भागलपुर की 60 वर्षीया मनोरमा देवी कल तक अपने परिजनों के भरण-पोषण के लिए भटकती रहती थी पर आज कई घरों की महिलाओं को रोजगार उपलब्ध करा उनकी 'दीदी' बन गई हैं.
भागलपुर के सबौर प्रखंड कार्यालय के पीछे उनके नेतृत्व में चल रही सहकारी संस्था 'सृजन' का कार्यालय है, जहां प्रतिदिन महिलाएं अपने जीवन के नए सपने पूरे करने आती हैं. ये महिलाएं सृजन की सचिव मनोरमा को दीदी कहकर पुकारती हैं.
महिलाओं का मानना है कि दीदी ने उन्हें जहां घर की चौखट लांघने का मूलमंत्र दिया वहीं आत्मनिर्भर बनने के गुर भी सीखाए. यही कारण है कि अब वे सपने देखती हैं और उन्हें पूरा भी कर रही हैं. मनोरमा कहती हैं कि पति की मृत्यु के बाद उनके सामने अपने छोट-छोटे बच्चों के लालन-पालन और उनकी पढ़ाई को लेकर समस्या उत्पन्न हो गई थी. इसके बाद उन्होंने समाज के लिए कुछ करने के लिए सोचा और महिलाओं को एकजुट कर समूह बनाने लगीं. उन्होंने कहा कि शुरुआती वर्षो 1995-96 में उनकी संस्था से महज 10 महिलाएं जुड़ीं, वहीं आज यह संख्या बढ़कर 5,000 तक पहुंच गई है.
मनोरमा के वैज्ञानिक प्रबंधन और कुशल नेतृत्व को देखकर उन्हें बिहार स्टेट को-ऑपरेटिव बैंक के संचालक मंडल की निदेशक भी बना दिया गया. वह कहती हैं कि शुरू में इन कार्यो को करने में उन्हें काफी दिक्कत होती थी और लोगों के तानों का भी सामना करना पड़ता था लेकिन अब स्थिति बदल गई है. वह कहती हैं कि आज उनकी संस्था की सदस्य भागलपुर जिले के 16 प्रखंडों में फैल गई हैं.
मनोरमा ने बताया कि महिलाएं एक साथ मिलकर विभिन्न तरह के सामान बनाती हैं. बाद में इस सामान की बिक्री की जाती है. वह कहती हैं कि अब तो बड़े-बड़े व्यवसायी खुद यहां आकर इन सामानों की खरीददारी करते हैं. वह कहती हैं कि अब कई मौकों पर दुकानदार सामान की बुकिंग पहले ही कराने लगे हैं. संस्था से कई क्षेत्रों के जुड़ने व सदस्यों की संख्या बढ़ने के कारण इसकी महिलाओं द्वारा बनाई जाने वाली सामग्रियों की संख्या में भी इजाफा होता जा रहा है. बकौल मनोरमा उनकी संस्था बैग, स्वेटर, पापड़, अचार, दरी, सिल्क धागा, टसर रेशम, बरी सहित कई सामान बनाती है. सरकार द्वारा मदद मिलने की बात पूछने पर वह कहती हैं कि सभी अधिकारियों ने उनकी मदद की है.
मनोरमा ने कहा कि वर्ष 1996 में भागलपुर के तत्कालीन जिलाधिकारी गोरेलाल यादव ने उनकी संस्था के कार्यालय का उद्घाटन किया था. तब से यह संस्था तरक्की कर रही है. अब तो सरकार ने उन्हें एक सरकारी भवन भी उपलब्ध करा दिया है. उन्होंने कहा कि सामानों की बिक्री से मिलने वाली राशि महिलाओं द्वारा आपसी समझ के साथ एक-दूसरे में बांट ली जाती है. आज जहां मनोरमा का एक बेटा चिकित्सक है तो वहीं उनके दूसरे बेटे ने प्रबंधन का कोर्स किया है.
संस्था के कार्यों को देखकर को-ऑपरेटिव बैंक, भागलपुर से संबद्ध एक अन्य बैंक का जिम्मा भी उसे सौंप दिया गया है. इस बैंक में 7,000 से ज्यादा खाते हैं, जिनमें अधिकांश खाताधारी महिलाएं ही हैं. सबसे गौरतलब बात यह है कि इस बैंक की पूरी देखरेख महिलाएं ही करती हैं. को-ऑपरेटिव बैंक के अवकाश प्राप्त कर्मचारी महिलाओं का मार्गदर्शन करते हैं. उन्होंने बताया कि महिलाएं खुद ही इस बैंक की देखरेख कर रही हैं. वह कहते हैं कि सभी काउंटर्स पर महिलाएं रहती हैं और उन्हें शायद ही मदद आवश्यकता पड़ती है. अब संस्था बकरी पालन, गोपालन, टसर कताई का प्रशिक्षण भी दे रही है. संस्था लोगों को चिकित्सा क्षेत्र में भी निशुल्क परामर्श व सेवाएं भी दे रही है.

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