सुनिए रमन सिंह की......... - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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शनिवार, 28 मई 2011

सुनिए रमन सिंह की.........


एक सरकार जिसका मुखिया चीख चीख कर यह कहता है कि, नक्‍सली विकास विरोधी है, और नक्‍सलीयों का उन्‍मुलन होकर रहेगा, लेकिन वह इस सवाल पर खामोश हो जाता है कि, केंद्र से अरबों करोडों आने के बावजुद वह जवानों को एक अदद अच्‍छी गाडी क्‍यों नही मुहैया करा पाया। छत्‍तीसगढ के गरियाबंद जिले के सोनाबेडा के पास नक्‍सलीयों के हमले से जो नौ मौतें हुई, उसकी वजह गाडी का खराब होना था, गाडी खराब हुई,ईलाके में सक्रिय नक्‍सलीयों को भनक पडी, और उन्‍होने हमला कर दिया,हमारे जवान शहीद हो गए, वह शहादत तो है, पर क्‍या यह हत्‍या नही है, और क्‍या इस हत्‍या में सरकार को भी आरोपों के घेरे में नही लाया जाना चाहिए ? कहां जाता है नक्‍सल उन्‍मुलन अभियान के लिए आया पैसा ...???

बात किसी एक इस घटना की नही है, बात रकम के सदूपयोग और सदूपयोग के ईरादे पर है । , यह वाकया तो एक झलक है बस ...जितनी राशि आ रही है, उसके हिसाब से क्‍या काम हो रहा है, कहां खर्च हो रहा है, इसके हिसाब की बात है। सुनिए रमन सिंह जरा बताईए न कहां जाता है पैसा ...।

नक्‍सली मार रहे है, और लगातार हमले कर रहे है, हर हादसे के बाद सरकार कहती है कि, वह होना था वह ना हुआ, इसलिए यह हो गया । सोनाबेडा मामले में आपने कहा गाडी खराब होना दुर्भाग्‍यपूर्ण था, ताडमेटला में भी आप दुर्भाग्‍य जता रहे थे, और विनोद चौबे की शहादत पर भी यही शब्‍द दोहराते आए आप ..। नई रणनीति बनेगी, यह दावा करते आए आप, और हम हादसों और लाशों के रूप में अपने साथीयो को देखते जा रहे है, आपकी सरकार जाने कौन से अंदाज में मुठभेड करती है, दावा होता है कि, नक्‍सली मारे गए तो कभी लाश नही मिलती और जब लाश मिलती है तो उनके ग्रामीण होने की बात सामने आती है, कभी खीज जाते है आप तो आपके नुमाइंदे आदिवासीयों की बस्‍ितयां तक जला जाते है, पर जाने कौन सी स्‍टे्टजी है आपकी, बस ये नक्‍सली नही मरते आपसे ..कहां जाता है पैसा रमन सिंह ?

सलवा जूडूम जैसे अभियान की बात फिलहाल नही करूंगा, क्‍योंकि उसके लिए अध्‍ययन जारी है आखिर यह एक
ऐसा आंदोलन था जिसे सरकार का प्रश्रय था, पर आज सरकार इस पर बात तक नही करती, एक ऐसा आंदोलन जिसके बेकाबू होने और नक्‍सलीयो से भी ज्‍यादा खतरनाक होने की खबरें आती रहीं । उद्योगों को लेकर आपकी दिलचस्‍पी पर भी अभी कोई बात नही करूंगा मैं, क्‍योकि यह विषय इतना बडा है कि, चंद शब्‍दों में उद्योग के प्रति आपके अगाध प्रेम को सिमटाया नही जा सकेगा, और प्रेम चाहे जिस रूप में हो, मैं उसका अनादर नही करता ।

