सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि 'ऑनर किलिंग' यानी इज़्ज़त के नाम पर हो रही हत्या राष्ट्र पर कलंक है और यह बर्बर और सामंती प्रथा है जिसे ख़त्म किया जाना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने अदालतों को निर्देश दिए हैं कि ऑनर किलिंग को दुर्लभतम मामलों की श्रेणी में रखा जाना चाहिए और मौत की सज़ा देनी चाहिए.
सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फ़ैसले में कहा है, "ऐसा असभ्य व्यवहार करने वालों के लिए ऐसे उपाय ज़रुरी हैं. जो भी व्यक्ति ऑनर किलिंग का षडयंत्र रचने जा रहा है उसे अंदाज़ा होना चाहिए कि फांसी का तख़्ता उसका इंतज़ार कर रहा है."
न्यायमूर्ति मार्कंडेय काटजू और न्यायमूर्ति ज्ञान सुधा मिश्रा के एक पीठ ने भगवान दास नाम के एक व्यक्ति की याचिका पर सुनवाई के बाद ये फ़ैसला सुनाया है. इस व्यक्ति पर आरोप है कि उसने अपनी बेटी को इसलिए मार दिया था क्योंकि उसने शादी के बाद कथित रुप से अपने चचेरे भाई से संबंध बनाए. बहुत से लोगों को लगता है कि अपने किसी संबंधी या अपने समाज के किसी युवक या युवती ने उनका अपमान किया है क्योंकि या तो वे अपनी ही समाज में विवाह करना चाहते हैं या फिर वे उनकी मर्ज़ी के बिना विवाह करना चाहते हैं. इसके बाद वे क़ानून को अपने हाथ में ले लेते हैं
सर्वोच्च न्यायालय ने अपने फ़ैसले में कहा है, "बहुत से लोगों को लगता है कि अपने किसी संबंधी या अपने समाज के किसी युवक या युवती ने उनका अपमान किया है क्योंकि या तो वे अपनी ही समाज में विवाह करना चाहते हैं या फिर वे उनकी मर्ज़ी के बिना विवाह करना चाहते हैं. इसके बाद वे क़ानून को अपने हाथ में ले लेते हैं." न्यायाधीशों ने कहा है कि किसी को भी क़ानून अपने हाथों में नहीं लेना चाहिए.
अदालत ने कहा है कि कोई व्यक्ति यदि अपनी बेटी या किसी और रिश्तेदार से इस बात से नाराज़ है कि वह अपने ही समुदाय में शादी करना चाहते हैं तो वे ज़्यादा से ज़्यादा ये कर सकते हैं कि उससे अपने सामाजिक संबंध ख़त्म कर लें.
भगवान दास की अपनी बेटी से बहुत नाराज़ थे क्योंकि उसने अपने पति को छोड़ दिया था और उसने अपने एक चचेरे भाई से संबंध बना लिए थे. इसी नाराज़गी में 16 मई, 2006 को बिजली के तार से गला घोंटकर अपनी बेटी को मार दिया था और जब पुलिस पहुँची तब वह अपनी बेटी का अंतिम संस्कार करने जा रहे थे. परिस्थिति जन्य साक्ष्य और भगवान दास की मां के बयान के आधार पर हाईकोर्ट ने उन्हें उम्रक़ैद की सज़ा सुनाई थी. उनकी मां ने कहा था कि उनके बेटे ने ही उनकी पोती की हत्या की है. हाईकोर्ट के इस फ़ैसले के ख़िलाफ़ भगवान दास सुप्रीम कोर्ट पहुँचे थे. सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फ़ैसले को बरकरार रखा और भगवान दास के इस तर्क को ख़ारिज कर दिया कि केवल परिस्थिति जन्य साक्ष्य के आधार पर सज़ा नहीं दी जा सकती.

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