राष्ट्रीय खेल महासंघों (एनएसएफ) के कामकाज पर नियत्रंण करने वाले विवादास्पद खेल विधेयक को कई मंत्रियों के कड़े प्रतिरोध के कारण मंगलवार को मंत्रिमंडल की बैठक में मंजूरी नहीं मिल सकी। मिली
सूत्रों के अनुसार प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट बैठक में राष्ट्रीय खेल विकास विधेयक पर चर्चा की गई और इसमें कई मंत्रियों ने इस पर ऐतराज जताया, इसलिए फैसला किया गया कि विधयेक पर पुनर्विचार से पहले खेल मंत्रालय को इस पर दोबारा काम करना चाहिए।
कैबिनेट में मौजूद कम से तीन मंत्री विलासराव देशमुख, सीपी जोशी और फारुख अब्दुल्ला क्रिकेट संघों के प्रमुख हैं जबकि शरद पवार अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (आईसीसी) के अध्यक्ष हैं। प्रफुल्ल पटेल अखिल भारतीय फुटबाल महासंघ के प्रमुख हैं।
खेल विधेयक से राष्ट्रीय खेल महासंघों में पारदर्शिता और जवाबदेही आने की उम्मीद है। इससे महासंघ आरटीआई के अधीन आ जाएंगे। इसके अलावा उम्र और कार्यकाल के दिशा निर्देश भी शीर्ष पदाधिकारियों पर लागू होंगे। इस विधेयक के तहत महासंघ में 70 वर्ष से अधिक उम्र का कोई व्यक्ति महासंघ या आईओए का पदाधिकारी नहीं बन सकता। इसके साथ ही महासंघों के अध्यक्ष 12 वर्ष या चार चार साल के तीन कार्यकाल से अधिक पद पर नहीं रह सकते। अन्य पदाधिकारी लगातार दो बार पद पर नहीं रह सकते लेकिन वे चार साल के ब्रेक के बाद फिर चुने जा सकते हैं।
सूत्रों ने कहा कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और गृहमंत्री पी चिदम्बरम ने इस विधेयक का समर्थन किया लेकिन शरद पवार, कपिल सिब्बल, प्रफुल्ल पटेल, कमलनाथ और फारुख अब्दुल्ला ने इसका विरोध किया। एक मंत्री ने उम्र सीमित रखने संबंधित धारा पर कड़ा प्रतिरोध किया और कहा कि उम्र का मुद्दा काफी विषयात्मक है। भारतीय ओलंपिक संघ (आईओए) और कई अन्य राष्ट्रीय खेल महासंघ मसौदे चरण से ही इस विधेयक का कड़ा विरोध कर रहे हैं। उनका कहना है कि यह उनके कामकाज में हस्तक्षेप का प्रयास है।
आईओए ने यह भी कहा कि यह कदम ओलंपिक चार्टर के खिलाफ है और अगर सरकार ने उनकी स्वायत्ता पर अंकुश लगाने की कोशिश की तो भारत को अंतरराष्ट्रीय खेल प्रतियोगिताओं से प्रतिबंधित किया जा सकता है।
क्रिकेट प्रशासकों ने भी इस प्रस्तावित विधेयक पर काफी कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की थी, जिसके अंतर्गत वे आरटीआई के दायरे में आ जाएंगे। इस विधेयक को अगर आज कैबिनेट में मंजूरी मिल जाती तो इसे मौजूदा मानसून सत्र में ही संसद में रखा जा सकता था तथा इससे कई प्रशासकों जैसे सुरेश कलमाड़ी, वी के मल्होत्रा, यशवंत सिन्हा, जगदीश टाइटलर और वीरेंद्र नानावती के कार्यकाल पर असर पड़ सकता था जो दशकों से महासंघों के पद पर काबिज हैं। धनाड्य क्रिकेट बोर्ड बीसीसीआई भी इस विधेयक के दायरे में आ जाता, हालांकि क्रिकेट प्रशासकों ने कहा कि यह बोर्ड के लिए बाध्यकारी नहीं होगा क्योंकि उसने कभी सरकारी अनुदान नहीं लिया है।
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