डॉ रमन सिंह जी मैं तो यह भी नही पूछूंगा कि, इतनी असफलताओं के बीच आप उस गृह विभाग को क्‍यों नही अपने जिम्‍मे ले लेते, जिसका सीधा दारोमदार आपके नक्‍सलीयों से लडने के दावों से है। क्‍यों कि लगातार खबरें छपती रही है, सवाल उठते रहे है, आपके गृह मंत्री अपने ही विभाग के रिश्‍वत खोरी के टेप बांटते रहते है, कई मौकों पर यह कहने से नही चुकते कि, कोई सुनता ही नही।पुलिस मुख्‍यालय और गृहमंत्री के बीच तालमेल नही है।

दिलचस्‍प है आपके जिम्‍मे आने वाला विभाग- उद्योग, वित्‍त, वाणिज्‍य, उर्जा और जनसंपर्क , इन सबको एक कतार में पढें तो बहुतरे संकेत मिलते है और सब साफ महसूस भी होते है, पर मैने कहा न, मैं इस पर कुछ नही
पूछूंगा कि, यह विभाग आपके ही पास क्‍यों रहते है, नही पूछूंगा रमन सिंह ।

मैं यह भी नही पूछूंगा डॉक्‍टर रमन कि, एल डब्‍लू ई और बी आर जी एफ जैसी योजनाएं कैसे प्रभावशाली विधायकों या मंत्रीयों के क्षेत्र तक सिमटती है। मै यह किसी को नही बताउंगा रमन सिंह कि, कैसे सरगुजा में हुई एक इस मामले की बैठक में आपकी ही पार्टी की महिला विधायक ने ऐसे ही गंभीर आरोप लगाए और बाद में प्रस्‍तावों को दुबारा भेजना पडा। मैं नही बताउंगा कि, कैसे रामचंद्रपुर नाम के विकासखंड के गांव डिंडों में एक मंत्री और सांसद के बीच किस बात को लेकर गर्मागर्म बहस हुई और किसने किसको बेइज्‍जत किया।

मैं आपसे अभी यह भी नही पूछूंगा सी एम साहब कि,आपकी बहुप्रचारित योजना चावल बांटो योजना मे लाभ उठाने वालो की संख्‍या छत्‍तीसगढ की पूरी जनसंख्‍या के बराबर क्‍यों हो गई थे ?? मै यह भी नही पूछ रहा सी एम साहब कि, प्रदेश की गरीबी दूर नही हुई पर क्‍यों मंत्रीयों के आलीशान पार्टनरशीप की कहानियां गली चौबारों में है, क्‍यूं है, कहां से आ रहा है बेहिसाब पैसा ..??

मैं तो फिलहाल यह भी नही पूछूंगा कि, जब सब कुछ सही है, फील गुड होते हुए प्रदेश की सरकार क्रेडीबल छत्‍तीसगढ का नारा लगा रही है, तो जशपुर सरगुजा जैसे उत्‍तरी छत्‍तीसगढ के ईलाकों से आदिवासी बालाओं के तस्‍करी का मामला क्‍यों है...? क्‍यो ईलाके के आदिवासी चंद रूपयों की खातिर अपनी बेटीयों को भेजते है ..??

तो बात बस इतनी है कि, केंद्र से मिलने वाले नक्‍सली उन्‍मुलन अभियान को लेकर क्‍या खर्च हुआ कितना खर्च हुआ इसका हिसाब तो मिलना चाहिए। नक्‍सल उन्‍मुलन अभियान दरअसल उद्योग बन चुका है, पर जहां तक मैं सोचता हूं, सूचना का अधिकार इस उद्योग में लागू नही होता क्‍यों सी एम साहब याने कि पूर्व केद्रीय उद्योग मंत्री याने कि, डॉ रमण सिंह मैं सही कह रहा हूं न ...???





---याज्ञवल्‍क्‍य वशिष्ठ---

छत्तीसगढ़ में टी वी पत्रकारिता से जुड़े हुए हैं, शब्दों के माध्यम से आम लोगों की भावना को व्यक्त करने के लिए वेब के पन्ने पर अपने शब्द उकेरते हैं.
इनका ब्लॉग http://yagnyawalky.blogspot.com है.
इनसे yagnyawalky@gmail.com पर संपर्क किया ज सकता है.

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