केन्द्र ने मंगलवार को उच्चतम न्यायालय से कहा कि राज्य सभा द्वारा नियुक्त की गयी समिति सिक्किम के मुख्य न्यायाधीश पीडी दिनाकरन के खिलाफ जांच आगे बढ़ा सकती है और उनके खिलाफ निश्चित आरोप तय कर सकती है। दिनाकरन कदाचार और भ्रष्ट कृत्यों के आरोपों का सामना कर रहे हैं।
अतिरिक्त सालीसिटर जनरल पीपी मल्होत्रा ने न्यायमूर्ति दिनाकरन के इस आरोप को खारिज कर दिया कि सरकार को कार्यवाही में कोई रुचि नहीं दिखानी चाहिए। मल्होत्रा ने कहा कि राज्यसभा समिति के पास न्यायाधीश के खिलाफ लगाए गए मूल आरोपों से परे भी जाने का अधिकार है।
न्यायमूर्ति जांच कानून की धारा तीन का उल्लेख करते हुए मल्होत्रा ने न्यायमूर्ति जीएस सिंघवी और न्यायमूर्ति सीके प्रसाद की पीठ से कहा कि प्रस्ताव का नोटिस दिए जाने के समय हो सकता है कि सूचना अस्पष्ट हो। उन्होंने कहा कि यह एक गंभीर मामला है और आपको एक न्यायाधीश के आचरण के बारे में विचार करना है। अन्य सामग्री तथा सबूतों की पुष्टि करने के बाद ही निश्चित आरोप तय किए जा सकते हैं। न्यायमूर्ति दिनाकरन की ओर से दलील देते हुए पूर्व अतिरिक्त सालीसिटर जनरल अमरेन्द्र शरण ने केन्द्र के हस्तक्षेप पर आपत्ति जताते हुए कहा कि इस मुद्दे में उसकी कोई रुचि नहीं होनी चाहिए।
पीठ ने न्यायमूर्ति दिनाकरन की ओर से पेश हुए वकील से कहा कि मल्होत्रा अदालत की सहायता कर रहे हैं लिहाजा आपत्ति को नहीं माना जा सकता। मल्होत्रा ने कहा कि सबूत एकत्र करना जांच का हिस्सा है तथा एक बार निश्चित आरोप तय हो जाए तो न्यायाधीश समिति से संपर्क कर अपनी स्थिति को स्पष्ट कर सकते हैं।
उन्होंने कहा कि सामग्री एकत्र होने के बाद ही तय हो पायेगा कि आरोप तथ्यात्मक रूप से सही या गलत हैं। इससे पूर्व समिति की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील यूयू ललित ने आरोप लगाया कि दिनाकरन ने कांचीपुरम जिले के कावेरीप्लायेम में 248 एकड़ जमीन खरीदी जहां कृषि या मूंगफली उत्पादन की कोई गुंजाइश नहीं है। उन्होंने कहा कि इसके बावजूद न्यायमूर्ति दिनाकरन ने दावा किया है कि उन्हें इस भूमि पर मूंगफली और कृषि उत्पादन के जरिए तीन लाख रुपये की मासिक आय हुई। न्यायाधीश दिनाकरन ने 1.48 करोड़ रुपये की अघोषित बैंक राशि के समर्थन में इस आय का हवाला दिया था।
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