अहिंसात्मक विरोध के लिए एक अहम राजनीतिक हथियार माना जाने वाला अनशन न केवल शरीर की पाचन तंत्र प्रणाली पर दुष्प्रभाव डालता है बल्कि जानलेवा भी हो सकता है।
अनशन के दुष्प्रभावों के बारे में आहार विशेषज्ञ अनुजा अग्रवाल कहती हैं मानव शरीर के हर अंग और मस्तिष्क के कामकाज के लिए जरूरी ऊर्जा ग्लुकोज से मिलती है और यदि खान पान में अनियमितता हो अथवा आहार त्याग दिया जाए तो शरीर ऊर्जा के मुख्य स्रोत से वंचित रह जाता है। उन्होंने कहा कि ग्लुकोज न मिलने की स्थिति में शरीर चार से आठ घंटे के अंदर अपनी प्रतिक्रिया देता है और वह ग्लाइकोजन से अपनी जरूरत पूरी करने लगता है। ग्लुकोज का यह विकल्प शरीर में आपात भंडार के रूप में रहता है लेकिन इसकी भी एक निश्चित मात्रा होती है।
आहार विशेषज्ञ कामिनी बाली ने बताया आहार शरीर में न पहुंचने पर ऊर्जा का अभाव कई समस्याओं का कारण बन जाता है। इस दौरान मस्तिष्क कीटोन से अपनी जरूरत पूरी करता है। वसा स्वयं को कीटोन में तब्दील करती है और कीटोन की कितनी मात्रा उपलब्ध हो पाएगी, यह वसा की मात्रा पर निर्भर करता है। उन्होंने कहा कि वसा समाप्त होने पर शरीर पर भूख का असर पड़ने लगता है। ऐसे में मांसपेशियां और उत्तक टूटने लगते हैं ताकि कहीं से तो ऊर्जा मिले और शरीर का तंत्रिका तंत्र (नर्वस सिस्टम) तथा वाहिका तंत्र (सरकुलेटरी सिस्टम) चलता रहे।
आहार विशेषज्ञ शीला सहरावत ने बताया कि वसा टूटने पर जब कीटोन बनता है तो सामान्यत: पेशाब के जरिये बाहर निकलता है। लेकिन यदि शरीर में कीटोन की मात्रा बढ़ जाए या व्यक्ति को निर्जलीकरण की समस्या हो जाए तो कीटोन का निर्माण रक्त में भी होने लगता है। रक्त में कीटोन का स्तर बढ़ने से श्वांस में दुर्गंध, भूख न लगना, जी मिचलाना, वमन जैसी समस्याएं हो सकती हैं। यदि रक्त में कीटोन का स्तर अनियंत्रित हो जाए तो व्यक्ति कोमा में जा सकता है और उसकी मौत भी हो सकती है। उन्होंने बताया कि कीटोन के दुष्प्रभाव इतने घातक हो सकते हैं कि गर्भवती महिला के खून में इसकी मामूली मात्रा गर्भपात का कारण बन सकती है। पेशाब में कीटोन की अधिक मात्रा डाइबिटिक कीटोएसिडोसिस का संकेत हो सकती है। यह अत्यंत खतरनाक स्थिति है जो रक्त शर्करा का स्तर अधिक होने की वजह से उत्पन्न होती है।
अनुजा ने कहा कि शरीर की गतिविधियों के सामान्य रूप से चलने के लिए आहार जितना जरूरी है, उतना ही जरूरी पानी भी है। पानी शरीर में न पहुंचने पर निर्जलीकरण की समस्या होती है जिसका नतीजा कई तरह के संक्रमण के रूप में सामने आता है। उन्होंने कहा कि आहार और पानी के अभाव में आहार नलिका के एक मुख्य भाग ईसोफेगस में एंजाइमों की वजह से संक्रमण होने लगता है जिससे बहुत दर्द होता है। अनशन शरीर को इस हद तक कमजोर कर देता है कि अनशन त्यागने के बाद शरीर को सामान्य होने में लंबा समय लगता है।

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