
नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक [कैग] ने 31 मार्च 2010 को समाप्त वर्ष के लिए जारी बिहार की वित्तीय स्थिति पर अपनी रिपोर्ट में प्रदेश सरकार के वित्तीय अनुशासन और नियंत्रण पर प्रतिकूल टिप्पणी करते हुए कहा कि वर्ष 2002-03 से 2008-09 के दौरान आकस्मिक निधि से एसी बिल पर 11854 करोड़ रुपए की निकासी की गई लेकिन लेखा परीक्षा की बार बार आपत्तियों के बावजूद उनके व्यय के डीसी बिल नहीं जमा किए गए।
बिहार सरकार के वित्त के संबंध कैग रिपोर्ट पर आयोजित एक संवाददाता सम्मेलन में महालेखाकार प्रेमन दिनाराज ने कहा कि नियमित कार्यो के लिए आकस्मिक निधि से राशि के निकास करने की प्रवृत्ति प्रदेश की सरकार में अधिक देखी गई है। उन्होंने कहा कि आकस्मिक निधि से सरकार जरूरत पड़ने पर आकस्मिक व्यय बिल [एसी बिल] के आधार पर निकासी कर सकती है लेकिन छह महीने के भीतर उसे विस्तृत आकस्मिक व्यय बिल सौंपना होता है।
दिनाराज ने कहा कि लेखा परीक्षा द्वारा बार बार याद दिलाए जाने के बावजूद सरकार ने 11854 करोड़ रुपए के डीसी बिल जमा नहीं किए, जबकि मार्च 2010 तक 407.97 करोड़ के गबन, हानि और चोरी के 1021 मामले अंतिम तौर पर निपटारे के लिए लंबित थे। दिनाराज ने कहा कि मार्च 2009 तक 58 हजार से अधिक एसी बिलों पर 14272 करोड़ रुपए की निकासी की गई, लेकिन इस राशि में से केवल 2418 करोड़ रुपए के लिए ही 7435 डीसी बिल महालेखाकार [लेखा एवं हकदारी] के पास जमा किए गए।
जुलाई 2010 में डीसी बिलों को जमा नहीं करने को लेकर विपक्ष ने काफी हंगामा किया था और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के इस्तीफे की मांग की थी। विपक्ष के दलों ने कहा कि डीसी बिलों के नहीं जमा करना किसी बड़े घोटले की ओर संकेत है।
उन्होंने कहा कि अक्तूबर 2007 तक राज्य सरकार के विभिन्न विभागों द्वारा प्रदत्त कुल 4528 करोड़ के अनुदान एवं रिण संबंधी 21174 उपयोगिता प्रमाण पत्र महालेखाकार के समक्ष जमा नहीं किए गए। दिनाराज ने कहा कि गैर योजना मद व्यय में कमी और कर तथा करेतर स्रोतों से अतिरिक्त संसाधन जुटाने के सरकार उपाय नहीं करती तो सरकारी निवेशों पर नगण्य आय के कारण मध्यम से दीर्घ अवधि में भारी ऋण बोझ की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
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