला को यह भी निर्देश दिया है कि वह पति को मारुति कार भी दे।
निचली अदालत ने 2009 में ऐसा ही फैसला सुनाया था, जिसे महिला ने हाई कोर्ट में चुनौती दी थी।दरअसल मामाला ये है कि पति-पत्नी के एक विवादित मुकदमें में पति ने सन् 2002 में अपनी पत्नी को अपनी संपत्ती की मालकिन बनाया था। लेकिन पति-पत्नी के बीच बाद में झगड़े होने लगे जिसके चलते पत्नी ने अपने बच्चों के साथ मिलकर अपने पति को साल 2007 में उसे उसके ही घर से बाहर निकाल दिया ता। जिसके बाद साल 2008 में पति ने 2008 में कड़कड़डूमा कोर्ट में तलाक की अर्जी दाखिल की और साथ ही हिंदू मैरिज ऐक्ट की धारा-24 के तहत गुजारा भत्ता देने की गुहार लगाई।
याचिका में कहा गया कि उसे घर से निकाला गया और उसे गुजारे के लिए खर्चा तक नहीं दिया जा रहा। याचिका में कहा गया है कि पीड़ित की पत्नी की सालाना आमदनी एक करोड़ है। उसकी पत्नी के पास चार गाड़ियां हैं दूसरी तरफ उसकी कोई आमदनी नहीं है और वह सड़क पर आ चुका है। जिस के बाद साल 2009 में निचली अदालत ने फैसला सुनाया कि हिन्दू मैरिज एक्ट के तहत पति-पत्नी में से जो भी आर्थिक रूप से संपन्न है वो दूसरे को गुजारा भत्ता दे सकता है। जिसके बाद उसने पत्नी को आदेश दिया कि वो हर महीने अपने पति को 20 हजार रूपये दें। जिसके बाद पत्नी हाईकोर्ट पहुंची थी जिसे हाईकोर्ट ने भी सही ठहराया और उसने पत्नी की याचिका खारिज कर दी। हाई कोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को सही ठहराया है और बीवी को निर्देश दिया है कि वह अपने पति को हर महीने 20 हजार रुपये गुजारा भत्ता और साथ ही साथ ही कार भी दे।
निचली अदालत ने 2009 में ऐसा ही फैसला सुनाया था, जिसे महिला ने हाई कोर्ट में चुनौती दी थी।दरअसल मामाला ये है कि पति-पत्नी के एक विवादित मुकदमें में पति ने सन् 2002 में अपनी पत्नी को अपनी संपत्ती की मालकिन बनाया था। लेकिन पति-पत्नी के बीच बाद में झगड़े होने लगे जिसके चलते पत्नी ने अपने बच्चों के साथ मिलकर अपने पति को साल 2007 में उसे उसके ही घर से बाहर निकाल दिया ता। जिसके बाद साल 2008 में पति ने 2008 में कड़कड़डूमा कोर्ट में तलाक की अर्जी दाखिल की और साथ ही हिंदू मैरिज ऐक्ट की धारा-24 के तहत गुजारा भत्ता देने की गुहार लगाई।
याचिका में कहा गया कि उसे घर से निकाला गया और उसे गुजारे के लिए खर्चा तक नहीं दिया जा रहा। याचिका में कहा गया है कि पीड़ित की पत्नी की सालाना आमदनी एक करोड़ है। उसकी पत्नी के पास चार गाड़ियां हैं दूसरी तरफ उसकी कोई आमदनी नहीं है और वह सड़क पर आ चुका है। जिस के बाद साल 2009 में निचली अदालत ने फैसला सुनाया कि हिन्दू मैरिज एक्ट के तहत पति-पत्नी में से जो भी आर्थिक रूप से संपन्न है वो दूसरे को गुजारा भत्ता दे सकता है। जिसके बाद उसने पत्नी को आदेश दिया कि वो हर महीने अपने पति को 20 हजार रूपये दें। जिसके बाद पत्नी हाईकोर्ट पहुंची थी जिसे हाईकोर्ट ने भी सही ठहराया और उसने पत्नी की याचिका खारिज कर दी। हाई कोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को सही ठहराया है और बीवी को निर्देश दिया है कि वह अपने पति को हर महीने 20 हजार रुपये गुजारा भत्ता और साथ ही साथ ही कार भी दे।

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